पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पंथ २७४४ पंपा रास्ते पर होना । (२) चाल ग्रहण करना। किसी के पंथ मग्ना । तो भी प्राय प्रणयपथ की पथिनी ही सभी हैं।- लगाना - (१) क्सिी के पीछे होना। अनुसरण करना। प्रिय०, पृ०२४६ । अनुयायी होना । (२) किसी के पीछे पडना। बराबर तग पंथी-सज्ञा पु० [सं० पंथिन् ] १ राही। बटोही । पथिक । १०- करना । लगातार कष्ट देना। उ०—किन्नर, सिद्ध, मनुज, ( क ) वडा हुआ तो क्या हुआ जैसे छाँह खजूर । पयी छाह सुर नागा । हठि सवही के पथहि लागा।-तुलमी (शब्द०)। न वैठही फल लागा तो दूर । —कबीर (शब्द०)। ( ख ) पथ पर लाना या लगाना = (१) ठीक रास्ते पर करना। करहिं पयान भोर उठि निनहिं कोस दस जाहिं । पथी पथा (२) अच्छी चाल पर ले चलना । उत्तम आचरण सिखाना। जो चलहिं ते कित रहैं मोताहिं ।—जायसी (शब्द०)। धर्मोपदेण करना। उ०—अगुणा भयउ सेख वुरहानू । पथ २ किसी संप्रदाय का अनुयायी । जैसे, कवीरपथी, दादूपथी लाय मोहिं दीन्ह गियानू । -जायसी (शब्द०)। पथ सेना इत्यादि। या सेवना = राह देखना । वाट जोहना। धासरा देखना। पद-सञ्ज्ञा स्त्री० [फा० ] शिक्षा । सीख । उपदेश । उ०-नफस उ.- हारिल भई पथ मै सेवा। अब तोहि पठवो कोन नांव सो मारिए गोसमाल दे पद । दुई है सो दूरि करि तव परेवा। -जायसी (शब्द०)। घर मे मानद ।-दादू ( शब्द०)। ३ धर्ममार्ग । संप्रदाय । मत । जैसे, कवीरपथ, नानकपथ, पंदा-मञ्ज्ञा पुं० [हिं०] द० 'फदा'। उ०-जगमग दिवारी है दाथूपथ । उ०-सैयद अशरफ पीर पियारा। जिन मोहिं कि दामिनी उज्यारी है कि, देवता सवारी है कि मद हास पथ दीन उजियारा । - जायसी (शब्द०)। पद है।-ग्रज प्र०, पृ० १५० । पंथ-सञ्ज्ञा पुं० [ म० पथ्य ] वह हल्का भोजन जो रोगी को लघन पंदरह-वि० [ स० पञ्चदश, पा० परणरस, प्रा. पणरह ] जो या उपवास के पीछे शरीर कुछ स्वस्थ होने पर दिया जाता सख्या मे दस और पांच हो। है । जैसे, मूग की दाल आदि । पंदरहर-सज्ञा पु० दस और पांच की सख्या या अक जो इस प्रकार पंथफ-वि. [ मं० पन्थक ] मार्ग मे पैदा हुआ। मार्ग मे पैदा होने लिखा जाता है-१५॥ वाला [को०] । पंदरहवाँ-वि० [फा० पदरह ] [वि॰ स्त्री० पदरहवीं ] जो प दरह पथकी-सहा पु० [ म० पथिक ] राही । पथिक । राह चलता के स्थान पर हो। जिसका स्थान चौदह और पदार्थों के मुसाफिर। उ०-( क ) मंदिरन्ह जगत दीप परगसी। पीछे हो। पथकि चलत वसेरन वसी।—जायसी (शब्द॰) । (ख) पंदार-वि० [फा० पद ] सुझाव या शिक्षा लेनेवाला (को॰) । कौन हो? किततें चले? कित जात हो? केहि काम ? पंद्रह-सञ्चा पु० [हिं० पदरह ] दे० 'पदरह' । उ०--पद्रह दश जू । कीन की दुहिता, बहू कहि कौन की यह बाम, त । एक इकीहि सत्त, मन मैं घरे परोय ।--प्राण०, पृ० ५५ । गाँव रहो कि साजन मित्र वधु वखानिए। देश के ? परदेश के ? किधो पथकी ? पहिचानिए । —केशव ( शब्द०)। पंधलाना-क्रि० स० [ देश० ] फुसलाना । वलाना । पंना-मज्ञा पु० [हिं० पन्ना ] एक रत्न । दे० 'पन्ना' । उ०-- पंथड़ा--सन्ना पुं० [हिं० पथ + ढा ( प्रत्य॰)] मार्ग। रास्ता। पथ। उ०—पथर्ड जाय पाँव नहिं तोड़ घर बैठा ऋघि पदि प ना मानिक मंगवाए। गोमोदिक लीलागन ल्याए।- प० रासो, पृ० २२॥ पाऊँगा।-राम० धर्म०, पृ० १८ । पंप-सञ्ज्ञा पुं० [अ०] १ वह नल जिसके द्वारा पानी ऊपर खीचा पथवाना--सज्ञा पुं॰ [सं० पन्थ + हिं० वान (प्रत्य॰)] पथिक । या चढाया जाता है अथवा एक ओर से दूसरी ओर पहुंचाया मुसाफिर । उ०-पथवान पुच्छयो नदी उत्तरि तिन अष्षिय । जाता है । २ पिचकारी । हवा भरने की पिचकारी । -पृ० रा०, ७७२ । क्रि० प्र०—करना। पथा--प्रज्ञा पुं० [स० पन्थ ] 2 'पथ'। उ०--करहिं पयान भोर उठि नितहिं कोस दम जाहिं । पथी पथा जो चलहिं ते ३ एक प्रकार का हलका अंगरेजी जूता जिसमे प जे से इधर का का रहन प्रोताहिं ।--जायमी ( शब्द०)। भाग ढंका रहता है। पपा-सज्ञा स्त्री० [ स० पम्पा ] दक्षिण देश की एक नदी और उसी पथान-सरा पु० [स० पन्थ या पथ ] मार्ग । उ०--एहि महँ से लगा हुआ एल ताल और नगर जिनका उल्लेख रायायण रुचिर सप्त सोपाना ।-रघुपति भगति केर पथाना ।- और महाभारत मे है। तुलसी ( शब्द०)। विशेष-रामायण मे लिखा है कि पपा नदी से लगा हुआ पथिका-सज्ञा पुं० [सं० पथिक ] 'पथिक'। उ०-पथिक सो ऋष्यमूक पर्वत है । ये दोनो कहाँ हैं इसका ठीक ठीक निश्चय जो दरव मो रुस। दरब समेटि बहुत अस मूसे ।-जायसी नहीं हुआ है। विल्सन साहव ने लिखा है कि पपा नदी ग्र०पृ० २२३ । ऋष्यमूक पर्वत से निकलकर तुगभद्रा नदी मे मिल गई है । पथिनी-वि० - [सं० पन्थ + हि० इनी (प्रत्य० ) ] राह पर रामायण से इतना पता तो और लगता है कि मलय और चलनेवाली। उ०-मै मानूंगी अधिक उनमे हैं महामोह ऋष्यमूक दोनों पर्वत पास ही पास थे। हनुमान ने ऋष्यमूक 4 FO