पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३५०

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करते हैं। Joxe पुरोगति पुरुपायुप लेटकर संभोग करती है। इसके कई भेद कहे गए हैं । साहित्य विशेप-ऋग्वेद को पुरुरवा को इला का पुत्र कहा है । पुरुरवा में इसी को 'विपरीत रति' कहा गया है । यौर उर्वशी का सवाद भी ऋग्वेद में मिलता है। पर एक पुरुपायुप-सञ्ज्ञा पुं० [स०] सौ वर्ष का काल (जो मनुष्य की मत्र में पुरुरवा सूर्य और ऊषा के साथ स्थित भी नहा गया पूर्णायु का काल माना गया है)। है जिससे कुछ लोग सारी कथा को एक रूपक भी कह दिया पुरुपारथ-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पुरुषार्थ ] दे० 'पुरुषाथ' । हरिवश तथा पुराणो के अनुसार बृहस्पति की स्त्री तारा और पुरुपार्थ-सज्ञा पुं० [ स०] १ पुरुष का अर्थ या प्रयोजन जिसके चद्रमा के सयोग से वुध उत्पन्न हुए जो चद्रवश के आदि लिये उसे प्रयत्न करना चाहिए । पुरुष के उद्योग का विषय । पुरुष थे। बुध का इला के साथ विवाह हुप्रा। इसी इलाके पुरुष का लक्ष्य। गर्भ से पुरुरवा उत्पन्न हुए जो बडे रूपवान, बुद्धिमान और विशेष-सांस्य के मत से विविध दुख की अत्यत निवृत्ति पराक्रमी थे। उर्वशी शापयश भूलोक मे या पडी थी। (मोक्ष) ही परम पुरुषार्थ है। प्रकृति पुरुषार्थ के लिये अर्थात् पुरुरवा ने उसके रूप पर मोहित हो उसके साथ विवाह के पुरुष को दुखों से निवृत्त करने के लिये निरतर यत्न करती लिये कहा। उर्वशी ने कहा-'मैं अप्सरा हैं। जबतक श्राप है. पर पुरुष प्रकृति के धर्म को अपना धर्म समझ अपने मेरी तीन बातो का पालन करेंगे तभी तक मैं अापके पास स्वरूप को भूल जाता है। जबतक पुरुष को स्वरूप का रहूँगी-(१) में प्रापको कभी नगा न देखू, (२) भकाम। ज्ञान नहीं हो जाता तबतक प्रकृति साथ नही छोडती। रहूँ तो पाप सयोग न करें पोर (३) मेरे पलंग के पास पुराणो के अनुपार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरुषार्थ है। दो मेढे बंधे रहें।' राजा ने इन बातो को मानकर विवाह चार्वाक मतानुसार कामिनी-सग-जनित सुख ही पुरुषार्थ है। किया और वे बहुत दिनो तक सुखपूर्वक रहे। एक दिन २ पुरुषकार । पौरुष । उद्यम । पराक्रम । ३ पुस्त्व । शक्ति । गपर्व उर्वशी शापमोचन के लिये दोनो मेढे छोडकर हे सामर्थ्य । बल । चले। राजा नगे उनकी ओर दौडे। उबंशी का जाप छूट पुरुषार्थी-वि० [स० पुरुपार्थिन् ] १ पुरुषार्थ करनेवाला । २ गया और वह स्वर्ग को चली गई। पुरुरवा बहुत दिनो तव उद्योगी।३ परिश्रमी । ४ बली। सामर्थ्यवान् । विलाप करते घूमते रहे। एक बार कुरुक्षेत्र के मतर्गत प्लव तीर्थ में हेमवती पुष्करिणी के किनारे उन्हे उर्वशी फि पुरुपाशी-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० पुरुपाशिन् ] [स्त्री० पुरुषाशिनी ] ( मनुष्य खानेवाला) राक्षस । दिखाई पड़ी। राजा उसे देखकर वहुत विलाप करने लगे उर्वशी ने कहा - 'मुझे अापसे गर्भ है. मैं शीघ्र प्रापर्व पुरुपास्थि-सञ्ज्ञा पुं० [स०] मनुष्य की हड्डी । पुत्रो को लेकर आपके पास पाऊँगी और एक रात रहूँगी। पुरुषास्थिमालो-सज्ञा पु० [ स० पुरुषास्थिमालिन् ] शिव (को०] । स्वर्ग में उर्वशी के गर्भ से घायु, अमावसु, विश्वायु, श्रुताय पुरुपी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] नारी । स्सी (को०) । पढ़ायु, बनायु, और शतायु उत्पन्न हुए जिन्हें लेकर वह राज पुरुपेंद्र-सशा पुं० [सं० पुरुपेन्द्र ] १ राजा । २ श्रेष्ठ पुरुष । के पास आई और एक रात रही। गधों ने पुरग्बा के पुस्पोत्तम-सज्ञा पुं० [म.] १ पुरुषश्रेष्ठ । श्रेष्ठ पुरुप । २. एक अग्निपूर्ण स्थाली दी। उम अग्नि से राजा ने बहुत विष्णु । ३ जगन्नाथ जिनका मदिर उडीसा में है। ४ धर्म यज्ञ किए। पुरुग्वा की राजधानी प्रयाग में गगा। शास्त्रानुसार वह निष्पाप पुरुष जो शत्रु मित्र प्रादि से सर्वदा किनारे थी। उसका नाम प्रतिष्ठानपुर था। उदासीन रहे । ५ जैनियों के एक वासुदेव का नाम । ६ २. विश्वदेव । ३ पार्वण श्राद्ध में एस देवता। कृष्णचद्र । ७ ईश्वर । नारायण । ८. अच्छा व्यक्ति या पुरैना-सा पी० [ स० पुटकिनी, हि० पुरइन ] दे० 'पुर इन' सहयोगी (को०) । ६ मलमास का महीना । प्रधिक मास । उ०-ज्यो पूरेन पर फुल्ल पद्मिनी तर चली, चले महा पुरुपोत्तम क्षेत्र-मज्ञा पु० [सं०] जगन्नाथपुरी । दिए हस सम युग बली। -साकेत, पृ० १३४ । पुरुपोत्तम मास-सञ्ज्ञा ५० [म० ] मलमास । अधिक मास । पुरेथा-मरा पुं० [हिं० पूरा + हाथ ] हल की मूठ । परिहथा । पुरुषोपस्थान-सज्ञा पुं० [सं०] अपने स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति पुरेभा-मज्ञा स्त्री॰ [ मं० करम, हिं० कुरेभा ] एक प्रकार की गाय को काम करने के लिये देना । एवज देना। दे० 'कुरेभा'। पुरुहूत'-सा पुं० [ मै० ] इद्र । पुरैन-गज्ञा पी० [सं० एटकिनी ] दे० 'पुरइन' । यौ०-पुरुहूतद्विप = इ द्रजीत । पुरैनि-मश पी० [हिं० ] ३० 'पुर इन' । पुरुहूत-वि० जिसका पावाहन बहुतों ने किया हो। पुरोगंता-नि०, सगा पुं० [ म० पुरोगन्तृ ] ° पुगेगामी ०।। पुरुहूति'-राजा सी० [ म०] दाक्षायणी । पुरोग-सज्ञा पुं० [सं०] कौटिल्य के अनुसार वह (नष्ट्र या राज। पुरुहूति-सज्ञा पुं॰ [स] विष्णु । जो बिना किमी प्रकार की बाधा या शत के अपने पक्ष पुरुरवा-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ एक प्राचीन राजा जिसका नाम और भाकर मिले। कुछ वृत्तात ऋग्वेद में है। पुरोगति-सहा पुं० [स० ] श्वान [को०।