पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३४९

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पुरुपद्विद ३०५८ पुरुषायवयंघ पुरुद्विट-सज्ञा पु० [स०] वह जो पुरुष अर्थात् विष्णुद्रोही हो (को०] । पुरुपवाह-सप्झा पुं० [40] १. गरुढ़ । ताक्ष्य । २ यक्षराज । पुरुषद्वेपिणो-मश पुं० [ म० ] पति से द्वेप या पृणा करनेवाली कुवेर [को०)। (स्त्री०)। पुरुपव्रत - पु० [सं०] एक प्रकार या साम । पुरुपद्व पो-० [ म० पुरुपदे पिन् ][१० सी० पुरुप पिणी] मनुष्य पुरुपशीर्पक-राशा पुं० [सं०] एक प्रकार का मनुष्य मा वनावटी से द्वेष रखनेवाला। सिर जिसको सेंध लगानेवाले संघ में प्रविष्ट कराते प [को०] । पुरुपौरेयक-सशा पुं० [ म० ] वरिष्ठ व्यक्ति । श्रेष्ठ या महान् पुरुपसधि-सा सी० [ i० पुरपसन्धि ] वह सपि जो गा कुछ व्यक्ति [को०)। योग्य पुरुषों को मपनी सेवा के लिये लेकर परे। पुरुपनक्षत्र-सज्ञा पुं० [स०] ज्योतिष शास्त्रानुसार हस्त, मूल, विशेप-कौटिल्प ने लिखा है कि यदि ऐसी अवस्था पा पडे श्रवण, पुनवसु, मृगशिरा और पुष्प नराम । तो राजा शत्रु को इस प्रकार के लोग दे-राजद्रोही, जगली, पुरुपनाथ-सा पु० [सं० ] सेनापति । २ नरनाथ । राजा । अपने यहाँ फे अपमानित सामत प्रादि । रासे गजा का पुरुपपशु-सज्ञा पुं० [स०] पशुवत् मनुष्य । नरपशु। क्रूर इनसे पीछा भी छूट जायगा पौर ये पत्रु के यहाँ जाकर व्यक्ति (को०] । मौका पाफर उसकी हानि भी करेंगे। पुरुपपुगव -सजा पुं० [ मं० पुरुपपुङ्गव ] श्रेष्ठ पुरुष । सुप्रसिद्ध पुरुपसिंघ-सा पुं० [सं० पुरुपसिंह ] २० 'पुरुषसिंह' । उ०- व्यक्ति [को०] । घवप नृपति दसरथ के जाए। पुरुषसिंघ बन सेलन पाए।- पुरुपपु डरीक-नशा पु० [सं० पुरपपुण्डरीक] जैनियो ने मतानुसार मानस, ३।१६ । नव वासुदेवो मे सप्तम वासुदेव । पुरुपसिंह-नशा पुं० [सं०] श्रेष्ठ पुरुप। मनुष्यों में सिंह की भांति वीर व्यक्ति [को०)। पुरुपपुर-सज्ञा पुं॰ [सं०] एक प्राचीन नगर जो गाधार की राजधानी था । अाजकल का पेशावर। पुरुपसूक्त-राजा पुं० [सं०] ऋग्वेद के दशम मडल के एक सूक्त पुरुपप्रेक्षा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ] मरदाना मेला तमाशा । वह रोल का नाम जो 'सहरमशीर्षा' से प्रारम होता है। यह सूक्त तमाशा जिसमें पुरुप ही जा सकते हो। बहुत प्रसिद्ध है और सपा पाठ भनेक अवसरों पर रिया पुरुपभोग-वि० [सं०] ( वह राष्ट्र यो राजा ) जिसके पास सेना जाता है। या प्रादमी बहुत हो । पुरुपाग-पडा ५० [सं० पुरपा ] पुरुष को जननेंद्रिय । लिंग [को०] । पुरुपमात्र-वि० [सं०] पुरुषप्रमाण । मनुष्य के बरावर [को०] । पुरुपमानी-वि० [ स०] अपने को वीर समझनेवाला [0] | पुरुपातर-रा पुं० [स० पुरुपान्तर ] मन्य व्यक्ति । दूसरा व्यक्ति । पुरुपमध-वशा पु० [स०] एक वैदिक यज्ञ जिसमे नरबलि की पुरुपातरसधि- मी० [सं० पुर पान्तरसन्धि ] इस शतं पर जाती थी। की हुई सघि फि प्रापमा सेनापति मेरा अमुक काम करे मोर मेरा सेनापति मापका प्रमुक काम कर देगा। विशेप-इस यज्ञ के करने का अधिकार केवल ब्राह्मण और क्षत्रिय को था। यह यज्ञ चैत्र मास की शुक्ला दशमी पुरुपाद-सा पुं० [सं०] १ ( मनुष्य सानेवाला ) राक्षस । २ से प्रारभ होता था और चालीस दिनो में होता था । इस वृहत्सहिता के अनुसार एक देश का नाम जो आर्द्रा, पुनर्वसु बीच मे २३ दीक्षा, १२ उपसत् भोर ५ सुत्या होती थी। मोर पुष्य फे मषिकार में है। इस प्रकार यह ४० दिनो मे समाप्त होता था । यज्ञ के समाप्त पुरुपादक-मज्ञा पुं० [सं०] १ नरभक्षी राक्षस । २ कल्माषपाद हो जाने पर यज्ञकर्ता वानप्रस्थाश्रम ग्रहण करता था। इसका का नान। विधान शुक्ल यजुर्वेद के तेईसवें अध्याय तथा शतपथ ब्राह्मण पुरुपाद्य-सशा पुं० [सं०] १ जिनो में प्रथम, आदिनाथ (जैन)। २ विष्णु । ३. राक्षस । पुरुपराव-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० पुरप+हिं० राव ] पुरुपराज । पुरुष- पुरुपाधम-सञ्चा पुं० [सं०] मघम व्यक्ति । नीच पुरुष । पुरुपापाषया-सा सी० [सं०] पनी भावादीवाली भुमि । वि० दे० पुरुपराशि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] ज्योतिष शास्त्रानुसार मेष, मिथुन, 'दुर्गापाश्रया भूमि'। सिंह, तुला, धनु और कुभ राशि । पुरुपायण-सज्ञा पुं० [सं०] १ प्राणादि पोमश फला (प्रश्नोप- पुरुपलिंग–सञ्चा पुं० [ स० पुरुष + लिङ्ग ] द० 'पुलिंग' । निषद्) । २ दे० 'पुरुषाथ'। पुरुषवर-सया पु० [ स०] विष्णु [को०] । पुरुपायित-सशा वि० [सं०] पुरुष के सदृश माचरण या व्यवहार । पुरुपवर्जित-वि० [सं०] सुनसान । वीरान [को०] । पुरुपायितवध-सचा पुं० [सं० पुरुपायितवन्ध ] कामशास्त्र के पुरुपवार--सचा पुं० [सं०] ज्योतिष शास्त्रानुसार रवि, मगल, मनुसार एक प्रकार का वष या लीस भोग का एक प्रकार वृहस्पति पोर थनिवार। जिसमें पुरुष नीचे चित्त लेटता है भौर ली उसके ऊपर