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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३५२

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नाम । ११ पुर्तगाली २०६१ पुलपुल विशेष-योरप की नई जातियो में हिंदुस्तान में सबसे पहले ४ शरीर में पहनेवाला एक कीडा । ५ रत्तो का एक दोष । पुर्तगाली लोग ही पाए । पुर्तगाली व्यारियो के द्वारा अकबर ६ हाथी का गतिय । ७. हरताल । ८. एक प्रकार का के समय से ही युरोपीय शब्द यहाँ की भाषा मे मिलने लगे । गद्यपान । ६ एक प्रकार की गई। १. एक गधर्व का जैसे, गिरजा, पादरी, भालू, तवाकू आदि का प्रचार तभी एक प्रकार का गेरू। गिरिमारी। १२. एक से होने लगा। प्रकार का कद । पुतगाली-मज्ञा स्त्री० पुर्तगाल की भाषा । पुलकना-कि० अ० [भ० पुलक +ना (प्रत्य॰)] पुलकित होना। पुर्वगीज-वि० [अ० ] पुर्तगाली। पुर्तगाल का रहनेवाला । प्रेम, हर्ष आदि के कारण प्रफुल्ल होना । गद्गद होना। पुवेला-वि० [हिं० ] दे० 'पुरवला' । पुलकस्पद-मशा पु० [सं० पुलक + स्पन्द ] पुलवाजनित स्पदन । पुलकित होने की स्थिति । उ०—जग के दूषित वीज नष्ट कर, पु-मशा पुं० [हिं० ] दे० 'पुरुष' । उ०-अवल्ला इकल्ली । पुलकस्पद भर लिखा स्पष्टतर ।-अपरा, पृ० ५६ । वियो पूर्ष भिल्ली।-पृ० रा०, १।५६ । पुलकांग-सझा पुं० [ स० पुलकान ] वरुण का पाश (को०] । पुर्साहाल-वि० [फा० पुर्सा + प्र० हाल ] हाल पूछनेवाला । समाचार लेनेवाला । ०-अभी पारसाल तक उसका कोई पुलकाई-सशा लो० [हिं० पुलक + थाई (प्रत्य॰)] पुलकित होने का भाव । गद्गद होना। पुहिाल नही था ।-शराबी, पृ० ६ । पुलकाना-कि० स० [ मं० पुलक + हिं० श्राना (प्रत्य॰)] पुलकित पुर्सा-सहा पुं० [सं० पुरुप ] दे० 'पुरसा' । करना । प्रफुल्लित करना । उ०-कुसुमों ने हँसना सिखलाया पुलंधर-सशा पुं० [सं० पुरन्दर ] दे॰ 'पुरदर' । मृदु लहरो ने पुलकाया।-वीणा, पृ० १२ । पुल-सज्ञा पुं० [ फा०] किसी नदी, जलाशय, गड्ढे या खाई के पुलकालय-सज्ञा पु० [ स०] कुबेर का एक नाम । पार पार जाने का रास्ता जो नाव पाटकर या खगो पर पुलकालि-सज्ञा स्त्री० [स०] पुलकावलि । हपं से प्रफुल्ल रोमराजि । पटरियाँ प्रादि बिछाकर बनाया जाय । सेतु । उ०-बीज राम गुनगन नयन जल भकुर पुलकालि । सुकृती मुहा०---पुल बँधना= पुल तैयार होना । पुल बाँधना= पुल सुतन सुपेनवर विलसत तुलसी सालि ।-तुलसी (शब्द०)। तैयार करना । ( किसी बात ) का पुल बँधना = ढेर लगना । पुलकावलि-सवा सी० [स० ] हर्ष से प्रफुल्ल रोम । रोमहर्ष । झडी बंधना। बहुत अधिकता होना । लगातार बहुत सा पुलकित-वि० [सं०] रोमाचित । प्रेम या हर्प के वेग से जिसके होना । (किसी बात का) पुल बाँधना= ढेर लगाना । झडी रोएँ उमर पाए हो । गद्गद । बांधना । बहुत अधिकता कर देना। अतिशय करना । जैसे, पुलको'- [वि० सं० पुलकिन् ] [ वि० स्त्री० पुलकिनी ] रोमाचमुक्त । बातों का पुल बाँधना, तारीफ का पुल बांधना। पुल हर्प या प्रेम से गद्गद होनेवाला । टूटना = (१) पुल गिर पडना । (२) बहुतायत होना । पुलकी-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० पुलकिन् ] १. धारा कदव । २. कदव । अधिकता होना । अटाला या जमघट लगना। जैसे,--देखने पुलकोत्कप-सञ्ज्ञा पुं० [ मं० पुलकोरकम्प ] हदि से रोमांचित हो के लिये भादमियो का पुल टूट पड़ा। कांपना किो०] । पुलर-सज्ञा पुं० [सं०] १ पुलक । रोमाच । २ शिव का एक पुलकोद्गम, पुलकोभेद-शा पु० [सं०] पुलक होना। रोमांच अनुचर। या रोमहर्ष होना [को०) । पुल-वि• विपुल । बहुत सा । पुलगा-सा पुं० [सं० प्लवग ? ] अश्व । घोडा। उ०-पुलग पुल -सक्षा पु० [ तु.] पैसा । पण (को०] । साज तिणनिजरू गुजराय ।-रघु० ६०, पृ० २४१ । पुलक-सज्ञा पुं० [म०] १ रोमाच। प्रेम, हर्ष श्रादि के उद्वेग पुलटा-सा सी० [हिं० पलटना ] ८० 'पलट' । से रोमकूपो (छिद्रो) का प्रफुल्ल होना। त्वक्कप । २. पुलटिस-मरा भी० [भ पोस्टिस ] फोटे, पाच पादि को पकाने एक तुच्छ घान्य । एक प्रकार का मोटा अन्न । ३ एक प्रकार या वहाने के लिये उसपर चढाया हुअा अलसो, रेडी आदि का रत्न । एक नग या वहुमूल्य पत्थर । याक्त । चुनरी। का मोटा लेप। महताब । कि० प्र०-चढ़ाना ।-चाँधना । विशेष-यह भारत मे कई स्थानों पर होता है पर राजपूताने पुलना-क्रि० प्र० [सं०/पुन्] १ चलना । उ०-(क) जेती जर फा सबसे अच्छा होता है। दक्षिण मे यह पत्थर विशाखपटम, मन माहि, पजर जइ तेती पुलइ ।-ढोला०, दू० १७१ । गोदावरी, पिचिनापली पौर तिनावली जिलो में निकलता (स) नाम निगुंगण की गम्म कैसे लहै ताप तिगुएण के पंप है। यह भनेक रगो का होता है-सफेद, हरा, पीला, लाल, पुलिया।-राम० धर्म, पृ० १३६ । २. कापना । कपित होना। काला, चितकबरा। जितने भेद इस पत्थर के होते हैं उतने उ०-छननकि वान वजि गोम धक । कायर पुमत गूरा और किसी पत्थर के नहीं होते। यह देखने मे कुछ दानेदार निसक।-पृ० रा०, ११६५८ | होता है । इसके द्वारा मानिक और नीलम कट सकते हैं। पुलपुला-वि० [ नु० ] दे० 'पुलपुला'।