पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३६३

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२०७१ पचरी पूँठ-सशा झी० [ स० पृप्ठ, प्रा० पुट ] पीठ । उ०-पथो उभा पूगवैर-राश पुं० [ स० ] सामूहिक शत्रुता । समूह से माता । अनेक पाथ सिर बुगचा बाधा पूंठ। मरना मुंह प्रागे खडा, जीवन ध्यक्तियो मे शगुना [को०] | का सब झूठ। -कवीर ( शब्द०)। पूगी-शा पुं० [ ८० पूगिन् । सुपारी या पेट । पूंचारना-क्रि० स० [स० प्रचारण ? ] प्रोत्साहित करना । पूगी-मशा स्त्री० [सं० पूग ] पारी। बढ़ावा देना। ललकारना । उ॰-कियो विदा जोधा सिरे, पूगोफल-राज पुं० [ म० पूगफल ] नुगारी । नूरमली पुतार । -रा० रू०, पृ० २६६ । पूषा-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० पूप, अपूप ] एक प्रकार की पूरी जो आटे पूग्य-वि० [सं० ] सामूहिक (को०) । को गुहु या चीनी के रस में घोलकर घी मे छानी जाती है । पूचलचर-० [हिं० पोघ ] पोच । निदित कार्य करनेवाला। स्वाद के लिये इसमे कतरे हुए मेवे भी छोडते हैं। मालपुप्रा । उ०-वचा हमारे प्राग तुम क्या पूचलचर हो । पोरतों का भुगतान सत्र में ही करता।। -गारतेंदु ग्रं०, मा०३, एक पकवान। पृ०८१४। पूकारना@-क्रि० स० [हिं०] द० 'पुकारना' । उ०—कहत हौं ज्ञान पूकारि करि सभन से । देत उपदेश दिल दर्द जानी।-कबीर पूछ-मानी [ हिं० पृष्पना ] १ पूपने रा भाव । जिज्ञागा। रे०, पृ०२७। २ सोज । चाह। जरूरत । तलव। जैस,-प्राप वहाँ अवश्य जाइए, वह आपकी सदा पूछ रहती है। ३ प्रादर । पूखन'-सरा पुं० [सं० पोपण ] ६० 'पोपण'। उ०-भजे न दूखन कोप छिनहिं दिन पूखन होई।- सुधाकर (शब्द॰) । पावभगत । यातिर। इज्जत । जैसे,-तनिक भी पूरन होने पर तो तुम्हारे मिजाज का यह हाल है, जो कुछ हाती पूखन-तज्ञा पुं॰ [ स० पूपण ] सूर्य । तो न जाने क्या करते । ४ मांग। सपत । जैसे,—प्राजात पूग-सज्ञा पु० [सं०] १ सुपारी का पेड या फल । उ०-घोटा क्रमुक बाजार में इसकी वो पूछ है। गुवाक पुनि पूग सुपारी पाहि । -अनेकार्य०, पृ० १०१ । २ ढेरा। अकोल। ५ शहतूत का पेड । ४ कटहल । ५ पूछगछौ, पूछगाछ-सशा पा० [हिं० ] दे० 'पूछताछ' । एक प्रकार की कटोरी। ६ भाव । ७. छद । ८ समूह । पूछताछ - सा पी० [हिं० पूना ] कुछ जानने के लिये प्रश्न करने की क्रिया या भाव। किमी वात का पता लगाने के वृद। ढेर । ६ किसी विशेष कार्य के लिये बना हुआ सघ । कपनी। लिये बार बार पूछना या प्रश्न करना । शतचीत करके विशेष-काशिका में कहा गया है कि भिन्न जातियो के लोग किसी विषय में पोज, अनुसंधान या जांच पड़ताल । आर्थिक उद्देश्य से जिस संघ मे काम करें, वह 'पूग' कहलाता जिज्ञासा। जैसे,-घटो पूछताछ करने के बाद तब इस मामले में इतना पता चलता है। है। जैसे, शिल्पियों या व्यापारियो का पूग। याज्ञवल्क्य ने इस शब्द को एक स्थान पर बसनेवाले भिन्न भिन्न जाति के पूछना-क्रि० स० [सं० पृच्छण ] १ पुछ जानने के लिये किसी लोगो की सभा के अर्थ में लिया है। से प्रश्न करना। कोई बात जानने की इच्छा से सवाल पूगकृत-वि० [ स०] १ स्तूप के आकार मे स्थापित । स्तूपाकार करना। जिज्ञासा करना। कोई वात दरियाफ्त करना। किया हुमा । जो टीले के प्राकार का हो। २ सगृहीत । जैसे,-किसी का नाम पता पूछना, किसी चीज का दाम इकट्ठा किया हुआ । ढेर । राशि । पूछना। २ सहायता करने की इच्छा से किसी का हाल जानने की चेष्टा करना। खोज खबर लेना। जैसे,—इतने पूगना'-क्रि० अ० [हिं० पूजना ] पूरा होना । पूजना । जैसे- मिती पूगना। उ०-सकट समाज असमजस मे रामराज वडे शहर में गरीबो को कौन पूछता है ? ३ किसी व्यक्ति के प्रति सरकार के सामान्य भाव प्रकट करना । किसी का कुशल, काज जुग पूगनि को करतल पल भो। —तुलसी (शब्द०)। पूगनाg२-क्रि० अ० [हिं० पहुँचना ] दे० 'पहुंचना'। स्थान प्रादि पूछना या उससे बैठने घादि के लिये कहना । उ०- प्रारभे प्रति फौज अकारी। दिल्लीपत पूगी दहवारी। सवोधन करना । जैसे,—तुम चाहे जितनी देर यहाँ खडे रहो, तुम्हें कोई पूछनेवाला नहीं। रा०६०, पृ० ५६ । मुहा०-घात न पूछना = (१) तुच्छ जानकर बातचीत न पूगपात्र-सक्षा पु० [ स०] पीकदान । उगालदान । करना। ध्यान न देना । (२) प्रादर न करना। पूगपीठ-नशा पुं० [सं०] पीकदान । ४ अादर करना । गुण' या मूल्य जानना। कद्र करना । किसी पूगपुष्पिका-सज्ञा स्त्री० [ स०] विवाह सबध स्थिर हो जाने पर लायक समझना। प्राश्रय देना । जैसे,—इस शहर में तुम्हारे दिया जानेवाला पुष्प सहित पान । पानफूल । गुण को पूछनेवाले बहुत कम हैं। ५ ध्यान देना । टोकना । पूगपोट-शा पुं० [सं० ] सुपारी [को॰] । जैसे,—तुम बेखटके चले जाओ, कोई नही पूछ सकता। पूगफल-सझा पुं० [सं०] सुपारी । पूछपाछ-सच्चा स्त्री॰ [हिं० पूछना ] दे० 'पूछताछ' । पूगमड-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पुगमयट ] पाकड । प्लक्ष । पूछरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पूछ+री (प्रत्य॰)] १ दुम । पूगरोट-सज्ञा पुं० [स०] एक प्रकार का ताड । हिताल । २ पीछे का भाग।