छगच्छ ३०७१ जीवाटी की सघि में या उससे निकलकर नीचे की ओर कुछ दूर तक पूँछलतारा-तज्ञा पु० [हिं० पुच्छल + तारा ] 70 'तु' या लवा चला जाता है। जतुप्रो, पक्षियो, कोडो प्रादि के शरीर 'पुच्छलतारा'। में सिर से प्रारभ मानकर सबसे प्रतिम या पिछला भाग। पूछि-मझा ग्पी० [ म० पुच्छ ] - 'पूछ' । उ-ते ५ यूरे पुच्छ । लागूल । दुम । वाउरे भेंड पूछि जिन्ह हाथ । —जायसी ग, पृ० ८७ । विशेष--भिन्न भिन्न जीवो की पूछ भिन्न भिन्न श्राकार की पूँजना'-क्रि० स० [ देश० ] नए बदर को पकडगा । (कल् दर) । होती हैं । पर सभी की पूछे उनके गुदमार्ग के ऊपर से ही पूजना@२–क्रि० स० [हिं० ] दे० 'पूजना' । उ.--जिमि सौदागर पारभ होती हैं । सरीसृप वर्ग के जीवो की पूछे रीढ़ की हड्डी साहु मिलाही। पूजि जोग बहु लाभ बढ़ाही । -कावीर को सीध मे आगे को अधिकाधिक पतली होती हुई चली जाती सा०, पृ० ४४४ । हैं । मछली की पूछ उसके उदरभाग के नीचे का पतला भाग पूंजी-मज्ञा ग्पी० [ म० पुञ्ज ] १. किसी व्यक्ति या गमुदाय का है। अधिकाश मछलियो की पूछ के प्रत में पर होते हैं। ऐसा समस्त धन जिसे वह किसी व्यवमाय या काम में लगा पक्षियो को पूछ परों का एक गुच्छा होती है जिसका म तिम सके। किमी की अधिकारभुक्त वह मपर्ण सामग्री या वस्तुएँ भाग अधिक फैला हुआ और प्रारभ का सकुचित होता है । जिनका उपयोग वह अपनी प्रामदनी बढ़ाने मे पा सकता कीडो की पूछ उनके मध्य भाग फे और पीछे का नुकीला हो । निर्वाह की आवश्यकता से अधिक धन या सामग्री। भाग है । भिड़ का हक उसकी पूंछ से ही निकलता है । स्तन- सचिन धन । संपत्ति । जमा। २. यह घन या रुपया जो पायी जतुप्रो में से कुछ की पूछ उनके शेष शरीर के बगयर किसी व्यापार या व्यवसाय में लगाया गया हो। वह धन या उससे भी अधिक लबी होती है, जैसे लगूर की। इस जिससे कोई कारोबार प्रारम किया गया हो या चलता हो। वर्ग के प्राय सभी जीवों की पूंछ पर वाल नहीं होते, रोएँ किसी दूकान, कोठी, फारसाने, बैंक प्रादि की निज की चर होते हैं। हाँ किसी किसी की पूछ के अंत में बालो का या प्रचर मपत्ति । मूलधन । उ०-पूजी पाई माच दिनोदिन एक गुच्छा होता है। पर घोडे की पूंछ पर सर्वत्र वसे वडे होती वढनी। सतगुर के परताप भई है दौलत चढनी।- वाल होते हैं। पलटू०, पृ० ३६। मुहा०-(किसी की) पूँछ पकड़कर चलना = (१) किसी के क्रि०प्र०-लगाना। पीछे पीछे चलना । किसी का पिछुपा या पिछलग्गू बनना । मुहा०-पूजी सोना या गँचाना = व्यापार या व्यवसाय मे हर बात मे किसी का अनुगमन करना। वेतरह अनुयायी इतना घाटा उठाना कि कुछ लाभ के स्थान पर पूजी में होना (व्यग्य) । (२) किसी के सहारे से कोई काम करना । से कुछ या कुल देना पड़े। ऐमा घाटा घटाना कि मूलधन सहारा लेना या पकडना । किसी विषय में किसी की सहायता की भी हानि हो। भारी घाटा या क्षति उठाना । पूंजीदार पर निर्भर होना (व्यग्य) । पूँछ दवाना = बहुत ही विनीत या पूँजीवाला = किसी व्यापार या उदाम मे जिसने धन या अधीन भाव दिखाना । उ०-दुबरी कानी होन सवन विन लगाया हो। जिसने मूलधन या पूंजी लगाई हो । पूंछ दबाए ।-प्रज० ग्र०, पृ० ११० । पूँछ हिलोथल = ३ धन । रुपया पैठा । जैसे,—इस समय तुम्हारी जेन मे पुर चापलूसी। मीठी मीठी बातें कहना । उ०-सपादक महाशय पूजी मालूम होती है । ४. किमी विशेष विषय में किसी की पूछहिलोपल कर सुनी बात अनसुनी करना चाहते थे।-प्रेम योग्यता । किसी विषय में किसी का परिज्ञान या जानकारी। घन०, भा॰ २, पृ० २३ । यदी पूंछ का श्रादमी = बहुत किसी विषय में किसी की सामर्थ्य या वल। (बोलचाल में अषिक समानित । इज्जतदार । उ०-एक बोला वह वडी क्व०) । ५@पुज । समूह । ढेर । उ०- रतनन की पूजी पूंछ के मादमी हैं । दूसरे ने कहा अच्छी वे पर की उड़ाई। पति राज। फनक करधनी पति छवि छ.ज (--गोपाल -फिसाना०, भा० ३, पृ. ५०७ । (शब्द०)। २ पिसी पदार्थ के पीछे का भाग । ३ पिछलग्गू । पुछल्ला । पूँजीदार-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पू जी + फा० टार ] दे० 'पूजीपति' । जो किसी के पीछे या साथ रहे। पूँजीपति-मज्ञा पु० [हिं० पूँजी+म० पति ] वह मनुष्य जिस- मुहा०-(किसी की) 'ष होना = पुछल्ला बनना। पिछलग्गू के पास अधिक धन हो, जिने उमने किसी काम म लगाया बनना । मषानुयायी होना। हो अथवा जिसे वह किसी काम में लगाये । पूंनीदार । पूँछगच्छ-सज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे॰ 'पूछगाछ' । पूँजीवाद-सग पुं० [हिं० पुजी+स० वाट ] समाज पी यह पूंछडी -सशा सी० [हिं० छ+दी (प्रत्य०) ] १. पूछ। २ अर्थव्यवस्था जिसमें अधिकाधिक लाम पर रष्टि गने वाले वह पानी जो नाले में चढाव के प्रागे मागे चलता है। घनी समुदाय फा, उत्पादन और पितरण के सायनो पर, माधिपत्य हो जाता है । सामाजिर नमविमान के अनुसार पूँछताछ-सया स्त्री० [हिं० 'ना ] दे० 'पूछताछ' । पूजीवाद सामंतवाद के बाद का घरण है। Jछना-क्रि० स० [हिं• पूछना ] ३० 'पूछना' । पूँजीवादी-वि० [हिं० पूंजीवाद ] पूषीवाद को माननेवाला। आपाँच-सशा श्री० [हिं० पृष्ठमा ] दे० 'पूछपाछ' । पूंजीवाद के सिद्धात फा भनुयायी।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३६२
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