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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३६७

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→, 'पृटरीना'। पूतिपल्लवा २०७६ पूपली' पूतिपल्लवा-संज्ञा स्त्री॰ [ सं०] वडा करेला । पूत्यंड-सक्षा पुं० [ म० पून्यण्ड] १ वह हिरन जिमनी नागि से पूतिपुष्प-सझा पु० [ मे० ] गोदी । इ गुदी वृक्ष । कस्तूरी निकालती है । २ सय बदबूदार गीडा । गपपीट । पूतिपुष्पिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] चकोतरा नीबू । पूत्रित-वि० [सं०] पूजन किया हुप्रा । पृजित । पूतिफल-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] बावची । सोमराजी। पूथ--Hश पुं० [ दरा०] वालू का ऊंना टोला या टूह। पूथा-सरा पुं० [ ] दे० 'पूध' । पूतिफला-सरा जी० [म• ] दावची । पूतिफली- -सया स्त्री० [सं०] वावची [को०] । पूथिका-मज्ञा पी० [म.] पतिका गाक। पोई का साग । पूतिभाव-सज्ञा पुं॰ [स०] सडने की स्थिति या दशा । सडने का पूपना'-70 पु० [हिं० फुटरुना] एक पक्षी जो उत्तरी भारत भाव या क्रिया [को०)। मे पाया जाता है। पूतिमज्जा-सा मो० [सं०] गोदी । इगुदी वृक्ष । विशेप-सवा रग प्राय भूग होता है, परतु मनुसद ये अनुसार कुछ कुछ बदलता रहता है। इसका शरीर प्राय पूतिमयूरिका - सशा नी० [ स०] १ वर्वरी । २ बनतुलसी । मात इंच लवा होता है। यह जमीन पर चला फरता है और पूतिमारुत-मग पु० [२०] १ छोटी वेर का पेड । २. वेल का पेड । घास का घोसला नारर रहता है। पूतिमाष-सक्षा पुं० [स०] एक गोत्रप्रवर्तक ऋषि । पूदना-सज्ञा पु० [फा० पोदनह हिं० पुदीना ] पूतिमुद्गला-मज्ञा स्त्री० [ स० ] रोहिष सोषिया । रोहिष तृण । पून'--सा पु० [३०] १ जगली बादाम का पैर जो भान्न के पूतिमूपिका-नशा पी० [ मं०] छछू दर । पश्चिमी किनारो पर होता है। पूतिमृत्तिक -संज्ञा स्त्री॰ [म.] पुराणानुसार इक्कीस नरयो में से विशेष-इमो फूल और पत्तियां दवा के काम णती है और एक नरक का नाम । फल में से तेल निकाला जाता है। इस वृक्ष में एक प्रकार पूतिमेद का गोद निकलता है।

- सझा पु० [ मं० ] दुर्गध बेर । मरिमेद ।

पूतियोनि-नशा पुं० [म० ] एक प्रकार का योनि रोग । २ पालपून नामक वृक्ष जिसकी लगाती इमारत बनाने के काम में पाती है । इसके बीजो से एक प्रकार का तेल भी निकलता पूतिरक्त-मशा पु० [ स०] एक रोग जिसमें नाक में से दुर्गघियुक्त रक्त निकलता है। है। ३ तलवार की मुठिया का नीचेवाना सिरा । पून --ता पुं॰ [ पुण्य, प्रा० पुन्न ] दे० 'पुण्य' । पूतिरज्जु-पशा सी० [ म० ] एक लता । पून-सा पुं० [सं० पूर्ण ] ३० 'पूर्ण' । उ०-तैसोइ लहंगा पूतिवक्त्र-वि० [सं०] जिसके मुह से दुगंध पाती हो (को०] । वन्यो सिलसिलो पूर्णमासी की पून री।-नवदास (गन्द०)। पूतिवर्वरी-सजा पी० [ मं० ] वनतुलसी । जगली तुलसी। काली पूनव--सक्षा सौ. [ हिं० पूनो ] दे० 'पूनो' या 'पूणिमा' । पूतिवात-श पुं० [ मं० ] १ बेल का पेड। विल्व वृक्ष । २ गदी पूनसलाई-सश ग्री० [हि० पूनी + सलाई ] यह पतली लपही जिमपर रूई की पूनियां कातने के लिये बनाते हैं। वायु । दुर्गंधयुक्त वायु [को०] । पूना--सझा पुं० [*ग०] १ कनपून या पन नाम का मदाबहार पूतिवाह-तज्ञा पुं० [ म० ] विल्व वृक्ष । वेल का पेड [को०] । पेड । २ एक प्रकार की ईस । पूतिवृक्ष-सज्ञा पुं० [सं०] सोना पाठा। श्योनाक वृक्ष । पूनाको-सशा पी० [देश॰] तेलहन मे की बची हुई सोठी । खली। पूतिव्रण- सज्ञा पुं० [ स० ] वह फोडा जिसमें मवाद हो । मवाद देने- पूनिउँ, पूनिव--सा पी० [ सं० पूणिमा ] 'पूनो'। 30- वाला फोडा [को०] । पदमावति भय पूनिवे फला। चौगह चांद पा सिंघला । पूतिशाक-सज्ञा पुं० [ म० ] मगस्त । वकवृक्ष । -जायसी ग्र०, पृ० ३५० ॥ पूतिशारिजा-उज्ञा स्त्री॰ [ म० ] बनविलाव । पूनी-सा पी० [म० पिञ्जिका ] धुनी हुई रूई की यह वत्ती जो पूतिस जय-सज्ञा पुं॰ [ स० पूतिसृञ्जय ] १ एक प्राचीन जनपद या चरसे पर सूत कातने के लिये तैयार की जाती है। देश । २ उक्त देश के निवासी । पूनो-सा मा० [स० पूर्णिमा ] पूणिमा । पूर्ण मासी । शुक्त पूती-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० पोत ( = गट्ठा)] १ जड जो गांठ के रूप पक्ष की पद्रहवी या चादमास की मतिम तिथि। मे हो । २ लहसुन की गोठ । पून्यो-सचा रा [ म० पूर्णिमा ] दे० 'पूनो'। उ०-पून्यो प्रगट पूतीक-सज्ञा पुं० [म०] १ दुर्गघ या कांटा करज । २ गधमार्जार । नभ भा उज्यारा बुधि पिड सरीर ।-रामानद०, पृ० १६ । मुश्क विलाव। पूप-सज्ञा पुं॰ [ म०पूप, अनूप ] पूना या मालपुप्रा नाम का मीठा पतीकरज-सझा पुं० [ ने० पूतीकरज ] काँटा करज । पूपला-सा ग्मी० [ म०] प्राचीन काल का एक प्रकार का मीठा पतीका-सज्ञा स्त्री० [सं०] पोय । पोई। पूतिका शाक । पकवान । पूत्कारी-मशा सी० [सं०] १ सरस्वती देवी का एक नाम । २. पर्या०- पूपाक्षिका । पूपाली । पूपिका । पृलिका । नागों की राजधानी। पूपली'-सज्ञा स्त्री० [सं०] २० 'पूपला' । वर्वरी। म पकवान।