पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पूर्णानंद ३०२ पूर्णानद-सज्ञा ॰ [सं० पूर्णानन्द ] परमेश्वर । पूर्णदु-सज्ञा पुं० [सं० पूर्णेन्दु ] पूर्णिमा का चद्रमा । पूर्ण चद्र । पूर्णानक-शा पुं० [ सं०] १ ढोल । नगाडा । २. नगाडे की पूर्णोत्कट-सचा पुं० [सं० ] मार्कडेय पुराण मे उल्लिखित एक ध्वनि। ३ पात्र । वर्तन । ४ चद्रमा की किरण । ५ दे० पूर्वदेशीय पर्वत । पूर्णा-२" (को०] । पूर्णोत्संग-सञ्ज्ञा पु० [सं० पूर्णोत्सङ्ग ] माघवश का एक राजा । पूर्णाभिलाप-नि० [ स० ] जिसकी अभिलापा पूर्ण हो गई हो। पूर्णोदरा-मज्ञा स्त्री० [सं०] एक देवी । परितुष्ट । सतुष्ट [को०] । पूर्णपिमा-मज्ञा पु० [सं०] उपमा अल कार का वह भेद जिसमें उसके पूर्णाभिषिक्त-संज्ञा पुं॰ [ स०] शाक्तो का एक विशेष वर्ग [को०] । चारो मग अर्थात् --उपमेय, उपमान, वाचक, और धर्म पूर्णाभिषेक-, पुं[म०] वाममागियो का एक तात्रिक संस्कार । प्रकट रूप से प्रस्तुत हो । जैसे, इंद्र मो उदार है नरेंद्र मारवाड अभिषेक । महाभिषेक । को, इसमें 'मारवाड को नरेंद्र' उपमेय, 'इद्र' उपमान, 'सो' विशेप-यह सस्कार विसो नए साधक के गुरु द्वारा दीक्षित वाचक पौर 'उदार' धर्म चारो प्रस्तुत हैं। होने के समय किया जाता है और कई दिनों में पूरा होता पूर्त-सचा पुं० [स०] १. पालन । पूरा करना । २ खोदने अथवा है। इसमे अनेक क्रियानो के उपरात गुरु अपने शिष्य को निर्माण करने का कार्य । पुष्करिणी, सभा, वापी, बावली, दीक्षा देकर वाममार्ग की कियामो और सस्कारो का अधिकारी देवगृह, पाराम (बगीचा), सहक प्रादि बनाने का काम । ३ बनाता है। सम्मान । पुरस्कार । इनाम (को०)। पूर्णामृता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ म० पूर्ण + अमृता ] चद्रमा की सोलहवी पूर्व-वि० १ पूरित । पूरा किया हुआ । २ ढंका हुा। भाच्छा- कला (को०] 1 दित । छन्न । ३ पोषित । रक्षित (को०)। पूर्णायु' -सञ्ज्ञा मी० [सं० पूर्णायुस. ] १. सौ वर्ष की आयु । सौ वर्ष पूर्तविभाग-सज्ञा पुं० [सं० पूर्त + विभाग ] वह सरकारी विभाग तक पहुँचनेवाला जीवनकाल । २ पूरी प्रायु। ३ महाभारत या मुहकमा जिसका काम सड़क, नहर, पुल, मकान मादि में उल्लिखित एक गधर्व । बनवाना है । तामीर का मुहकमा । पूर्णायु-वि० १ पूरी प्रायुगला। जिसने पूरी उम्र पाई हो। २ पूर्ति-सज्ञा स्त्री० [सं०] १. किसी भारभ किए हुए कार्य की सौ वर्ष तक जीनेवाला। समाप्ति । २ पूर्णता । पूरापन । ३ किसी कार्य मे अपेक्षित पूर्णलक -सज्ञा पुं॰ [ मं०] दे० 'पूर्णानक' [को०] । वस्तु की प्रस्तुति । किसी काम में जो वस्तु चाहिए उसकी पूर्णावतार-मझा पुं० [सं०] १ ऐसा अवतार जो अशावतार न कमी को पूरा करने की क्रिया । ४ वापी, फूप, या तडाग हो । किसी देवता का सपुर्ण कलामो से युक्त अवतार । मादि का उत्सर्ग। ५ भरने का भाव । पूरण। गुणा पोडश कलायुक्त अवतार । २ विष्णु के वे अवतार जो करने का भाव । गुणन । अशावतार नहीं थे। पूर्ती'- वि० [सं० पूत्तिन् ] १. तृप्ति देनेवाला । २ इच्छा पूर्ण विशेष-ब्रह्मवैवर्त पुराण के मत से विष्णु भगवान के सोलहो करनेवाला । ३. पूरित। कलायुक्त अवतार नृसिंह, राम और श्रीकृष्ण हैं। पूर्ती-सञ्ज्ञा पुं० श्राद्ध । पूर्णाश-वि० [ म० ] जिसकी सभी आशाएं पूर्ण हों [को०।' पूर्व-प्रज्ञा पुं० [सं० पूर्व ] दे० 'पूर्व' । पूर्णाशा-सञ्ज्ञा सी० [ सं० ] महाभारत में उल्लिखित एक नदी। पूर्व-वि० दे० 'पूर्व' । पूर्णाहुति-जा मी० [स० ) १ किसी यज्ञ की प्रतिम आहुति । पूर्व - -सज्ञा पु० [हिं०] दे० 'पूर्वज' । उ०-जिनके भाग भए पूर्वज वह आहुति जिसे देकर होम समाप्त करते हैं। होम के प्रत के ते वहि संग रहयो रे। -जग श०, भा०२, पृ० ८७ । में दी जानेवाली पाहुति । २ किसी कर्म की समाप्ति या समाप्ति पूर्य-वि० [सं०] १ पूरा करने योग्य अथवा जिसे पूरा करना के समय होनेवाली क्रिया हो । पूरणीय । २ पालनीय । पूर्णि-सझा सी० [ म० ] पूणिमा । पुर्णमासी । पूर्य-संज्ञा पुं० एक तृण धान्य । पूर्णिका-सशा मा० [सं०] एक चिडिया जिसकी चोच का दोहरी पूर्व-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] १ वह दिशा जिस प्रोर सूर्य निकलता हुमा होना माना जाता है । नासाच्छिनी पक्षी। दिखलाई देता हो। पश्चिम के सामने की दिशा । २ जैन पूर्णिमा-सज्ञा ग्मी० [सं० ] पूर्णमासी । वह तिथि जिस दिन चद्रमा मतानुसार सात नील, पांच खरब, साठ पर्व वर्ष का एक अपने पूरे मडल के साथ उदय होता है । कालविभाग। ३ पूर्वज । पुरखा (को०)। ४ अगला भाग । पर्या०-पौर्णमासी। पिठ्या । चादी। पूर्णमासी । अनंता । मागे का हिस्सा (को०)। चद्रमाता | निरजना । ज्योत्स्नी । इंदुमती। सिता । अनुमती। पूर्व–वि० [सं०] १. पहले का । जो पहले हो या रह चुका हो। २. प्रागे का। अगला । ३ पुराना । प्राचीन । ४ पिछला। पूर्णिमासी-शा स्त्री० [सं०] पूर्णमासी । पूर्णिमा [को०] । ५ बडा । ६ पूर्व का । पूरब में स्थित (को॰) । राका।