पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३७८

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पृच्छना ३८६७ पृथीनाथ पृच्छना-संज्ञा स्त्री० [सं०] पूछना । जिज्ञासा करना । (जैन)। पृथगजन-सा पुं० [सं०] १. मूर्स । बेवकूफ । २ नीच व्यक्ति। पृच्छा-सया स्त्री० [सं०] १. प्रश्न । सवाल। जानकारी के लिये कमीना प्रादमी । ३ पापी। प्रश्न २ भविष्य सवधी जिज्ञासा [को०] । पृथग्वीज-मज्ञा पुं० [सं०] भिलावा । पृच्छथ-वि० [ स०] जो पूछने योग्य हो। पृथग्भाष-सज्ञा पुं० [सं०] १ पृथक्ता । भिन्नता । २ अवस्थातर । पृछक-वि० [८० पृच्छक ] दे० 'पृच्छक' । उ०-सुन भो पृछक भिन्न अवस्था (को०] । तोहि सत्रुन को प्राधीन एक वा होहगी। पे जो मन पृथग्रूप, पृथग्विध-वि० [सं०] भिन्न रूप और माकृति का । नाना चाहि है सौ तेरौ कार्ज होयगौ। -पोद्दार अभि० ग्र०, प्रकार का [को०] । पृ० ४८४। पृथमी-सचा स्त्री० [सं० पृथवी ] द० 'पृथ्वी' । उ०-प्रथम अंश पृणाका-संज्ञा सज्ञा [ सं०] मादा पशु जो जवान हो। जवान मादा ते माया भयऊ । शुक्ल वीज पृषमो महं ठएक 1-कवीर पशु को०। सा०, पृ० ६१२। पृतन-सज्ञा-पु० [सं०] १ सेना । फौज । २ प्रतिपक्षी योद्धा [को०। पृथवी-मज्ञा स्त्री० [म० ] दे॰ 'पृथ्वी' । पृतना-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ सेना का एक विभाग जिसमे २४३ पृथा-सच्चा पुं० [स० ] कुतिभोज की कन्या कुती का दूसरा नाम । हाथी, २४३ रथ, ७२६ घुडसवार और १२१५ पैदल सिपाही यौ०-पृथापति । पृथासुत, पृथासूनु, पृथानदन = दे० 'पृथातनय'। होते हैं। उ०-घर घरु मारु मारु सबद अपार फेल्यो इत पृथाज-सशा पुं० [ म०] १. पृथा या कुती के पुत्र युधिष्ठिर, अर्जुन उत घहैं पर पृतना करै विहह । -गोपाल (शब्द०)। २ प्रादि । २ अर्जुन का पेड। सेना । फौज । ३ युद्घ । लडाई । पृथातनय-सज्ञा पुं० [सं०] युधिष्ठिर, पर्जुन, भीम ( विशेषत. पृतनानी-सज्ञा पुं० [ मैं०] १. पृतना नामक सेना के विभाग का अर्जुन)। पृथापति-सशा पुं० [सं०] पृथा के पति । राजा पाड्ड (को०] । अफसर । २ सेनापति। पृथिका-सचा त्री० [सं०] गोजर । कनखजूरा [को०] । पृतनापति-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'पृतनानी' । पृथिवी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे० 'पृथ्यो' । पृतनायु-वि० [सं०] विपक्षी । द्वेषी । प्रतिरोधी (को०] । यो०-पृथिवीकप । पृथिवीक्षित् । पृथिवीनाथ, पृथिवीपरि- पृतनापाट्-सज्ञा पुं० [सं०] इद्र। पालक, पृथिवीभुजग = राजा। नरेश । पृथिवीभृत् = पर्वत । पृतनासाह-संज्ञा पुं० [सं०] इद्र । धरणीधर । पृथिवीमहल = भृमहल । पृथिविरुह = पृथिवी पर पृतन्या-सज्ञा स्त्री० [सं०] सेना। फौज । पैदा होनेवाले वृक्ष । पृथिवी लोक । पृतन्यु-वि० [ सं० ] जो युद्ध करना चाहता हो। जो लडने के पृथिवोकप-Hशा पुं० [सं० पृथिवीकम्प ] दे० 'भूकप' । लिये तैयार हो। पृथिवीक्षित् - सज्ञा पुं॰ [सं०] राजा। पृथक्-वि० [ सं० पृथक्, पृथग् ] भिन्न । अलग । जुदा । पृथिवोजय-परा ० [.] एक दानव का नाम । पृथक्करण-सचा पुं० [म०] अलग करने का काम । विश्लेषण । पृथियोतीथ-पज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक तीर्थ पृथक्रिया-सहा पी० [सं० ] दे० 'पृथककरण' । पृथक्क्षेत्र-सक्षा पुं० [सं०] एक ही पिता परतु भिन्न माता से पृथिवीपति-पश पुं० [सं०] १ ऋषभ नामक पोषप । २ नरति । उत्पन्न सतान। राजा । ३. यम। पृथक्चर-वि० [स०] अफेला या भलग चलनेवाला (को०)। पृथिवीपाल-सञ्ज्ञा पुं० [ सं०] राजा। पृथक्का-सचा जी० [सं० ] पृथक् या अलग होने का भाव । पृथिवीप्लव-संज्ञा पुं० [सं०] समुद्र [को०] । मलहदगी । घलगाव। पृथिवोभुज् -सरा पुं० [सं०] राजा । पृथक्त्व-सज्ञा पुं० [सं०] पृषक होने का भाव । अलगाव । पृथिवीलोक-सशा पु० [ म० ] मत्यलोक [को०) । पृथक्त्वचा-सया स्त्री० [सं०] मूर्वा लता। पृथिवोश-ज्ञा पुं० [सं०] राजा। पृथपिंड-सा पु० [सं० पृथपिएट ] दूर का वह सबधी जो पृथिवीशुक्र-सरा पुं० [सं०] राजा । पलग पिंडदान करता है [को०] । पृथी।-सश ग्री० [नं० पृथियी] ० 'पृथ्वी' । उ०- नीर पृथगात्मवा-सक्षा सी० [सं०] १. विरक्ति। वैराग्य । २ भेद वह सरस तहकीक कर, राम का नाम जो पी लावा ।- प्रतर । ३. विशेषता । विशिष्टता (को०)। फीर रे०, पृ०१५। पृथगात्मा-वि० [सं०] पृथक् । भिन्न । विशिष्ट [को० । पृथ-श पुं० [सं०] वेणु के पुत्र राजपि पृयु का एक नाम । पृथगात्मा-सवा . जीवात्मा [को०)। पृवीनाथ-मया पुं० [सं० पृथिवी, हि• पृथो+० नाथ ] पृषिरी पृथगामिका-सया स्त्री० [सं०] वैशिष्टय से पूर्ण । विशिष्टतायुक्त । का स्वामी राजा। का नाम। ।