पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३८८

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पेड़ाइत पेटात्त मध्यवर्ग का हो। उ०—जो कला कातिवाद या पदार्थवाद ज्वाला । भूख । उ०-जाति के सुजाति के कुजाति के पेटागि वश, खाए टूक सबके विदित बात दुनी सो। -तुलसी मूलक उपयोगितावाद में व्यक्त होती है वही कला है, वाकी (शब्द०)। सब पेटी जुवा या वर्जुवा भावुकता है तो मैं आपसे कहता पेटात्त ।-व० [ हिं० पेटायूं ] दे० 'पेटार्थ' । हूँ कि हम न केवल झूठ बोलते हैं वरन् आत्मप्रवचना भी करते हैं। -कुंकुम (०), पृ०८ । पेटार@-सञ्ज्ञा पुं० [ स० पेटक ] पिटारा। उ०-तिल चारो पानिप सलिल अलक फद पल जार । मन पच्छी गहि के किते पेटू-वि० [हिं० पेट ] १ जिसे सदा पेट भरने की ही फिक्र रहे । डारे श्रवण पेटार ।-मुवारक (शब्द॰) । पेटार्थी । २. जो बहुत अधिक खाता हो । भुक्खड । पेटार-वि०१ पेटू । २. ( ऐसा पात्र ) जिसमें अधिक वस्तु अँट पेटेंट-वि० [प्र.) १ किसी प्राविष्कारक के आविष्कार के सबंध सके। वहे पेट का (पात्र)। में सरकार द्वारा की हुई रजिस्टरी जिसकी सहायता से वह पेटारा-सचा पुं० [ स० पेट्टालक ] दे० 'पिटारा' । उ०-कनक पाविष्कारक ही अपने आविष्कार से प्राथिक लाभ उठा किरीट कोटि पलंग पेटारे पीठ, काढ़त कहार सय जरे भरे सकता है। दूसरे किसी को उसकी नकल करके पार्थिक लाभ भारही।-तुलसी (शब्द॰) । उठाने का अधिकार नहीं रह जाता। पेटारी-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० पेटारा ] द० "पिटारी' । उ०-(क) विशेष-यह रजिस्टरी नए प्रकार की मशीनो, यत्रो, युक्तियो नाम मथरा मदमति चेरि केकई केरि । अजस पिटारी ताहि या पौषधों आदि के सबध में होती है। ऐसी रजिस्टरी के करि गई गिरा मति फेरि ।-तुलसी (शब्द॰) । (ख) उपरात उस आविष्कार पर एकमात्र आविष्कारक का ही विसहर नाचहि पीठ हमारी। प्रो धर मुदहि घालि पेटारी। अधिकार रह जाता है। —जायसी (शब्द०)। २. ( वह माविष्कार या पदार्थ आदि ) जिसकी इस अफ पेटारी-सच्चा स्त्री० [स० पेटिका] १ एक प्रकार का वृक्ष । पिटारी रजिस्टरी हो चुकी हो। या मेटिका वृक्ष । २ दे० 'पिटारी'। पेट्रन-सञ्ज्ञा पुं० [अ०] सरक्षक । पृष्ठपोषक । सरपरस्त । जैसे, पेटार्थी-वि॰ [ स० पेट + अर्थिन् ] जो पेट भरने को ही सब कुछ वे सभा के पेट्रन हैं। समझता हो । भुक्खड । पेट । पेट्रोल-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० ] एक खनिज तेल जिसकी शक्ति से का पेटायूं-वि० [स० पेट + अर्थिन् ] पेटार्थी। मोटरें और हवाई जहाज आदि चलते है। पेटिका-यशा स्त्री० [सं०] १. पिटारी नाम का वृक्ष । २ पेठ-सचा पुं० [हिं० पैठ ] 'पेठ' । सदक । पेठी । ३ छोठी पिटारी । पेटिया-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० पेट+हिं० इया (प्रत्य॰), गुज० पेटियु पेठा-सचा पुं० [ देश० ] १ सफेद रंग का कुम्हडा । विशेष— 'कुम्हड़ा' । २. पेठे की बनी एक मिठाई । कोहंडापाग । (= सीधा, एक समय का आहार) ] सीधा । सिद्धा । एक पेट पेड-वि० [अं०] १ जो घुका दिया गया हो। जो चुकता क का पाहार । उ०—तव भहारी सो को जो श्राज मोंको दोय दिया गया हो। २ जिसका महसूल, कर या भाडा मादि पेटिया दीजियो।-दो सौ बावन०, भा०२, पृ० ११३ । दिया गया हो । बैरिंग' या 'वैरग' का उलटा । पेटी-सज्ञा स्त्री॰ [सं० ] सदूकची। छोटा सदूक । पेड़-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० पिण्ड] १ वृक्ष । दरख्त । विशेष-दे० 'वृक्ष' पेटी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पेट ] १ छाती और पेड़ के बीच का मुहा०-पेड़ लगना = वृक्ष का किसी स्थान पर जप्ट पकडना स्थान । पेट का वह भाग जहां त्रिवली पडती है। उ०- पौधे प्रादि का जमना। पेड़ लगाना= वृक्ष या पौधे पेटी सुछवि लपेटी भल थल पाइ । पकरसि काम बनेठी राखु को किसी स्थान पर जमाना। छिपाइ। -रहीम (शब्द०)। २ आदि कारण । मूल कारण (क्व०)। मुहा०-पेटी पढ़ना- तोद निकलना । २ कमर में बांधने का तसमा पेड़की-सचा स्रो० [हिं० ] दे० 'पड़ क' । उ०-एक कमरबद । ३ चपरास । डा मुहा०—पेटी सतारना = पुलिस के सिपाही का मुअत्तल या बर- का हाल कर बैठा सिकुड़ जुट ।-निशा०, पृ० ३७ । खास्त किया जाना। पेड़नाई-क्रि० स० [हिं०] दे० 'पेरना'। उ०-अभी ४ हज्जामो की किसवत जिसमें वे कैंची, छुरा प्रादि रखते हैं। में कोल्हू पेडते रहते ।-मैला०, पृ० २५८ । ५ वह टोरा जो बुलवुल की कमर में उसे हाथ पर बैठाने के पेड़ा'--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] बढा सदूक । बडी पिटारी [को॰) । लिये बांधते हैं। पेड़ा-सद्या पुं० [सं० पिण्ड] १ खोवा और खाँड से बनी हुई , क्रि०प्र०-वाँधना। प्रसिद्ध मिठाई जिसका आकार गोल भौर चिपटा होता । पेटीकोट-सञ्ज्ञा स्त्री० [० ] लहंगे की तरह का एक वस्स जिसे गुधे हुए पाटे को लोई। स्त्रियाँ घोती या साडी के अदर पहनती हैं। पेड़ाइता-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पैड़ा? ] बटमार। मार्ग मे पेटीबूजुवा-सञ्ज्ञा पुं० [अ० ] निम्न मध्यवर्गीय व्यक्ति । जो निम्न खसोट करनेवाला। उ०-खादा वूजी भगति है लोहर व