पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३९९

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पैयाँ ,105 पैरा" मुहा०-पैरा जीत कर क्रोध पैमाल कर, परम सुख धाम तहँ सुर्त मेले । पानी के ऊपर हाथ पैर चलाते हुए जाना। उ०-(क) कबीर पा०, भा० १, पृ०६७ । पैरत थाके पं.सवा सूझ कार न पार । --रातयासी०, पैयाँ -सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पाय ] पार्व। पैर । उ०-गुरु पैयाँ पृ०६६। (ख) पैरवार ग ललन फे पर न पायत पार। लागी नाम लखा दीजो रे।-धरमश०, पृ० १६ । -स० सप्तक पृ० ३५३ । पैया -सपा पुं० [सं० पाय्य ( = निकृष्ट)] १ विना सत का सयो० क्रि०-जाना। अनाज का दाना । मारा युमा दाना । खोखला दाना । उ०- हुधा = पारगत । दक्ष । निपुण । मातु पिता कहैं सब धन तेरो मोरे लेखे पछोरल पेया ।- पैरना२-क्रि० स० [हिं० पहिरना] दे० 'पहनना' । ३०--हरे रग कवीर (शब्द॰) । २. खुक्ख । दीन हीन । की अगिया जो पैरे, जाइ रीझ लंबरदार । -पोद्दार अमि० पैयार-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक प्रकार का बांस । प्र०पृ० ५७७। विशेष-यह पूरवी बगाल, घटगांव और बरमा में बहुत होता पैरबाजी-सझा शी० [हिं० पैर + फ़ा० याज+६ (प्रत्य० )] नृत्य में है। इसमें बडे बड़े फल लगते हैं जो खाए जाते हैं । बसलोचन पैरो को कुशल गति । उ०-नाच में इनके न तो कोई गति भी इस बास में बहुत निकलता है। यह बास बहुत सीधा है, न तोसा, न कोई परवाजी ।--प्रेमघन०, भा० २, जाता है मोर गोठं भी इसमें दूर दूर पर होती हैं । चटगांव में पृ०१५५ । इसकी चटाइयाँ बहुत बनती हैं। घरों में भी यह लगता है। पैरवार-१० [हिं० पैरना + धार (प्रत्य॰)] पैरनेवाला । इसे मूली मतगा और तगई का बास भी कहते हैं। तैरनेवाला। उ०-समसिंघु मुख रावरो लसै अनूप अपार । पैयार-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पहिया ] २० 'पहिया' । पैरवार ग ललन के पैर न पावत पार |-म० सप्तक पैयाg४-सक्षा पु० [हिं० ] दे० 'पाव' । उ०-दास गरीव दरस पृ० ३५३ । भए, पेयन लगी जो लाय ।-कवीर म० पृ० ५८८ । पैरवी-सपा ग्त्री० [फा०] १ पादम बा कदम घलना । अनुगमन । अनुगरण । २ याज्ञापालन । ३ पक्षा का महन । पक्ष लेना। पैर-सहा पुं० [म० पद + दण्ड, प्रा० पयदयद, अप० पर्यड ] १. किसी वात के अनुकूल प्रयत्न । कोशिश । दौडधप । जैसे, वह प्रग या अवयव जिसपर खड़े होने पर शरीर का सारा मुकदमे की पैरवी करना, किसी के लिये पैरवी करना । भार रहता है और जिससे प्राणी चलते फिरते हैं। गतिसाधक अग। पाव । चरण। क्रि० प्र०-करना।-होना । विशेप-दे० 'पांव' । पैर शब्द से कभी कभी एडी से पजे तक पैरवीकार-राज्ञा पुं० [फा०] पैरवी करनेवाला । का भाग ही समझा जाता है। पैरहन-सशा पुं० [फा०] चोगे की तरह का एक लबा पहनावा । मुहा०-पैर छूटना = मासिक धर्म अधिक होना । रज नाव उ.-खडा रहूँ दरवार तुम्हारे ज्यों घर का बदाजावा । अधिक होना। पैर की जूती - अत्यत तुच्छ । दासी । सेविका। नेकी की कुलाह सिर दीए, गले पैरहन साजा । सतवाणी, उ०-खैर, पैर की जूती जोरू, न मही एक, दूसरी पाती, पृ०१०३. पर जवान लहफे की सुध कर साँप लोटते, फटती छाती।- पैरा-मज्ञा पुं० [हिं० ] १ प्राया हुमा कदम । पढे हुए चरण । प्राम्या, पृ० २५ । (और मुहा० दे० 'पाँव' शब्द ) । पौरा । जैसे,-बहू का पैरा न जाने कैसा है कि जबसे आई २ धूल भादि पर पड़ा हुआ पैर का चिह्न। पैर का निशान । है कोई सुख से नहीं है। २ एक प्रकार का याडा जो पैर में जैसे,-बालू पर पडे हुए पैर देखते चले जानो। पहना जाता है। ३ किसो केची जगह चढ़ने के लिये पैर-सहा पुं० [हिं० पायल, पायर ] १ वह स्थान जहाँ खेत लकडियो के बल्ले आदि रखकर बनाया हुमा रास्ता । 30- से क्टकर पाई हुई फसल दाना झाडने के लिये फैलाई जाती मन गरुवो कुच गिरिन पै सहज पहुंचि सकेन । याही ते ले है । खलियान । २ खेत से फटकर भाए इठन सहित अनाज डोठि के पैरे वापत नैन । -स० सप्तक, पृ०१६६ । का मटाला। पैरा- सञ्चा मी० [ देश० ] एक प्रकार की दक्खिनी कपास जिसके पैरा-सशा पुं० [म० प्रदर ] प्रदर रोग । पेड बहुत दिनों तक रहते है । पैर उठान-सपा पुं० [हिं० पैर+उठाना ] कुश्ती का एक पेंच विशेष-इसके एठल लाल रंग के होते हैं। रूई इसकी बहुत जिसमें वाया पैर आगे बढ़ाफर बाएँ हाथ से जोड की छाती साफ नहीं होती, उसमें कुछ ललाईपन या भूरापन होता है। पर धक्का देते और उसी समय दहने हाथ से उसके घर के यह कपास मध्य भारत से लेकर मदरास तक होती है। घुटने को उठाकर और बायाँ पैर उसके दहने पैर में अडाकर पैरा-सशा पुं० [ स० पिटक, प्रा० पिदा ] लकही का खाना जिसमे फुरती से उसे अपनी ओर खींचकर चित कर देते हैं । सोनार अपने काँटे बाट रखता है। पैरगाड़ी-सच्चा स्त्री० [हिं० पैर+गाडी ] वह हलकी गाडी जो पैरा-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] दे० 'पयाल' । वैठे बैठे पैर दबाने से चलती है। जसे, बाइसिकिल, ट्राइ पैरा-सञ्ज्ञा पु० [अ० १ लेख का उतना प्रश जितने में कोई सिकिल । एक बात पूरी हो जाय और जो इसी प्रकार के दूसरे प्रश पैरना'-क्रि० प्र० [स० प्लवन, प्रा० पवण, हिं० पौडना] तैरना । से कुछ जगह छोड कर अलग किया गया हो। -