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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४००

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पैराई ३१०६ पैवद विशेष-जिस पक्ति पर एक पैरा समाप्त होता है, दूसरा पैरा पेरेखना-क्रि० स० [सं० परीपण] दे० 'परेखना'। उस पक्ति को छोडकर और किनारे से कुछ हटाकर प्रारम पैरोकार-संशा पुं० [फा० पैरवीकार ] दे० 'पैरवीकार'। किया जाता है। पेरोल-मज्ञा पु० [अ० ] ८० 'पेरोल' । ५ टिप्पणी। छोटा नोट । जैसे,-सपादक ने इस विषय पर पैल-सशा पुं० [म० ] भागवत में वरिणत एक ब्राह्मण जिन्होंने एक पैरा लिखा है।। वेदव्यास के सहिता विभाग करने पर ऋग्वेद पा अध्ययन पैराई-मज्ञा स्त्री० [हिं० पैरना, /पैर+श्राई (प्रत्य॰)] १ पैरने या किया था। तैरने की क्रिया या भाव । २ तैरने की कला । ३. तैरने की पैला-म०प० [अप० पहल] दे० 'पहले' । उ०-प्रावो करूंगा मजदूरी। तेरा तमाशा । पैल तेरी गुडी कादगा।-दक्खिनी०, पैराउ, पैराऊ-सशा पुं० [हिं० पैरना ] दे० 'पैराव' । उ०- पृ०६०। (क) ग्रीषम हूँ रितु मैं भरी दुई कूल पैराउ । खारे जल की पैला-पञ्चा पुं० [स० पृथुन या हिं० फैलना ] अधिकता । पहु- वहति है नदी तिहारे गाठ ।-मति० प्र०, पृ० ४४६ । (ख) तायत । उ०-भोज रीझ झेली भली, पावस पाणी पैल ।- घरनी वर बादल भोज भीट भया पैराक। हम उडाने ताल बाँकी० न०, भा॰ २, पृ० ८ । सुखाने चहले बीघा पाऊ |--कबीर (शब्द०)। पैलगी-सका पी० [हिं० पायें + लगना ] प्रणाम । अभिवंदन । पैराफ-सझा पुं० [हिं० पैरना ] १ तैरनेवाला । तैराक। २. पालागन । चतुरे । कुशल । प्रवीण । उ०-सज प्रसि पण पैराक वप पैलग्गी-सशा स्री० [हिं०] २० पैलगी'। वप साजिया । गपण शिवता माहा भयानक गाजिया ।- पैलना-सरा पुं० [हिं० पैरना] तैरना । पेरना । उ०-मोह रघु० रू०, पृ० १८८। पवन झकोर दारुन दूर पैलव तीर ।-चरण० वानी, पैराकी-वि० [हिं० पैरना ] १ चतुर । प्रवीण । उ०-जिण साथ पृ०६०। पैराकी जगारा, भव प्रक्रम दीख्या अगारा।-रघु० ६०, पैलव-वि० [सं०] १ पोलू के पेड का । २ पीलू संबधी । ३. पृ० १५८ । की लकड़ी का बना हुमा। पैराग्राफ-सचा पुं० [मं० ] दे॰ 'पेरा'। पैला-सञ्चा पुं० [हिं० पैली] १. नांद के प्रकार का मिट्टी पैराना-क्रि० स० [हिं० पैरना का प्रे० रूप] पैरने का काम कराना। वरतन जिससे दूध दही ढोकते हैं । बडी पैली। उ०-या तैराना। सब भाजन फोरि पराने। हांक देत पैठत हैं पैला ने कुन संयो० कि०-देना।-लेना । मनहिं डराने ।-सूर (शब्द०)। २. चार सेर मनाज पैरारा+-वि० [हिं० पैरना+थारा (प्रत्य॰)] पैरनेवाले । पैराक । की डलिया। चार सेर नाप का वरतन ।। तैरनेवाले । तैराक । उ०-धन दृग मतवारे पैरारे। चितवन पैला-क्रि० वि० [ देशी पहिल्ल, अप० पइल, हिं. पहला ] १ पोच सिंधु जा ढारे ।- इद्रा०, पृ० ४५ । पहले। उ०-जाण भलको जामगी, पैले दगी नाल पैराव-पा० [हिं० पैरना+श्राव (प्रत्य०) ] इतना पानी जिसे रा० रू०, पृ० ३१० । २ उस पोर। उस पार । परला। केवल तैरकर ही पार कर सकें । हुबाव । पैली-सशा स्त्री० [सं० पातिली, प्रा० पाइली ] १ मिट्टी ५० पैराशूट-मज्ञा पुं० [० ] एक बहुत बडा छाता जिसके सहारे एक चौडा बरतन जिममें अनाज या तेल रखते हैं । २. न वैलून (गुब्बारा) धीरे धीरे जमीन पर उतरता मोर गिरकर या तेल नापने का मिट्टी का वरतन । टूटता फूटता नहीं। पैलो२- वि० सी० [हिं० परली ] उस प्रोर का । दूसरी पैरी-सला खी० [हिं० पैर ] १ पैर में पहनने का एक चौडा का । परली। उ०-सतगुरु काढे केस गहि डूबत इहि संसार गहना जो कून या कांसे का बनता है और जिसे नीच जाति दादू नाव चढाइ करि, कोए पैली पार ।-दादू०, पृ० ४ । की स्थियां पहनती हैं । २ अनाज फे कटे हुए पौधे षो दायने पैवंद-मज्ञा पुं॰ [ फा• ] १ कपडे मादि का वह छोटा टुकड़ा न के लिये फैनाए जाते हैं। ३ मनाज के सूखे पोधों पर बैल किसी बडे कपड़े घादि का छेद वद करने के लिये लोक चलाकर भोर डडा मारकर दाना झाडने की क्रिया । दाजूने सी दिया जाता है। चकती। धिगली। जोर। का काम । दवाई। क्रि० प्र०-लगाना। क्रि० प्र०—करना ।-होना। मुहा०-पैवद लगाना = (१) वात में बात जोडना । ४ भेडो के बाल कतरने का काम । ५ पैठी। सीढ़ी। मिलाना । जैसे,—सारा लेस उनका लिखा है वीच बीच पैठी। पीढी । पुरत (लाक्ष०)। उ०-तिनकी तरै पैरी पाप भी पैदद लगाए हैं। (२) अनूरी या विगडी हुई । पचास सुवास तें फिरि नहिं फिर ।-पद्माकर प्र०, मे नई बात जोडकर उसे पूरा करना या सुधारना। २. किसी पेड को टहनी काटकर उसी जाति के दूसरे पेट - क