1 पैवंदी पैसारी व्हनी मे जोडकर बांधना जिससे फल बढ़ जायें या उनमें पैशुन-सज्ञा पुं॰ [सं०] पिशुनता । चुगुलखोरी। नया स्वाद आ जाय । पैशुन्य--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पिशुनता ।। गुलखोरी। क्रि० प्र०-लगाना। पैट--वि० [स०] पिट से निमित । पाटा मादि का वना हुप्रा [को॰] । ३ मेल जोल का आदमी । इष्ट मित्र । सबधी। पैष्टिक'-सज्ञा पुं० [ स०] १ जौ, चावल अदि भन्नो को सहाकर पैवी'-वि० [फा०] १ पैवद लगाकर पैदा किया हुआ । कलम बनाया हुआ। मद्य । २ आटे आदि का तैयार पदार्थ, रोटी और पंवद द्वारा बड़ा और मीठा बनाया हुमा (फल)। मादि (को०] । कलमी । जैसे, पैवदी बेर । पैष्टिक--वि० आटे का बना हुप्रा । पाटे का [को०] । यौ०-पैवदी मूंछ = चिपकाई हुई मरोडदार मूछ । पैप्टी--सज्ञा स्त्री० [ ] पंष्टिक । यवादि अन्न निर्मित सुरा । २ वर्णसकर । दोगला । पैसना-कि०प्र० [० प्रविश, प्रा० पइस + हिं० ना (प्रत्य॰)] पैवंदी-सज्ञा पुं० बहा महि । शफतालू । घुसना । पठना। प्रवेश करना। उ०—(क) मेरे हित करिबे हरि कैसे । फुत्सित उदर दरी मे पैसे ।-नद० म०, पृ० पैवस्त, पैवस्ता-वि० [फा० पैवस्त ] (जल, दूध, घो पादि द्रव २१६ । (ख) देवाले पैसि प्रविका दरसे घणे भाव हित पदार्थ) जो भीतर घुसकर सब भागों में फैल गया हो। जिसने प्रीति घणी। - वेलि०, दू०१०८ । भीतर बाहर फैलकर तर कर दिया हो । सोखा हुमा । समाया हुया । जैसे, सिर में तेल पैवस्त होना, दूध का रोटी में पैवस्त पैसरा-सञ्ज्ञा पुं० [स० परिश्रम ] जजाल। झझट । बखेडा। होना । उ०-चमत्कृत चीजों से वह पारास्ता और पैवस्ता प्रयत्न । व्यापार | 3०-ऐसो है हरि पूजन ताता। पुनि पसरे केरि नहिं बाता ।-विथाम ( पशब्द०)। है। -प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० २३४ । पैसा-सञ्ज्ञा पुं० [-म० पाद, प्रा० पाय (= चौथाई ) + प्रश, प्रा. क्रि० प्र०—करना ।-होना। पैशल्य-सच्चा पुं॰ [ स०] १ पेशलता। कोमलता । २ कुशलता। श्रस, या सं० पणांश ] १ तवे का सबसे अधिक चलता सिक्का जो पहले पाने का चौथा मौर रुपए का चौसठवा कौशल (को०)। भाग होता था । पान पाना । तीन पाई का सिक्का । पैशाच'-वि० [सं०] १. पिशाच सबभी। पिशाच का । पिशाच का विशेष-मब स्वतंत्र भारत में दशमिक प्रणाली के सिक्के का बनाया था किया हुआ। २. पिशाच देश का । जैसे, पैशाच प्रचलन हो गया है, जिसमें पंसा दशमिक प्रणाली के माधार भाषा। पर रुपए का सौवा भाग होता है और आजकल यह सिक्का पैशाप-सक्षा पुं० १ पिशाच । २. एक प्रायुधजीवी सघ का मलमूनियम का होता है। नाम । एक लहाका दल । ३ एक प्रकार का हीन विवाह । २. रुपया पैसा । धन । दौलत । माल । जैसे,—उसके पास बहुत दे० 'पैशाच विवाह। पैसा है। उ०-साई या संसार में मतलब का व्यवहार । पैशाचकाय-ससा पुं० [सं०] सुधृत में कहे हुए कायो (शरीरो) जब तक पैसा पास में तवतक हैं सव यार ।-गिरिषर में एक जो 'राजस काय' के प्रतर्गत है। ( शब्द०)। विशेष-जूठा खाने की रुचि, स्वभाव का तीखापन, दु साहस, मुहा०-पैसा उठना = घन खर्च होना । पैसा उठाना = धन स्त्रीलोलुपता और निलंज्जता 'पैशाच काय' के लक्षण हैं। व्यर्थ नष्ट करना । फजूलखर्ची करना । पैसा कमानापन पैशाच विवाह-सज्ञा पुं० [सं०] आठ प्रकार के विवाहो में से एक उपाजित करना । रुपया पैदा करना । पैसा डूबना = लगा जो सोई हुई कन्या का हरण करके या मदोन्मत्त कन्या को हुपा रुपया नष्ठ होना। घाटा होना । पैसा ढो ले जाना- फुसलाकर छल से किया गया हो। सब धन खीच ले जाना। पैसा धोकर उठाना = किसी विशेष -स्मृतियों में इस प्रकार का विवाह बहुत निंदनीय कहा देवता की पूजा की मनौती करके अलग पैसा निकालकर गया है। रखना । पैसे का पचास होना = अत्यंत साधारण होना । टके पैशाचिक-वि० [सं०] पिशाच सबधी । पिशाचों का। राक्षसी । मोल विकना । उ० --गुरुपा तो सस्ता भया पैसा केर पचास । घोर और वीभत्स । जैसे, पैशाचिक कांड, पैशाचिक कर्म । राम नाम को बेचिके, करे सिष्य की प्रास ।-कबीर सा० पैशाची-सहा स्त्री० [सं०] १. पिशाच देश की भाषा। एक प्रकार सं०, पृ०१५॥ की प्राकृत भाषा। पैसारी-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पैसन ] १. पैठ । प्रवेश | उ०-कायापुर विशेष-कहा जाता है कि गुणाढ्य की 'बडकहा' इसी भाषा मे अलख झूल, तहाँ कर पंसार ।-घरनी०, पृ० ३३ । २. में थी। भीतर जाने का मार्ग प्रवेशद्वार । २ किसी धार्मिक कृत्य पर दी जानेवाली भेंट (फो०)। ३. रात्रि । पैसारना-कि०म० [हिं० पैसार] घुसना । प्रवेश करना । पैठना। रात (को०)। पैसारी-सञ्चा औ० [हिं० पैसार ] पैठ । पैसार । प्रवेश । उ०- पेशाच्य-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पिणाच होने का भाव । करता । पाय नगर पैसारी कीन्हा । घर पूछ के चितवन कीन्हा । - निदयता [को०] । कवीर सा०, पृ० ४२३ ॥
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४०१
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