पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४२३

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प्रकाशक '३१३२ प्रकीर्णक प्रकाशक'-वि० [ स०] [वि॰ स्त्री० प्रकाशिका ] १ व्यक्त करने प्रकाशी-सशा पुं० [सं० प्रकाशिन् ] वह जिसमें प्रकाश हो । चमकता वाला । प्रकाश करनेवाला। २ द्योतित । ३ प्रसिद्ध । ख्यात । हुमा। प्रकट । प्रकाश्य-वि० [ मं०] १ प्रगट करने योग्य । जाहिर करने योग्य । प्रकाशक-सज्ञा पुं० [ स०] १ वह जो प्रकाश करे । जैसे, सूर्य । २ व्यक्त। प्रकट। २ वह जो प्रकट करे। प्रसिद्ध करनेवाला । जैसे, प्रय प्रकाश्य-सचा पुं० प्रकाश । ज्योति । चमक । प्रकाशक, समाचारपत्र प्रकाशक । ३ कांसा । ४ महादेव प्रकाश्य-क्रि० वि० प्रकट रूप से । स्पष्टतया। नाटक में 'स्वगत' का एक नाम । ५ सूर्य (को॰) । का उलटा। यौ०-प्रकाशकज्ञाता = तमचुर । मुर्गा । प्रकास-सचा पुं० [सं० प्रकाश ] . 'प्रकाश' । उ०-पूरि प्रकास प्रकाशकर्ता-सञ्ज्ञा पुं० [सं० प्रकाशकर्तृ ] सूर्य [को०] । रहेउ तिहुँ लोका । बहुतेन्ह सुख बहुतन मन सोका ।-मानस, प्रकाशकार-संशा पु० [सं०] दे० 'प्रकाशक' । ७।३१ (ख ) सो वैष्णव बिना उनके आगे अपनो धर्म कैसे प्रकाशक्रय-सज्ञा पुं॰ [ स०] खुले आम खरीद [को०] । प्रकास करे। -दो सौ बावन०, भा० १, पृ० १०३ । प्रकाशता-सञ्ज्ञा स्नी [सं०] प्रकाश का भाव या धर्म। प्रकासक- वि०, सश पुं० [सं० प्रकाशक ] दे॰ 'प्रकाशक' । उ०- प्रकाशधृष्ट-सज्ञा ॰ [स०] धृष्ट नायक के दो भेदो मे से एक । वह (क) सब कर परम प्रकासक जोई। राम अनादि अवधपति नायका जो प्रकट रूप से धृष्टता करे, झूठी सोगघ खाय, सोई।-मानस, ११११० । उ०-मघन घने उडुगनि गगनि नायिका के साथ साथ लगा फिरे, सबके सामने सकोच त्याग अगनित करत उदोत । परम प्रकासक पंनिसा निसानाथ ते कर हंसी ठट्ठा करे, झिडकने प्रादि पर भी न माने । होत ।-स० सप्तक, पृ० ३६८ । प्रकाशन'- वि० [सं०] प्रकाश करनेवाला । चमकीला । दीप्तिवान् । प्रकासना-क्रि० स० [ स० प्रकाश ] प्रकाश करना। प्रकट प्रकाशन-सज्ञा पुं० [सं०] १. विष्णु का एक नाम । २. प्रकाशित करना । जाहिर करना । उ०-सुनि उदव सव वात प्रकासी। करने का काम । प्रकाश में लाने का काम । ३. किसी पुस्तक तुम विन दुखित रहत प्रजवासी।-विश्राम ( शब्द०)। के छप जाने पर उसको सर्वसाधारण मे प्रचलित करने का प्रकासिकाल-विस्त्री० [सं० प्रकाशिका ] प्रकाशित करनेवाली । काम । जैसे, पुस्तक प्रकाशन । पत्र प्रकाशन । प्रकट करनेवाली। उ०—पुन्य प्रकासिका पाप विनासिका यौ०-प्रकाशनाधिकार =पुस्तकादि के प्रकाशन का शतनामा । हीय हुलासिका सोहत कासिका।-भारतेंदु प्र० मा० १, दे० 'कापीराइट'। पृ०२८।। प्रकाशनारी-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] वेश्या। रडी [को०] । प्रकास्य-वि० [स० प्रकाश्य ] दे० 'प्रकाश्य"। उ०-जगत प्रकाशमान-वि० [सं०] १. चमकता हुमा । चमकीला । प्रकाशयुक्त । प्रकास्य प्रकासक रामू।-मानस, १।११७ । २. प्रसिद्ध । मशहूर। प्रकिरण-सज्ञा पुं० [सं०] १ बिखेरना । छीटना । विकोणं करना । प्रकाशवान् -वि० [सं० प्रकाशवत् ] दे० 'प्रकाशमान'। २ मिलाना । मिश्रण (को०] । प्रकाशवाह-यशा पुं० [सं० प्रकाश+ वाह ] प्रकाश लानेवाला, सूर्य। प्रकिरती-सञ्चा सी० [स० प्रकृति ] दे० 'प्रकृति'-३ । उ०- उ०-विस्तृत कर जन मन पथ, वाहित कर जीवन रथ, वन पुरुष प्रकिरती पदवी पाई । सुद सरगुन रचन पसारा है ।- प्रकाशवाह, हरे अवकार लोकायन | -प्रतिमा, पृ० १३४ । फवीर श०, भा० १, पृ० ६१ । प्रकाशवियोग-सज्ञा पुं॰ [ स०] केशव के अनुसार वियोग के दो प्रकोन-वि० [सं० प्रकोणं] फैला हुमा। उ०-बनि जानि प्रक्रीन भेदो में से एक । वह वियोग जो सबपर प्रकट हो जाय । क्रपान वन ।-पृ० रा०, २५॥२७ । प्रकाशसयोग-सज्ञा पुं० [सं०] केशव के अनुसार संयोग के दो भेदो प्रकोणे-सज्ञा पुं० [सं०] १ दुगंधवाला करज | पूतिकरज । में से एक । वह सयोग जो सवपर प्रकट हो जाय । २ अध्याय । प्रकरण । ३ चंवर । ४ पागल । ५. उद्दछ । प्रकाशात्मक-वि० [सं० ] चमकीला । प्राभामय [को०] । उच्छ खल । ६ फुटकर कविता । ७. अनेक प्रकार की फुटकल प्रकाशात्मा'-सच्चा पुं० [सं० प्रकाशात्मन् ] १ सूर्य । २ विषणु । घस्तुओं का सकलन (को०)। ८ विस्तार । फैलाव (को०)। ३ शिव (को०)। ६. विकीर्ण करना । विखेरना । छितराना (को०)। प्रकाशात्मा-वि० चमकीला । ज्योतिमय [को०] । प्रकीर्ण-वि० १ फैला हुमा । विस्तृत । २ बिखरा हुमा । छित- प्रकाशित -वि० [सं०] १ जिसमें से प्रकाश निकल रहा हो। राया हपा । पस्तव्यस्त । क्षुब्ध । ३ मिला हुआ। मिश्रित चमकता हुमा । उ०-यह रतन दीप हरि प्रेम की सदा ४ तरह तरह का । भनेक प्रकार का । प्रकाशित जग रहै। -मारतेंदु ग्र०, पृ० ४६६ । २ जिसपर प्रकीर्णक-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ चैवर । २ अध्याय । प्रकरण । प्रकाश पड रहा हो। चमकता हुमा । ३ जो प्रकाश में मा ३ विस्तार । ४ वह जिसमें तरह तरह की चीजें मिली हो । चुका हो । विज्ञापित । प्रकट । जैसे,—यह पुस्तक हाल ही में फुटकर । जैसे, प्रकीर्णक कविता, प्रकीर्णक पुस्तकमाला। प्रकाशित हुई है। ५ पाप जिसके प्रायश्चित्त का प्रथो में उल्लेख न हो।