रोध |को०) । जवाब का जवाब । प्रथम प्रत्युज्जीवन प्रत्युज्जीवन-प्रज्ञा पुं॰ [ म०] मरे हुए व्यक्ति का फिर से जी प्रत्युद्गार-सज्ञा पुं॰ [ स०] एक प्रकार का वायु रोग । उठना । पुनर्जीवन । प्रत्युद्धरण-सशा पु० [स०] १ फिर से प्राप्त करना । २ फिर से प्रत्युत'-सज्ञा पु० [स०] किसी दूसरे के पक्ष का खडन या अपने उठाना [को०] । पक्ष का मटन करने के लिये विपरीत भाव । विपरीतता । प्रत्युद्यम-सञ्ज्ञा पु० [सं०] विरोधी प्रयत्न । प्रतिक्रिया। प्रति- प्रत्युत-अव्य० बल्कि । वरन् । इसके विरुद्ध । जैसे,—वे लोग माने नही प्रत्युत और भी आगे बढ़ने लगे। प्रत्युपकार-संज्ञा पुं० [सं०] वह उपकार जो किसी उपकार के प्रत्युत्क्रम-सज्ञा पुं० [ स०] १. वह उद्योग जो कोई कार्य प्रारम बदले में किया जाय । एक भलाई के बदले में की जानेवाली करने के लिये किया जाय । २ वह आक्रमण जो युद्ध के दूसरी भलाई। समय सबसे पहले हो । ३. युद्ध का उपक्रम । लडाई की प्रत्युपकारी-सज्ञा पु० [ स० प्रत्युपकारिन् ] उपकार का बदला देने- तैयारी (को०)। वाला । वह जो किमी उपकार के बदले मे उपकार करे । प्रत्युत्काति - सज्ञा स्त्री॰ [ स० प्रत्युत्क्रान्ति ] दे॰ प्रत्युत्क्रम (को०] । प्रत्युपदेशः T-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] उपदेश के परिवर्तन मे कथित उपदेश । प्रत्युत्तर-संशा पुं० [स०] उत्तर मिलने पर दिया हुआ उत्तर । राय के बदले मे राय [को०] । प्रत्युपन्न-वि० [ स० ] दे॰ 'प्रत्युत्पन्न' [को॰] । प्रत्युत्थान--सज्ञा पु० [सं०] १ किसी बड़े या पूज्य के प्राने पर प्रत्थुपमान-सज्ञा पुं॰ [स०] १ सदृश की प्रतिमूर्ति या रूप । उसके स्वागत और पादर के लिये प्रासन छोडकर उठ खडा उपमान का उपमान । २ उपमान । प्रतिमान [को०] । होना । अभ्युत्थान । २ शत्रु प्रादि का सामना करने के लिये प्रत्युपलब्ध-[ म० ] पुन प्राप्त । फिर से प्राप्त (को॰] । उठकर खडा होना (को०)। ३ लडाई की तैयारी करना प्रत्युपस्थान-सञ्ज्ञा पु० [स] पडोस । परोस (को०] । (को०) । ४. किसी काम को करने की व्यवस्था करना (को०) । प्रत्युपस्थित-वि० [सं०] १ पहुंचा या अभी पाया हुमा। २ उप- प्रत्युत्थित-वि० [ स०] जो मिलने वा सामना करने के लिये उठ स्थित [को०] । खडा हुआ हो (को०] । प्रत्युत्पन्न-वि० [सं० ] १. जो फिर से उत्पन्न हुआ हो। २ प्रत्युप्त-वि० [म०] १ जटित । खचित । बैठाया हुआ । २ उप्त । बोया हुआ [को॰] । जो ठीक समय पर उत्पन्न हुआ हो। यौ०-प्रत्युत्पन्नबुद्धि, प्रत्युत्पन्नमति = (१) जो तुरंत ही कोई प्रत्युलूक-सञ्ज्ञा पु० [ स०] १ काक । कोपा । २ उलूक के समान एक पक्षी [को॰] । उपयुक्त वात या काम सोच ले। ठीक समय पर जिसकी बुद्धि काम कर जाय । तत्पर बुद्धिवाला। (२) ठोक समय पर प्रत्युष-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० प्रत्युष , प्रत्युपस् ] प्रभात । तडका । काम देनेवाली बुद्धि । अवसर पडते ही उपयुक्त कार्य कर प्रत्यूढ-वि० [स०] १. प्रत्याख्यात । निराकृत । २ तिरस्कृत । उपेक्षित । दिखानेवाली बुद्धि । उ०-उसके साथी अपनी हास्योद्दीपक ३ प्रतिक्रमित । ४. आच्छादित । प्रावृत । पिनद्ध [को०] । उक्तियो और प्रत्युत्पन्नमति के लिये प्रसिद्ध थे।-अकबरी०, प्रत्यूष-सचा पुं० [सं०] १ प्रभात । तडका । प्रात काल । २ सूर्य । पृ०२३। ३ एफ वसु का नाम । प्रत्युत्पन्नार्थ कृच्छ-वि० [सं०] ( राज्य या राष्ट्र ) जो अर्थ- प्रत्यूह-सज्ञा पुं० [सं०] विघ्न । वाघा । ३०-कहत कठिन सकट में पड गया हो, अर्थात् जिसके शासन का खर्च आमदनी समुमत कठिन साधत कठिन विवेक । होइ धुनाक्षर न्याय से न सधता हो। जौ, पुनि प्रत्यूह अनेक ।-मानस, ७११८ । प्रत्युदाहरण-सज्ञा पुं॰ [ स०] विरोधी उदाहरण । विपरीत प्रत्येक-वि० [सं०] समूह अथवा बहुतो में से हर एक, लग उदाहरण [को०] । अलग । जैसे,—(क) प्रत्येक मनुष्य का यह कर्तव्य है। प्रत्युद्गत-वि० [सं०] १. प्रासन से उठकर किसी के प्रादरार्थ (ख) प्रत्येक बालक एक एक नारगी दो। (ग) प्रत्येक आगे बढा हुभा । २ विरोध मे गया हुप्रा [को०] । पत्र पर दस्तखत करो। प्रत्युद्गति-वशा स्त्री॰ [ स०] दे० 'प्रत्युद्गमन' [को॰] । प्रत्येकत्व-सञ्चा पुं० [स०] प्रत्येक का भाव या धर्म । प्रत्युद्गम-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] दे० 'प्रत्युद्गमन' (को०] । प्रत्येकबुद्ध-मज्ञा पुं० [स०] एक वुद्ध का नाम । पच्चेक वुद्ध । प्रत्युद्गमन-सशा पुं० [सं०] किसी के आने पर उसका स्वागत प्रथन-सज्ञा पुं० [सं०] १ एक प्रकार का गुल्म। २ विस्तार । करने के लिये उठकर खडा हो जाना । अभ्युत्थान । ३ प्रकाश में लाने की क्रिया या भाव । ४ विखराना। प्रत्युद्गमनोय'-वि० [सं०] १ सामने या पास रखने योग्य । बिखेरना (को०) । ५ फेंकना (को०)। ६ विखराने या फैलाने २ समान के योग्य । पूज्य । का स्थान (को०)। प्रत्युद्गमनीय-सञ्ज्ञा पुं० एक प्रकार का वस्त्र (अधोवस्त्र और प्रथम-वि० १. गणना में जिसका स्थान सबसे पहले हो। जो उत्तरीय)जो प्राचीन काल में यज्ञों में या भोजन के समय गिनती में सबसे पहले भावे । पहला। आदि का। अव्वल । पहना जाता था। 5०-एक मोहनहि प्रगनित तरुनि तकति प्रथमहि डीठि
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४६२
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