पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४६३

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प्रथम ३१७२ प्रथ्वी अंकवारि मैं भरति कसि । -घनानद, पृ० ४७६ । २ सर्व उ०-(क) कृष्णदेव बलदेव सुज्ञानी । प्रयमा पिवत सदा श्रेष्ठ । सबसे अच्छा । ३ प्रधान । मुख्य । ज्यो पानी।-निश्चल (शब्द०)। (ख) सकल पिए प्रथमा यौ०-प्रथम पुरुष । मतिवारे । पूजत पाक्ति मगन मन सारे ।-निश्चल (गब्द०)। प्रथम-क्रि० वि० [सं०] पहले । पेश्तर । अागे । प्रादि मे । २. व्याकरण का पता नारक । प्रथमक-वि० [ स० ] पहला । प्रथम [को०] । प्रथमाई-सज्ञा पुं० [१०] पहले का पापा माग । गुरू का प्राधा । पूर्षि। प्रथमकल्प-सज्ञा पुं॰ [ म०] १ सबसे अच्छा ढग या उपाय । २ प्रघान या मुख्य नियम (को०)। प्रथमार्ध-सा पु० [सं०] पूर्वाप । शुरू फा पाधा । प्रथमकवि-संज्ञा पु० [स] प्रादि कवि। वाल्मीकि । उ०-प्रथम प्रथमाश्रम-समा पुं० [२०] चार प्रगर के प्राश्रमों में पहला, कवि का ज्यो तु दर छद ।-कामायनी, पृ० ४५ । ब्रह्मचर्याश्रम (को० ॥ प्रथमकल्पिक-वि० [ म०] जो माधना की प्रथम सीढी पर प्रथमी-गजा पी० [ म० पृथिवी ] दे० 'पृथ्वी'। हो [को०। प्रथमेतर-वि• [१०] पहले के अतिरिक्त । दूसरा (फो०] । प्रथमफारक-सा पुं० [ स०] व्याकरण मे 'कर्ता' ( कारफ)। प्रथमोदित-वि॰ [0] पहले कहा हुमा । प्रथम कथित [को०] । विशेप-३० 'कर्ता'। प्रथा- नी० [२०] १ रीति । रिवाज । प्रणाली। नियम । २ ख्याति । प्रसिद्धि । प्रथमकुसुम--सा पु० [ म० ] सफेद फूत के अगस्त का वृक्ष । श्वेत अगस्त । प्रथागत-वि० [ म० प्रथा + गत ] रीति फे पनुसार । परपरानु- प्रथमज-० [स०] १ जो पहले उत्पन्न हुआ हो। जिसका जन्म सार । परपराप्राप्त । उ०-यह धर्म की वेडी नहीं है, कदापि नहीं, प्रधागत पतिव्रत भी नहीं।-मान०, भा० १, पहले हुआ हो । २ जो सबसे पहले गर्भ से उत्प न हुपा हो पृ० ३२२1 ३ वडा । ज्येष्ठ। प्रथमत.-क्रि० वि० [ म० प्रथमतम् ] पहले से | सबसे पहले । प्रथित'-वि० [सं०] १ प्रख्यात । मशहूर । २ परपरागत । रीति के अनुकूल । ३, प्रचलित । ४. दिखाया हुमा। प्रदर्शित प्रथमदर्शन-शा पु० [ स०] पहली बार देखना फो०] । (फो०)। ५ विस्तृत (को०)। प्रथमधार-सझा धी० [सं०] पहली वर्षा । प्रथम दृष्टि [को०] । प्रथित-राज्ञा पुं० १. पुराणानुसार स्वारोचिष मनु के पुत्र का प्रथमनवनीत-सजा पु० [म० ] वह दूध जो गाय के व्याने के सौ नाम । २. विष्णु (को०)। दिन बीत जाने पर दुहा जाता है [को०] । प्रथिति--सशास्त्री० [10] रयाति । प्रसिद्धि । प्रथम निर्दिष्ट-वि. [सं० ] जिसका उरलेख या कथन पहले हुमा प्रथिमा-सञ्ज्ञा स्पी० [सं० प्रथिमन् ] चौडाई । विस्तार । हो । पूर्वकथित [को० । फैलाव [को०] । प्रथमपुरुष-संशा पुं० [म० ] दे० 'उत्तम पुरुष' । प्रथिवी-सहा मी [ स० ] पृथ्वी । धरा (को०) । प्रथममगन--सज्ञा पुं० [सं० प्रथममाल] बहुकल्याण या शुभ [को०] । प्रथी-सज्ञा स्त्री० [सं० पृथ्वी ] दे० 'पृथ्वी'। उ०-प्रथी वायु प्रथमयौवन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] युवावस्था का प्रथम चरण । चढ़ती गेनाय तेजस लाल ।-पृ० रा०, ११३६४ । जवानी [को०] । प्रथु'-सहा पुं० [सं०] १ विष्णु । २ दे० 'पृयु' । प्रथमरात्र-पका सी० [म० ] रात फा पहला पहर [को०] । प्रथुल:--वि० [सं० पृथु ] स्यूल । दे० 'पृयु' । उ०-प्रयुल, प्रासु, प्रथमवयस-सज्ञा पुं० [सं०] बालकाल । वाल्यावस्था [को०] । परिणाह, प्रयु, पारत तुद विशाल ।-नद ग्र०, पृ०८७ । प्रथमवयसी-वि० [सं० प्रथमवयसिन् ] नई उम्र का । छोटी प्रथुक'-सज्ञा पु० [सं०] चिचडा [को॰] । प्रवस्थावाला [को०] । प्रथुक २-वि० [हिं० ] दे० 'पृथक' । उ०-प्रवर पच सामंत प्रथमवसति-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] मूल निवास । मूल स्थान (को०] । अघ । दीनो प्रयुक पथार ।-पृ० रा०, ५८/२६७ । मूलवित्ता-सी० [#०] पहली स्त्री । पहली पत्नी को०] । प्रथुरोम --सशा सी० [म० पृथुलोमन् ] दे० 'पृयुलोमा' । उ०-सफरी प्रथमसाहस-मश पुं० [सं०] प्राचीन व्यवहार शास्त्र के अनुसार अनमिप मत्स तिमि प्रयुरोमा पाठीन ।-अनेकार्थ०, पृ०५०। , एक प्रकार का साहस दड जिसमे ३५० पण तक जुरमाना प्रथुल-वि० [ स० पृथुल ] दे० 'प्रयुल'। उ०-प्रगुल, प्रासु, होता था । यह दह साधारण अपराधों के लिये होता था। परिणाह, प्रयु, भरत तु द विणाल । दीर्घ स्वास जो भरत प्रथमस्कान-सज्ञा पुं० [म०] वेदमत्र उच्चारण करने के समय बलि, का कगून है वाल ।-नद० म०, पृ० ८७ । सबसे नीचा या धीमा स्वर । प्रथ्वी-मक्षा बी० [सं० प्रथिवी ] दे० 'पृथ्वी' । उ०-तिनकी देह प्रथमस्वर-सया पुं० [म०] एक प्रकार का सामगान । छाया नहि होई । सर्व प्रथ्वी प्रमानिक सोई।-कवीर सा०, प्रथमा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १. मदिरा। शराब । ( तात्रिक)। पृ० १३५1 ,