पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४८०

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प्रमेही ३१८४ प्रयत्न विशेप-सुश्रुत के अनुसार दिन को सोने, फाम न करने, बरा. विशेप-यह प्राधिदैविक दुःखो के नष्ट होने पर प्राप्त होती है । वर पालस्प मे पड़े रहने, शीतल स्निग्ध वस्तुएं और मीठी प्रमोदा-वि० स्त्री॰ [ म० प्रमोट ] प्रमुदिता । नानदिता। वस्तुएं बहुत घधिक खाने से यह रोग हो जाता है । हाथ पैर उ०-छीनूगी निषि नहीं किसी सौभागिनि, पुण्य प्रमोदा मे जलन, शरीर का भारी रहना, मूत्र श्वेत और मीठा लिए की। लास वारना नहीं कहीं तू, गोद गरीव यशोदा की। होना, पालस्य भोर प्यास, तालू, दाँत, जीभ प्रादि मे मैल -हिम०, पृ० ५६ । जमना, प्रमेह के पूर्वलक्षण हैं। वैद्यक में २० प्रकार के प्रमेह प्रमोदित'-वि० [१०] प्रमोदयुक । प्रानदित । हर्षित । गिनाए गए हैं जिनमें से उदकमेह, इक्षुमेह, सोद्रमेह, प्रमोदित'-सज्ञा पुं० कुबेर । सुरामेह, पिष्टमेह, शुक्रमेह, सिकतामेह, शीतमेह, शनैर्मेह प्रमोदिनी-वज्ञा स्त्री॰ [स०] जिगिनी । और लालमेह तो कफज हैं, क्षारमेह, नीलमेह, कालमेह, हरिद्रामेह, माजिष्ठमेह और रक्तमेह पित्तज हैं और वसामेह, प्रमोदी-० [म० प्रमोदिन् ] १ हर्पजनक । २. हर्पयुक्त । मज्जामेह, क्षौद्रमेह प्रौर हस्तिमेह वातज हैं । सब प्रकार के प्रमोधना-क्रि० स० [सं० प्रबोधन, हिं० प्रबोधना] समझाना । प्रमेह चिकित्सा न होने पर मधुमेह हो जाते हैं जिसमे मिठास उ०—सतगुर वपुरा क्या करे, जे सिप ही माहे चूक । मावै त्यू लिए मधु मा गाढा मूत्र निकलता है। इस रोग मे रोगी या प्रमोघि ले, ज्यू, वसि बजाई फूक ।-कवीर प्र०, पृ० ३ । तो बहुत दुर्बल हो जाता है या वहुत मोटा। इस प्रकार प्रमोह-सज्ञा पुं० [ मं०] १ मोह । २ मूर्खा । सूजाक और बहुमूत्र प्रमेह रोग के अतर्गत ही आ जाते प्रमोहन-नज्ञा पु० [सं०] १ मोहित करना । २ वह अस्त्र जिसके हैं यद्यपि डाक्टरी चिकित्सा में ये भिन्न भिन्न रोग माने प्रयोग से शत्रुदल मे प्रमोह की उत्पत्ति हो। गए हैं। प्रमोहित-वि० [सं०] १ मूढ । मूर्ख । २. घबडाया हुआ। प्रमेही-वि० [म० अमेहिन् ] प्रमेह रोग युक्त । स्तब्ध (को०। प्रमोक्ष-मश पु० [स०] १ मुक्ति । मोक्ष । छुटकारा । २ त्याग । प्रमोही-वि० [ म० प्रमो हिन् ] मोहजनक । छोडना । फेंकना। प्रम्लान-वि० [सं०] १ मुरझाया हुपा। सूखा हुआ । जैसे, प्रमोक्षण-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] चद्र या सूर्य ग्रहण की समाप्ति [को॰] । प्रम्लान कुसुम । २ मैला । गदा [को॰] । प्रमोचन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ अच्छी तरह मोचन । अच्छी तरह प्रम्लोचा-सशा ली [ स०] एक अप्सरा । छुडाना । २ खूब हरण करना । प्रयंक-सज्ञा पुं० [सं० पर्यत ] 'पर्यक' । प्रमोचनी-सशा स्री० [ म०] गोडुवा । एक प्रकार की ककडी। प्रयंत-अव्य० [ म० पर्यन्त ] दे० 'पर्यंत' । उ०-काम फाल के गोमा ककढी। प्रमोद-सज्ञा पु० [सं०] १ हषं। पानद । प्रसन्नता। उ०-चहूँ लोक मे मारे जान सुजान । सु दर ब्रह्मा आदि है कीट प्रयत कोद वाढयौ प्रमोद मानद पयोद बरसत दपति सोभासपति बपान ।-सुदर० ग्रं०, मा०२, पृ०७०६ । विसतारी ।-घनानद, पृ० ४२६ । २ सुख । ३ बृहस्पति प्रयत'–वि० [म.] १ पवित्र । सयत । उ०-नहीं जानती थी के पहले युग के चौथे वर्ष का नाम । (यह शुभ माना जाता माँ। तेरी प्रयत प्रमा की प्रथम किरन । मुझको इतना है)। ४. एक सिद्धि का नाम । दे० 'पमोदा' । ५ कुमार के गौरव देगी छूकर मेरा म्नान वदन |-वीणा, पृ० ५१ । एक अनुचर का नाम । ६. एक नाग का नाम । ७ उत्कृष्ट २ नम्र । दीन । ३ प्रयत्नशील । ४ वशी। इद्रियो को वश या तीव सुगध (फो०)। ८. एक प्रकार का चावल (को०)। मे करनेवाला (को०)। प्रमोदक-सा पुं० [सं०] एक प्रकार का जव्हन । प्रयतात्मा-वि० म०प्रयतात्मन् ] सयत प्रात्मावाला । जितेंद्रिय । सयमी। प्रमोदन'-मज्ञा पुं० [सं०] विष्णु का नाम । प्रमोदन-वि० हर्पकारक । प्रयति-सशा मी० [सं०] सयम । प्रमोदवन-सज्ञा पुं० [म० प्रमोद+वन ] पानंदवन । क्रीडास्थल । प्रयत्न -सज्ञा पुं॰ [ म०] १ वह क्रिया जो किसी कार्य को, विशेषत उ०-नए गाँव की तरफ से देखा प्रमोदयन ।-कुकुर०, कुछ फठिन कार्य को, पूरा करने के लिये की जाय । किसी पृ०५८ । उद्देश्य की पूर्ति के लिये की जानेवाली क्रिया । विशेष यल । प्रमोदसट्रक-मज्ञा पु० [सं०] एक प्रकार की मोषध जो गाढ़े दही प्रयास । अध्यवसाय | चेष्टा । कोशिश । जैसे,—विना प्रयत्न और चीनी में मिर्च, पीपल, लौंग, कपूर मलकर उसमें के कुछ भी नहीं प्राप्त हो सकता । २ न्यायसूत्र के अनुसार अनार के पके दाने डालकर बनती है। इससे दीपन होता है मात्मा के छह गुणो अथवा साधनचिह्नों में से एक । प्राणियो तथा थकावट और प्यास दूर होती है। की क्रिया । जीवों का व्यापार । प्रमोदा'-शा सी० [सं०] साक्ष्य के अनुसार पाठ प्रकार की विशेष- नैयायिको के अनुसार प्रयत्न तीन प्रकार के होते हैं- सिद्धियो मे से एक । प्रवृत्ति, निवृत्ति, और जीवनयोनि । ग्रहण का व्यापार ६-५६