पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४७९

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प्रमीति २१८८ प्रमेह जिसमें प्रतिदिन क्षणभगुर लय बुदवुद होते रहे प्रमीत । प्रमुदितवदना-रा नी० [सं० ] चारह अक्षरो की एक वर्णवृत्ति -इत्यलम्, पृ. २५॥ जिसे मदागिनी भी कहते हैं । दे० 'मदाकिनी' । प्रमोति-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ हनन । बध । २ मृत्यु । प्रमुपित-वि० [स०] १ ले लेगा। चुरा लेना । २ अचेत । मूढ । प्रमीलन-सज्ञा पुं० [सं०] निमीलन । मूदना । हतबुद्धि (को०] । प्रमीला-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ तंद्रा । २ थकावट । शैथिल्य । प्रमुपिता-उवा नी[सं०] एक प्रकार की प्रहेलिका (को०] । ग्लानि । ३ मुद्रण । मूदना। ४ अर्जुन की एक स्त्री का प्रमूकना-[सं० प्रमुञ्चन, प्रमोचन ] छोडना । मुक्त करना। नाम जो एक स्त्री राज्य की रानी थी (को॰) । उ०-गात संवारण में गमे, ऊमर काय अजाण । पाखर प्रमोलिका-सज्ञा स्त्री० [स०] निद्रा । नीद [को०] । प्राण प्रमूकमो, खाख हुसी गल पाण-वांकी. , प्रमीलित-वि० [स० ] जिसकी प्रांखें बद हों [को०] । भा०२, पृ०४३ । प्रमीली-वि० [सं० प्रमोलिन् ] [ वि० स्त्री० प्रमीलिनी] निमीलित प्रमूढ-वि० [स०] १. अत्यंत मूर्ख । जड । वेवकूफ । २ व्याकुलित । करनेवाला । पाखें मुदानेवाला। भ्रमित । चकगता हुप्रा (फो०] । प्रमीली-सक्षा पुं० [सं०] एक दैत्य । प्रमूढता-सशा पी० [सं०] मिरगी पाने के पूर्व का एक लक्षण प्रमुक्त-वि० [सं०] १ जो मुक्त कर दिया गया हो। जिसके वधन जिसमें इद्रियां शिथिल होने लगती हैं।-माधव०, ढीले कर दिए गए हो। उ०-सौरभ प्रमुक्त प्रेयसी के पृ० १३० । हृदय से हो तुम प्रति देश युक्त ।-अनामिका, पृ० २१ । प्रमृत-संज्ञा पुं० [स०] १ मरण । मृत्यु।२ मनु के अनुसार हल २ स्वतत्र । मुक्त (को०) । ३ त्यागा हुमा । परित्यक्त (को०)। जोतकर जीयिफा करने का काम । कृपि । ४ फेंका हुमा । प्रक्षिप्त (को॰) । विशेप-हल चलने में मिट्टी में रहनेवाले बहुत से जीव मर जाते प्रेमुक्ति-सहा सी० [स० ] मुक्तता । स्वतत्रता (को॰] । हैं इससे उसे मृत कहते हैं । प्रमुख'-क्रि० वि० [सं०] १ समुख । सामने । पागे । २ उस प्रमृत-वि० १ दृष्टि की सीमा से दूर । मोझल । २ मरा हुमा । समय । तत्काल । मृन । निष्प्राण । ३ ढंका हुमा । प्राप्त [को०] । प्रमुख-वि० १. प्रथम । पहला । २ मुरुप । प्रधान । श्रेष्ठ । ३ प्रमृष्ट-वि० [सं०] १. निरस्त । २ माजित । चमकाया हुप्रा । मान्य । प्रतिष्ठित । अगुमा। मांजा घोया । पोंछा हुमा । प्रमुख:-प्रव्य० इससे प्रारम करके और और । इन मुख्यों के प्रमेय'-वि० [ 10 ] १. जो प्रमाण का विषय हो सके। वह अतिरियत और प्रौर । इत्यादि । वगैरह । उ०-बघुक सुमन जिसका वोघ करा सकें । २ जिसका मान बताया जा सके । अरुण पद पकज मकुश प्रमुख चिह्न परि पाए ।-सूर जिसफा भदाज करा सकें। ३ अवधार्य । अवधारण योग्य | (शब्द०)। जिसका निर्धारण कर सकें। प्रमुख-सज्ञा पुं० १ आदि । प्रारभ । २ समूह । ३ पुन्नाग । ४ मुख (को०)। ५ सम्मानयुक्त व्यक्ति । पादरणीय व्यक्ति प्रमेय'-तज्ञा पुं० १. वह जो प्रमा या यथार्थ ज्ञान या विषय हो । (को०)। ६ अध्याय, परिच्छेद प्रादि का प्रारभ (को०। यह जिसका वोध प्रमाण द्वारा करा सकें । वह वस्तु या वात जिसका यथार्थ ज्ञान हो सके। प्रमुग्ध-वि० [सं०] १. चेतनारहित । २. मूढ । हतबुद्धि। ३. अत्यत सु दर । अतीव सलोना [को०) । विशेष-शान का विषय बहुत सी वस्तुएं हो सकती हैं पर प्रमुच-सहा पु० [ स० ] दे० 'प्रमुचि' । न्याय दर्शन में गौतम ने उन्ही वस्तुणों को प्रमेय के मतर्गत लिया है जिनके शान से मोक्ष या अपवर्ग की प्राप्ति होती प्रमुचि-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० ] एक ऋषि का नाम । है । ये वारह है-प्रात्मा, शरीर, इ द्रिय, अर्थ, वुद्धि, मन, प्रमुचु-सज्ञा पुं० [सं०] ० 'प्रमुचि'। प्रवृत्ति, दोष, प्रेत्यभाव, फल, सुम्न और अपवर्ग । यद्यपि प्रमुद-वि० [ स० प्रमुद् ] हृष्ट । मानदित । वैशेषिक के द्रव्य, गुण, कर्म सामान्य, विशेष प्रौर समवाय प्रमुदाज-सज्ञा श्री० [सं० प्रमदा ] दे० 'प्रमदा' । उ०—प्रमुदा सब पदार्थ ज्ञान के विषय हैं तपपि न्याय मे गौतम ने बारह प्रान समान नही विसरत्त एक छिन ।-पृ० रा०, ११३७० । वस्तुमो का ही प्रमेय के प्रतर्गत विचार किया है। प्रमुदित-वि[सं०] हषित। पानदित । प्रसन्न । उ०-(क) २ परिच्छेद। प्रमुदित पुर नर नारी सब सहिं सुमगल चार ।-मानस, प्रमेसर-सशा पं० [सं० परमेश्वर ] दे० 'परमेश्वर'। उ०- २।२३ । (ख) तब मयायन विर्ष सुभट मत्रिन नै जे वचन पूरण पुरस प्रमाणे प्रमेसर । सुकवि सधार वार अग्रेस्वर ।- कहे ते रानी जसखान प्रमुदित हो कही के थोको छत्रिय धर्म रा० रु०, पृ०४॥ सध्यौ छ।-५० रासो, पृ०६६ । प्रमेह-सच्चा पुं० [ स०] एक रोग जिसमें मूत्रमार्ग से शुक्र तथा यौ०-प्रमुदिश्वदन = प्रसन्नमुख । प्रमुदितहृदय = मातरिक पारीर की और धातुएँ निर ला करती हैं। पातु गिरने पानदयुक्त । प्रसन्नचित्त। का रोग। .