क्षुब्ध (को०)। पक्षी (को०)। प्रलापी प्रवच्छतिप्रेयसी प्रलापी-वि० [सं० प्रलापिन् ] [वि॰ स्त्री० प्रलापिनी ] प्रलाप प्रलोप-सचा पु० [म०] ध्वस । नाश । करनेवाला । व्यर्थ बकनेवाला । अह वड वकनेवाला । उ० प्रलोभ-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] लालच । अत्यत लोभ । सुनेहि न सवन अलीक प्रलापी।-मानस, ६।२५ । प्रलोभक-सञ्ज्ञा पु० [स०] प्रलोभन देनेवाला । लालच देनेवाला । प्रलापुल-सज्ञा पुं॰ [सं० प्रलाप दे० 'प्रलाप' । उ०—सूर समर प्रलोभन-सशा पु० [स] १ लोभ दिखाना। लालच दिखाना । करनी करहिं, कहि न जनावहिं पापु । विद्यमान रन पाय किसी को किसी प्रोर प्रवृत्त करने के लिये उसे लाभ की प्राशा रिपु, फायर करहिं प्रलापु ।—मानस, ११२७४ । देने का काम । जैसे,—तुम उसके प्रलोभन में मत आना । प्रलिप्त-वि० [सं० ] लिप्त । लिपा हुआ । लगा हुआ (को०] । २ वह वस्तु जिमसे लालच उत्पन्न हो। ललचानेवाली प्रलीन-वि० [स०] १ समाया हुअा। तिरोहित । २ विनष्ट । वस्तु (को०)। नष्ट । प्रलयप्राप्त (को०)। ३. छिपा हुआ । लीन । निमग्न । प्रलोभनी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] रेत । वालू (को०) । (को०) । ४ चेप्टाशून्य । जडवत् । प्रलोभित-वि० [सं०] प्रलोभ में पाया हुा । ललचाया हमा। प्रलीनता-सज्ञा सी॰ [म] १. प्रलय । नाश । विलीनता । तिरोभाव । मुग्ध । मोहित । २ चेष्टानाश | जडत्व । प्रलोभी-वि० [स० प्रलोभिन् ] प्रलोभ में फंसनेवाला । लुब्ध । प्रलीनेद्रिय-वि० [स० प्रलीनेन्द्रिय] जिसकी इद्रियाँ चेष्टारहित हो । शिथिल इद्रियोवाला (फो०] । प्रलोल-वि० [म.] १ अत्यत चचल । २ उत्तेजित । अत्यत कपित । 1- प्रलुटित-वि० [स०] १ भूमि पर पतित । गिरा हुया । २ उछलता कूदता हुआ (को०)। प्रल-सडा पुं० [स० प्रलय प्रा० पलव ] ८० 'प्रलय' । उ०- प्रलुप्त-वि० [ म०] जो लुप्त किया गया हो [को॰] । चपै न सीम साहाव सक, धक घफि घर करिही प्रलो। पृ० रा०, १३।३१। प्रलुब्ध-वि० [म.] लुब्ध । लालच मे पड़ा हुआ [को०] । प्रलुब्धा-वि० स्त्री० [स०] वह (स्त्री) जो अनुचित रूप से प्रेम करती प्रवंग, प्रवगम-सज्ञा पु० [सं० प्रवङ्ग, प्रवगम ] १. बदर । २. हो [को०)। प्रलून-वि० [स०] काटा हुआ । कतित । प्रवचक-सञ्ज्ञा पु० [सं० प्रवञ्चक ] वचन करनेवाला । भारी ठग । प्रलेप-सञ्ज्ञा पुं० [स.] १. किसौ गीली दवा को पीडित अग पर घोखेबाज । भारी धूर्त । उ०-तोडा गया पुल प्रत्यावर्तन के चढाने की प्रिया । अग पर कोई गीली दवा छोपना या पथ में अपने प्रवचको से। -लहर, पृ० ५६ । रखना । २ लेप । पुल्टिस। प्रवंचन-सञ्चा पुं० [सं० प्रवञ्चन] घोखा देना । ठगना । वचना (को०)। प्रलेपक-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ लेप करनेवाला । २ एक प्रकार का प्रवंचना--सज्ञा स्त्री॰ [स० प्रवञ्चना ] छल । ठगपना । धूर्तता । जीणं ज्वर । प्रवचित-वि॰ [स. प्रवञ्चित ] जो ठगा गया हो। जिसने धोखा विशेप-यह ज्वर वात, कफ से उत्पन्न होता है। इसमे पसीने खाया हो। के ससर्ग से चमड़ा लिपा हुआ अर्थात् भीगा सा रहता है और प्रवंद-शा ० [सं० प्रबन्ध ] दे० 'प्रबध । निवध । उ०- ज्वर बहुत थोडा थोडा रहता है । यह ज्वर अत्यंत कष्ट- कथिमथि कहेव सो छद प्रवदे प्रविगति जेहि पहिचानी।- साध्य है। स० दरिया, पृ०१३९ । प्रलेपन-सज्ञा पुं० [सं०] लेप करने की त्रिया। पोतने का काम । प्रवक्ता-सञ्ज्ञा पु० [स० ऽवयत ] १ मच्छी तरह बोलने या कहने- प्रलेग्य-वि० [सं.] लेप करने योग्य । वाला। २ वेदादि का उपदेश देनेवाला । अच्छी तरह समझा- प्रलेप्य-सज्ञा पु० कुचित केश । घुघराले वाल । कर कहनेवाला। प्रलेह-सा पु० [सं०] मास का एक व्यजन जो मास के छोटे छोटे प्रवग-सञ्ज्ञा पु० [स०] पक्षी । खड काटकर घी में तलकर बनाया जाता है । कोरमा। प्रवचन-सञ्ज्ञा पु० [स०] [वि० प्रवचनीय] १ अच्छी तरह समझा- प्रलेहन-'सज्ञा पुं॰ [स०] चाटना । कर कहना । अर्थ खोलकर बताना। २. व्याख्या । ३ वेदाग। प्रल-सशः पुं० [सं० प्रलय ] दे० 'प्रलय'। उ०-मेरे जान मेरी प्रवचनपटु-वि० [म.] सुवक्ता । बातचीत मे कुशल [को०] । जान लेन पाछे प्रावति है सूल लिए कोप भरी प्रल कपाली सी।- पोद्दार अमि० ग्र०, पृ० ४६१ । प्रवचनीय'-पि. [म.] बताने या समझाकर कहने योग्य । प्रवचनीय-सज्ञा पुं० प्रवक्ता। अच्छी तरह समझाकर कहनेवाला। प्रलोक-सशा पुं० [स० परलोक] दे॰ 'परलोक"। उ०-लोक प्रलोक सबै मिले देव इद्र है होइ । सुदर दुरलभ संत जन क्यों करि- प्रयच्छतिप्रेयसी-सशा स्पी[सं० प्रवत्स्यस्प्रेयसी] दे० 'प्रवत्स्य- पावै कोह। -सु दर० प्र०, भा॰ २, पृ० ७४४ । त्पतिका' । उ०-होनहार पिय के विरह, विकल होय जो प्रलोठन-सज्ञा पु० [सं०] १. भूमि पर लुढकना । २ उछलना । वाल । ताहिं प्रवच्छतिप्रेयसी वरनत बुद्धि विसाल ।-मति. कूदना [को०)। J०, पृ०३१५।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४८६
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