पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४९२

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प्रवेसना २२०१ प्रशस्त प्रवेसना-क्रि० प्र० [स० प्रवेश] प्रवेश करना । घुसना । पैठना । लेकै पाए हैं। -प्रियादास (शब्द०)। (ख) मत्री प्रसिद्ध उ०-सो सिय मम हित लागि दिनेसा । घोर बननि महें प्रशस तू ।-पूर्ण (शब्द॰) । कीन्ह प्रवेसा । -रामाश्वमेघ ( शब्द०)। प्रशसक-वि० [सं०] १. प्रशंसा करनेवाला। स्तुति करनेवाला । प्रवेसना-क्रि० स० प्रविष्ट करना । घुसाना । २. खुशामदी । चाटुकार। प्रव्यक्त-वि० [स०] स्फुट । व्यक्त । प्रकट (को०] । प्रशसन-सज्ञा पुं० [सं०] वि० प्रशसनीय, प्रशंसित, प्रशस्य ] १ गुणकीर्तन । गुणो का वर्णन करते हुए स्तुति करना । प्रव्यक्ति-सज्ञा स्त्री० [स०] आविष्करण । प्रकाशन । व्यक्ति [को०] । सराहना । तारीफ फरना । २ धन्यवाद । साधुवाद । प्रव्याहरण-सज्ञा पुं० [सं०] बोलने, भाषण करने वा वाद करने प्रशंसना-क्रि० स० [ स० प्रशंसन ] सराहना । गुणानुवाद का स्थान [को॰] । करना। बखानना | तारीफ करना । उ०—(क) रचि लक्ष्य प्रव्याहार-सचा पुं० [सं०] १ भाषण । कथन । उक्ति । २ वाद विविध प्रकार मुनिवर तिन्हें भेदन को कहैं । अरु हस्त- का बढ़ना । कथन या भाषण का जारी रहना। ३ ध्वनि । लाघव देखि सुतन प्रशसि उर आनंद गहैं। लवकुशचरित्र प्रावाज । शब्द । रव [को०] । (शब्द॰) । (ख) ताके पुत्र अनूपम माही। वेद पुराण प्रव्याहृत-वि० [सं०] १. भविष्य के रूप में कथित । २ उक्त । प्रशसत जाही। -सबलसिंह (शब्द०)। कथित [को॰] । प्रशसना-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स] प्रशसा । प्रशसन । प्रव्रजन-सज्ञा पुं० [स०] [वि॰ प्रवजित] १. घर वार छोडकर प्रव्रज्या प्रशसनीय-वि० [स०] सराहने योग्य । स्तुत्य [को०] । या सन्यास लेना । २ बाहर जाना । परदेश जाना (को०) । प्रशसा-सचा स्त्री० [सं०] १ गुणवर्णन । स्तुति । बडाई । श्लाघा । प्रवजित'-वि० [सं०] १ संन्यासी । २. गृहत्यागी। तारीफ। २ कीर्ति । ख्याति । प्रसिद्धि (को०) । प्रव्रजित-सचा पुं० १. सन्यासी। वह व्यक्ति जिसने चतुर्थ भाश्रम क्रि० प्र०—करना । —होना । ग्रहण कर लिया हो। २ बौद्ध या जैन भिक्षु का एक यौ०-प्रशसालाप = प्रश्य सा । श्लाघा । प्रशसामुखर = उच्च स्वर शिष्य । ३. सन्यास आश्रम । चतुर्थ पाश्रम [को॰] । से गुण वर्णन करनेवाला । प्रशसोपमा । प्रव्रजिता-सञ्चा स्त्री० [स०] १. जटामासी । २. गोरखमु डी। प्रशसित-वि॰ [ स०] जिसकी प्रशसा हुई हो। प्रशसायुक्त । ३. तपस्विनी । तापसी (को॰) । सराहा हुमा । प्रव्रज्या-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ सन्यास-। भिक्षाश्रम । २ जाना। प्रशसो-वि० [सं० प्रशसिन् ] दे० 'प्रशसफ' (को०] । वाहर जाना। विदेशगमन (को०)। ३ तृतीय पाश्रम । प्रशसोपमा-सज्ञा स्त्री॰ [सं० ] उपमालकार का एक भेद जिसमें वानप्रस्थ (को०)। उपमेय की अधिक प्रशंसा करके उपमान की प्रशसा धोतित क्रि० प्र०-ग्रहण करना।-लेना। की जाती है। जैसे,—जो शशि शिव सिर घरत हैं सो तव बदन समान। प्रव्रज्यावसित-सचा पुं० [सं०] जो संन्यास ग्रहण करके उससे च्युत हो गया हो। प्रशस्य-वि० [ स० ] प्रशसा करने योग्य । प्रशसनीय । प्रशक्य-वि० [सं०] १ शक्ति भर करनेवाला। २. किया जाने विशेष-प्रवज्याभ्रष्ट व्यक्ति को प्रायश्चित करना होता है। योग्य । जो किया जा सके। पर प्रायश्चित्त करने पर भी उसके साथ खानपान का व्यवहार नही रखना चाहिए। प्रशत्त्वरो-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] नदी। सरिता [को०] । प्रशत्त्वा, प्रशवा-मज्ञा पु० [ सं० प्रशस्वन् , प्रशत्वन् ] समुद्र । प्रव्रज्यावत-सचा पुं० [सं०] नेपाली बौद्धों के यहाँ का एक सस्कार जो हिंदुनो के यज्ञोपवीत के ढग पर होता है। प्रशम-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ शमन । उपशम । शाति । २ निवृत्ति । नाश । ध्वस । भागवत के अनुसार रतिदेव के पुत्र का प्रव्रश्चन-सक्षा पु० [स०] खुखडी जिससे लकडी काटी जाय । काठ नाम । काटने की कुल्हाडी [को०] । प्रशमन-सचा पु० [स०] १ शमन । शाति । २ नाशन । ध्वस प्रव्राज -सञ्चा पुं० [सं०] सन्यासी [को०] । करना । ३ मारण । वध । ४. प्रतिपादन । ५ दान (को॰) । प्रब्राज-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ बहुत नीची जमीन । २ सन्यास । ६. दबाना । वश में करना । स्थित करना। ७ सत्राजित प्रव्राजक-सक्षा पुं० [सं०] [ स्त्री० प्रवाजिका ] सन्यासी [को०] । के भाई का नाम । ८ मस्तप्रहार । प्रव्राजन-सचा पुं० [स०] दे० 'प्रव्रजन' । प्रशमित-वि० [सं०] जो शांत हो । जो नीरव हो । उ०-प्रशमित प्रशसg'–सचा जी० [सं० प्रशंसा ] दे० 'प्रशंसा'। है वातावरण, नमितमुख सांध्यकमल।-अपरा, पृ० ३८ । प्रशसर-वि० [स० प्रशंस्प] प्रशसा के योग्य । उ०—(क) गए जहाँ प्रशल-सज्ञा पुं० [सं०] हेमंत ऋतु । दे० 'असल' [को०) । .हस संत बानो सो प्रशस देखि जानि के बंधाए राजा पास प्रशस्त'-वि० [सं०] १ प्रशसनीय । सुदर । २ जिसकी प्रशसा