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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४९३

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प्राचीन पुस्तको शिक्षा। प्रशस्त ३२०२ प्रश्न की गई हो (को०)। ३ श्रेष्ठ । उत्तम । भव्य । ४ विस्तृत । प्रशासक-पज्ञा पुं० [सं०] १ शासन करनेवाला । पास्ता । 30- व्यापक । उ०-अकबर कालीन कवियो के लिये काध्य का ऐसे वयोवृद्ध विद्वान् अनथक कार्यकर्ता पौर अनुभवी प्रशासक मार्ग प्रशस्त कर दिया था ।-प्रकवरी०, पृ०७ । ५ स्वच्छ के पादरायं जो प्रयास मध्य प्रदेश माहित्य संमेलन द्वारा किया साफ । चौडा । जैसे, प्रशस्त ललाट (को०)। जा रहा है, उसका मैं स्वागत करता हूँ।-शुक्न मभिः प्रशस्त --सज्ञा पुं० सज्ञा स्त्री० करजोडी नाम की जडी। हत्थाजोडी। ग्रं० (सदेश), पृ० १ । २. प्राचार्य । उपदेष्टा । प्रशस्तपाद-सज्ञा पु० [ स०] एक प्राचीन प्राचाय जिनका वैशेषिक प्रशासकीय-वि० [सं०] प्रशासन से सवपित । प्रशासन का । दर्शन पर 'पदाथधमसग्रह' नामक प्रथ भवतक मिलता है। प्रशासन-मज्ञा पुं० [सं०] १ कर्तव्य की शिक्षा जो शिष्य प्रादि को इसे कुछ लोग वैशेषिक का भाष्य मानते हैं । दी जाय । २ शानन। प्रशस्ताद्रि-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ एक देश का नाम । घृहत्संहिता प्रशासित-वि० [सं०] १ जिसका अच्छा शामन किया गया हो । के मत से यह देश ज्येष्ठा, पूर्वा, मूल और शतभिप के २ शिक्षित । ३ पाशप्त । प्रादिष्ट (को०) । पधिकार में है । २ एक पर्वत (को०)। प्रशासिता-सया पुं० वि० [स० प्रशामितृ ] १ शासन कर्ता । शासक । प्रशस्ति-सशा खी० [स०] १ प्रशसा। स्तुति । २ वह प्रशसा २ सलाह देनेवाला । परामशदाता (को०)। सूचक वाक्य जो किसी को पत्र लिखते समय पत्र के मादि में प्रशास्ता-सदा पुं० [सं० प्रशास्तृ] १ होता का महकारी एक लिखा जाता है। सरनामा । ३ किसी की प्रशसा मे लिखी ऋस्विक् जिसे मैत्रावरुण भी पहते हैं। २. स्विक् । ३ गई कविता (को०)। ४ राजा की ओर से एक प्रकार के मित्र । ४ शासनकर्ता । राजा । शासक। प्राज्ञापत्र जो पत्थरो की चट्टानो या ताम्रपत्रादि पर खोदे प्रशास्त्र-सरा पुं० [स०] १ एक याग का नाम । २. प्रशास्ता का जाते थे और जिनमे राजवश और कीति आदि का वर्णन कर्म । ३ प्रशास्ता के सोमपान करने का पात्र । होवा था। ५ वर्णन । विवरण (को॰) । के प्रादि और मत को कुछ पक्तियाँ जिनसे पुस्तक के कर्ता, प्रशिक्षण-सज्ञा पुं० [ #० प्र (उप०) + शिक्षण ] किसी कार्य को कुशलतापूर्वक करने के लिये दी जानेवाली शिक्षा । शिक्षण । विषय, कालादि का परिचय मिलता हो । प्रशस्य-वि० [स०] १ प्रशसा के योग्य । प्रशसनीय । २ श्रेष्ठ । प्रशिथिल-वि० [ म०] १ प्रत्यत ढोला । २ प्रत्यन दुर्वल या उत्तम । पतला । अत्यत सूक्ष्म या कृश [को॰] । प्रशात'-वि० [सं० प्रशान्त] १ चचलतारहित । स्थिर । २ शांत । निश्चल वृत्तिवाला। ३ मृत। मरा हुमा (को०)। ४ प्रशिष्ट-वि० [सं०] दे० 'प्रशासित' [को०] । वशीकृत वश में लाया हुमा । सघाया हुआ (को०)। प्रशिष्टि-सा खी० [सं०] १ अनुशासन । शिक्षा । उपदेश । २. प्रादेश । प्राज्ञा । यौ०-प्रशासकाम = जिसकी कामनाएं पूरी हो गई हों । सतुष्ट । प्रशांतचित्त = जिसका चित्त शात हो । शातचित्त । प्रशातचेष्ट = प्रशिष्य-पुच्चा पुं० [स०] १. शिष्य का शिष्य । २ परंपरागत शिष्य । जिसने प्रयत्न करना छोड दिया हो। जिसकी चेष्टा शांत प्रशिस-मक्षा स्त्री॰ [ मं० ] आज्ञा । अनुशासन । हो गई हो । प्रशातयाव = जिसकी सब बाधाएं दूर हो प्रशीत-वि० [ मं० ] शीत से जमा हुमा [को०] । गई हो। प्रशुद्धि-सज्ञा पी० [ म०] पवित्रता । शुद्धता । स्वच्छना [को०] । प्रशात-सञ्ज्ञा पु० एक महासागर जो एशिया के पूर्व एशिया और प्रशुश्रुक्-सज्ञा पुं॰ [सं०] वाल्मीकीय रामायण के अनुसार मक अमरीका के बीच मे है । (प्राधुनिक भूगोल)। देश के एक राजा का नाम । प्रशातात्मा-वि० [सं० प्रशान्तात्मन् ] जिसका चित्त शात हो। प्रशून-वि• [ स०] सूजा हुमा [को०] । प्रशातचित्त [को०] । प्रशोचन-मा पुं० [सं०] वैद्यक की एक क्रिया का नाम जिसमे प्रशातोर्ज-वि० [ म० प्रशान्तोर्ज ] जिसकी शक्ति शात या क्षीण रोगी के व्रणादि को जला देते हैं । दागना । हो गई हो को०] । प्रशोप-प्रज्ञा पुं० [सं० ] सूखना । शुष्कता । खुश्की [को॰] । प्रशाति-सशक्षा सी० [सं० प्रशान्ति ] १ शाति । २ स्थिरता। ३ प्रशोषण-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ सोखना । सुखाना । २ एक राक्षस शमन (को०)। जो बच्चो में सुखढी रोग फैलाता है। प्रशाख-वि० [सं०] १ जिसकी कई शाखाएँ हो। जिसकी फैली प्रश्चोतन, प्रश्च्योतन-मशा पुं० [स०] चना । टपकना । रिसना । हुई शाखाएं हों। २ (वह भ्रूण) जिसके निर्माण का पांचवां मदस्राव [को०] । महीना हो। तबतक भ्रूण मे हाथ और पैर बन जाते प्रश्न-मज्ञा पुं॰ [स०] १ किसी के प्रति ऐसे वाक्य का कथन जिससे हैं [को०] । कोई बात जानने की इच्छा सूचित हो । पूछताछ । जिज्ञासा । प्रशास्त्रा-सज्ञा ली० [स०] गाखा की शाखा । टहनी । पतली शाखा । सवाल । जैसे,—पहले मेरे प्रश्न का उत्तर दीजिए तब कुछ प्रशाखिका-सच्चा स्त्री० [स०] छोटी टहनी । कहिए।