पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५०२

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प्रस्तोभ ३२११ प्रस्फुटन करे । प्रस्तवन करनेवाला व्यक्ति । ३. प्रस्ताव करनेवाला। प्रस्थानदु'दुभि-सञ्ज्ञा मी० [स० प्रस्थानदुन्दुभि] कूच का डंका [को॰] । प्रस्तुत करनेवाला । रजिस्ट्रार । जैसे, संस्कृत विश्वविद्यालय प्रस्थानी-वि० [हिं० प्रस्थान+ ई] जानेवाला । प्रस्थान करनेवाला । के प्रस्तोता। उ०-उठे सुनत हरि उद्धव बानी। भे पुनि शुक्रप्रस्थ प्रस्तोम-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का साम । प्रस्थानी। -सबलसिंह (शब्द०)। प्रस्थंपच-वि० [स० प्रस्थम्पच] माप या तौल में एक प्रस्थ पकाने- प्रस्थानीय-वि० [स०] प्रस्थान योग्य । वाला [को०] । प्रस्थापन-सज्ञा पुं० [स०] [ वि० प्रस्थापित, प्रस्थापी, प्रस्थाप्य ] प्रस्थ'–सचा पुं० [स०] १. पहाड के ऊपर की चौरस भूमि । अघि- १. प्रस्थान कराना । भेजना । २. प्रेरण । दूतादि के काम में त्यका | टेवुललैड । २ वह मैदान जो बराबर या समतल नियुक्त करना । ३. स्थापन | ४. सिद्ध करना। प्रमाणित हो। ३ प्राचीन काल का एक मान । करना । (को०)। ६. व्यवहार में लाना। काम मे लाना विशेष-यह दो प्रकार का होता था, एक तौलने का, दूसरा (को०)। ७ जानवरो को चुरा ले जाना (को॰) । मापने का। इसके मान में मतभेद है, कोई चार कुडव का प्रस्थ मानते हैं कोई दो शराव का। बहुतो के मत से एक प्रस्थापना-सक्षा स्त्री॰ [स०] भेजना। रवाना करना । प्रेषण [को॰] । माढक का चतुर्थांश प्रस्थ होता है। वमन, विरेचन और प्रस्थापित-वि० [सं०] १. अच्छी तरह स्थापित । २. प्रेषित । शोणितमोक्षण मे माढ़े तेरह पल का प्रस्थ माना जाता है । भेजा हुमा। ३. पागे की भोर किया या बढाया हुआ। ४ कुछ लोग इसे छह पल का और कुछ लोग द्रोण का षोडशाश अनुष्ठित । जैसे, कोई उत्सव मादि (को०) । मानते हैं। प्रस्थायी-वि० [ स० प्रस्थायिन् ] जो भविष्य में प्रस्थान करने- ४. पहाडो का ऊँचा किनारा । ५ वह भाग जो ऊपर बहुत उठा वाला हो। हो। ६ विस्तार । ७ कोई वस्तु जो एक प्रस्थ मान की प्रस्थावाल-सज्ञा पुं॰ [स० प्रस्थान] चलना । गमन । उ०- भएउ हो [को०]| इद्र कर पायेसु प्रस्थावा यह सोइ। कबहुँ काहु के प्रभुता प्रस्थ-वि०१ जानेवाला। यात्रा करनेवाला। २ फैलानेवाला। कबहुँ काहु के होइ । —जायसी ग्र० (गुप्त), पृ० ३५२ । ३ प्रकृष्ट रूप से स्थित । दृढ (को०)। प्रस्थिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ प्रामडा । २. पुदीना । प्रस्थकुसुम-संज्ञा पुं० [स०] मश्वा । प्रस्थित-वि० [सं०] १. ठहरा हुमा । टिका हुमा । स्थिर । २. दृढ़ । प्रस्थपुष्प-सचा पुं० [स०] १ मरुवे का पौधा । २ छोटे पत्तो की ३. जो गया हो। गत । ४. जो जाने को तैयार हो। तुलसी। ३ जबीरी नीबू । गमनोद्यत । प्रस्थभुक्-वि० [स०] एक प्रस्थ अन्न खानेवाला को०] । प्रस्थिति-सज्ञा स्त्री० [स०] १ प्रस्थान । यात्रा । २ विशेष स्थिति । प्रस्थल-सक्षा पुं० [स०] महाभारत के अनुसार एक देश जो उस समय प्रस्न'–सशा पुं० [सं०] स्नानपात्र । सुशर्मा नामक राजा के पधिकार मे था । प्रस्न–सा पुं० [सं० प्रस्न ] दे० 'प्रश्न' । उ०-ऐसिन प्रस्न प्रस्थान-सझा पुं० [स०] १ गमन । यात्रा । रवानगी। २ विजय बिहगपति कीन्हि काग सन जाइ ।-मानस ७१५५ । के लिये सेना या राजा की यात्रा । कूच । ३ पहनने के कपडे आदि जिसे लोग यात्रा के मुहत पर घर से निकालकर यात्रा प्रस्नव-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ वहना। प्रवाह । प्रस्राव । २ धारा । की दिशा में कहीं पर रखवा देते हैं। उ०-तिथि नखत्त जैसे दूध की । ३. अश्रु । भासू । ४ मूत्र (फो०] । गुरु पार कहीजै । सुदिन साधि प्रस्थान धरीजै ।-जायसी प्रस्निग्ध-वि० [सं०] १ जिसमें बहुत अधिक चिकनाई हो । २. (शब्द०)। बहुत अधिक कोमल [को०] । विशेष-यह ऐसी दशा में किया जाता है जब कोई ठीक मुहूर्त प्रस्तुत-वि० [स०] वहनेवाला । टपकनेवाला । क्षरण शील । प्रनवित पर यात्रा नहीं कर सकता। होनेवाला [को०] 1 क्रि० प्र०-धरना। -रखना । करना । यौ०-प्रस्नुतस्तनी=वह स्ली जिसके स्तनो से वात्सल्य के कारण ४. मार्ग। ५ उपदेश की पद्धति या उपाय। ६. बैखरी बानी दुग्धनाव हो। के भेद जो अठारह हैं, यथा-४ वेद, ४ उपवेद, ६ वेदाग, प्रस्नुषा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] नतोहू । पोते को स्त्री। पुराण, न्याय, मीमांसा और धर्मशास्त्र । ७ मरण । प्रस्नेय-वि० [सं०] (जल मादि) जो स्नान के योग्य हो। मृत्यु (को०)। ८ प्रेषण । भेजना (को०)। ६ विधि । ढग । तरीका (को०)। १० निम्न श्रेणी का नाटक (को०) । ११ प्रस्पदन-सञ्ज्ञा पु० [स० प्रस्पन्दन] फडकना । कपन [को०] । धार्मिक निकाय । धार्मिक स प्रदाय (को०)। १२. आगमन । प्रस्पर्धी-वि० [स० प्रस्पर्धिन्] प्रतिद्वद्वी । प्रतिस्पधी [को०] । आना (को०)। प्रस्फुट-वि० [सं०] १ विकसित । खिला हुमा । २ प्रकट । स्पष्ट । प्रस्थानत्रय-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] द० 'प्रस्थानत्रयी' [को०] । साफ। ज्ञात । प्रस्थानत्रयी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] भगवद्गीता, उपनिषद् मोर ब्रह्मसूत्र । प्रस्फुटन-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १. खिलना । विकसित होना । २ प्रकट [को०] । होना । स्पष्ट होना। अभिव्यक्त होना। ३०-बहुधा देखा