पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५०६

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प्रांतस्थ। हुए (को०] । प्रहलादक २२१५ प्रांशुषाकार हिरण्यकशिपु को मार डाला। प्रह्लाद का पुत्र विरोचन और किसी देश का एक भाग। खड। प्रदेश । जैसे, सयुक्त प्रात, पौत्र बलि था । पजाब प्रात। ५ एक ऋषि का नाम । ६ इस ऋषि के ३ एक देश का नाम । ४ एक नाग का नाम । ५ ध्वनि । गोत्र के लोग । ७ कोना (जैसे खि का)। धावाज (को०) । ६ चावल की एक जाति । यौ०-प्रातग | प्रांतचर = दे० 'प्रातग' । प्रांतदुर्ग। प्रांतनिवासी = प्रहलादक-वि० [ स०] [ वि० सी० प्रह्लादिका ] प्राङ्गादित करने दे० 'प्रातग'। प्रांतपति-प्रदेशपति । राज्यपाल । गवरनर । वाला । मनंदित करनेवाला [को॰] । प्रांतपुष्पा । प्रांतभूमि । प्रातविरस प्रारभ मे सरस पर अंत प्रहलादन'-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] मालादित करना। प्रसन्न करना। में रसहीन या वेरस । प्रातवृत्ति । प्रातशून्य = दे० 'प्रातरशून्य' प्रह लादन-वि० मानददायक । प्राह्लादक । प्रहलादित-वि० [ स० ] प्रानदित । हर्षित । प्रफुल्लित । प्रांतग-वि० [स०] १. सीमा पर रहनेवाला । जो प्रांत मे या सरहद पर रहता हो। २ पास रहनेवाला । समीपस्थ (को॰) । प्रहलादी-वि० [सं० प्रह्लादिन् ] पानदित होनेवाला । प्रसन्न होने- वाला [को०] । प्रातत.-क्रि० वि० [स० प्रान्ततस् ] सीमा या हद से होता हुमा । प्रह-वि० [सं०] १ विनीत । नम्र । २ मुका हुआ। ढालुप्रा । छोर से होकर [को०] । ३. मासक्त। प्रांतदुर्ग-मज्ञा पुं० [ स० प्रान्तदुर्ग ] वह दुर्ग जो नगर के किनारे प्रहण- सञ्चा पुं० [ मं०] प्रदर्शन के लिये मुकना । सम्मानार्थ नम्र प्राचीर के बाहर हो । नगर के परकोटे के बाहर का दुर्ग । होना [को०] । प्रातपुष्पा-सशा स्त्री० [स० प्रान्तपुप्पा] १ एक फूल का नाम । २ प्रहल-सज्ञा पुं॰ [सं०] सौंदर्ययुक्त देह । सु दर शरीर । इस फूल का पौषा। प्रहलिका, प्रवलीका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] पहेली। प्रातभूमि-मशा स्त्री॰ [ स० प्रान्तभूमि ] १ किसी पदार्थ वा प्रतिम भाग। किनारा । छोर । २ योगशास्त्र के अनुसार समाधि, प्रांजलि-वि० [सं० प्रदान्जलि ] हाथ जोडकर सिर झुकाए जो योग की प्रतिम सीमा मानी जाती है । ३ सीढी । प्रह्माण-वि० [सं०] नम्र । झुका हुमा [को०] । प्रांतभूमौ–क्रि० वि० [सं० प्रान्तभूमौ ] पत में । आखीर में (को०] । प्रह्वाय-सचा पुं० [स०] माह वान । अभिनिमत्रण । पावाहन [को०] । प्रांतर-सञ्चा पु० [सं० प्रान्तर] १ दो स्थानो के बीच का लबा प्रांग-सज्ञा पुं० [० प्राग ] एक प्रकार का छोटा पणव या मार्ग जिसमें जल या वृक्षो आदि की छाया न हो। २ दो ढोल (को०]. गावो के बीच की भूमि । उ०—कही खडे थे खेत, कही प्रातर पढे, शून्य सिंघु के द्वीप गांव छोटे बहे ।-साकेत, प्रांगण-सञ्ज्ञा पुं० [सं० प्राङ्गण ] १. मकान के बीच या सामने का पृ० १२६ । ३ दो प्रदेशो के बीच का शून्य स्थान । अवकाश । खुला हुआ भाग । प्रांगन । सहन । २ एक प्रकार का ढोल । ४. जगल । ५. वृक्ष के बीच का खोखला प्रश। पणव। प्रांगन-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० प्राङ्गण ] दे० 'प्रागण' । प्रातरशून्य-वि० [सं० प्रान्तरशून्य ] दो स्थानो के बीच का पेड और छाया आदि से रहित लवा रूखा मार्ग [को०] । प्रांजन-सज्ञा पुं० [सं० प्राजन] १. मजन या रंग। २ प्राचीन काल का एक प्रकार का लेप या रग जो बाण पर लगाया प्राववृत्ति-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० प्रान्तवृत्ति ] क्षितिज । जाता था। प्रातयन-सज्ञा पुं॰ [ सं० प्रान्तायन] प्रात नामक ऋषि के गोत्र के प्रांजल-वि० [सं० प्राञ्जल] १ सरल । सीधा । २ सच्चा । ईमान- लोग । दार । ३. बराबर । समान । जो ऊँचा नीचा न हो । प्रातिक-वि० [स० प्रान्तिक ] १. प्रांत सवधी। प्रातीय । २ प्रदेशी। ३. किसी एक देश या प्रात से सबध रखनेवाला। प्रांजलता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० प्राञ्जलता] प्राजल होने का भाव । उ०-भाषा के बिना न रहता अन्य भाव प्रातिक ।-अपरा, सरलता । सीधापन (को०] । पृ०६४। प्रांजलि'–वि० [स० प्राञ्जलि ] जो मजलि बांधे हो । मंजलिबद्ध' । प्रांतीय-वि० [स० प्रान्तीय ] प्रात या प्रदेश से सबंध रखनेवाला । प्राजलि-सज्ञा पुं० १. सामवेदियों का एक भेद । २ अंजलि । प्रातिक । जैसे, युक्तप्रातीय समेलन । प्रांजलिक, प्रांजली-वि० [स० प्राञ्जलिक, प्राञ्जलिन् ] दे० प्रांतीयता-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० प्रान्तीय + ता] प्रात के प्रति अत्यधिक 'प्रालि' [को०] । मोह । प्रात के प्रति पक्षपातपूर्ण भाव। प्रांत-सम्मा पुं० [सं० प्रान्त] [ वि० प्रांतिक ] १. प्रत । शेष । प्राशु'–वि० [ स०] [ सशा प्राशुता ] ऊँचा । उच्च । सीमा । २ किनारा । छोर। सिरा । उv-अधरो के प्रातो प्राशा-सज्ञा पु० १ वैवस्वत मनु के एक पुत्र का नाम । २ विष्णु । पर सेलती रेखाएं, सरस तरग भग लेती " की। ३ लबा व्यक्ति । वह जो ऊँचा हो (को०)। -अनामिका, पृ० ३७ । ३. मोर । ।४. मार-वि० [सं०] जिसकी दीवाल लवी भौर ऊंची हो [को॰] । 3 / मंजली।