पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५०९

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प्राक्चिर ३९९८ माग्भक्त प्राचिर-क्रि० वि० [स०] ठीक समय पर। अधिक देर होने के दर्शन में यह पाँच प्रकार के प्रभावो में पहला माना गया है । पूर्व [को०] । २. वह पदार्थ लिसका श्रादि न हो पर मत हो । अनादि । सात पदार्थ । प्राकछाय-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] जिस समय छाया पूर्व की ओर परती हो। अपराह्न काल। प्रागभिहित-वि० [ म०] पूर्वोक्त । पूर्वकथित [को०] । प्राक्तन'-मन्ना पुं० [सं०] वह कर्म जो पहले किया जा चुका हो और प्रागल्भ्य-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] १ प्रगल्भता । वीरता। २. धीरता। अागे जिसका शुभ और अशुभ फल भोगना पडे। भाग्य । ३. साहस । ४ निर्भयता। ५ घमा । ६ चतुरता। ७. प्रारब्ध। प्रधानता। प्रबलता। प्राक्तन:-वि० प्राचीन । पुराना । पहले का। प्रागार-सहा पु० [स] प्रासाद । भवन । महल | प्राक्तूल-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] दे॰ 'प्र क्कूल' । प्रागुक्ति-सक्षा स्त्री० [सं०] पूर्वकथन । वात जो पहले कही गई प्राक्पद-सज्ञा पुं॰ [सं०] समास में पूर्व पद [को०। हो (फो०] । प्राक्प्रवण-वि० [सं०] पूरव की ओर झुकावदार या ढालुवा (को०)। प्रागुत्तर-सशा पुं॰ [ स०] दे० 'प्रागुत्तरा'। प्राकप्रहार-सञ्ज्ञा पु० [स०] पहला आक्रमण । प्रथम आघात [को॰] । प्रागुत्तरा-देश० स्त्री० [सं०] पूर्व और उत्तर के बीच की दिशा | ईशान कोण । प्रायफल-सज्ञा पु० [सं०] कटहर । प्राकफल्गुनी-सज्ञा सी० [स०] दे॰ 'प्राक्फाल्गुनी' । प्रागुदीची-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं०] पूर्व और उत्तर के बीच की दीशा । ईशान कोण। प्राक्फाल्गुन-सज्ञा पुं॰ [स०] वृहस्पति ग्रह । प्रागैतिहासिक-वि० [सं०] इतिहास से पूर्व का। उस समय से प्राफाल्गुनी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ] पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र । पूर्व का जहाँ से इतिहास उपलब्ध होता है। उ०-वह सम- यौ०-प्राक्फाल्गुनीभषवृहस्पति ग्रह । स्या यह है कि प्राचीन ऐतिहासिक या प्रागैतिहासिक कथा-- प्रासंध्या - समा स्त्री० [सं० प्रासन्ध्या ] वह संधिकाल जो दिन नकों और भावधाराओं को हम माज किस रूप मे अपनाएं। प्रारम में हो । सूर्योदय के समय का सधिकाल । सवेरा। नया०, पृ० १७, प्राक्सघन-सचा पु० [सं०] प्रात कालीन उदकदान, या हवन प्राग्ज्योतिप-सक्षा पुं० [सं०] महाभारत प्रादि के अनुसार काम- यज्ञ [को॰] । रूप देश। प्राक्सी-सञ्ज्ञा स्त्री० [म. ] वह लेख जिसके द्वारा किसी सस्था का विशेष-प्राग्ज्योतिष देश आसाम मे है। महाभारत के समय कोई सदस्य किसी दूसरे सदस्य मादि को अपना प्रतिनिधि में यहां का राजा भगदत्त था और वह चीन और किरात की नियत करके उसे अपनी प्रोर से उपस्थित होकर समति सेना लेकर महाभारत सग्राम में पाया था। यह देश भपनी प्रदान करने का अधिकार देता है। प्रतिनिधिपत्र । २ प्रति- राजधानी प्राग्ज्योतिप के नाम से प्रख्यात है जिसे प्रब गोहाटी निधि । वह व्यक्ति जो किसी दूसरे व्यक्ति के स्थान पर उसका कहते हैं । यहाँ देवी योगनिद्रा का प्रधान स्थान है। पौराणिक कर्तव्य पालन करे। दृष्टि से यह स्थान बहुत ही पवित्र और सर्वतोभद्रा नामक प्राक्सौमिक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] वह कर्तव्य जो यजमान को सोमयाग लक्ष्मी का निवासस्थान माना जाता है। कहते हैं, नरकासुर के पूर्व कर लेना चाहिए । जैसे, अग्निहोत्र, दर्शपौर्णमास, की राजधानी यही थी। रामायण में लिखा है कि इस देश पशुयाग। की राजधानी प्राग्ज्योतिषपुर को कुश के पुत्र अमूर्त रख ने प्रास्रोता-वि० [सं० प्रास्रोतस्] पूरब की ओर बहनेवाला [को॰] । बसाया था। प्राखर्य-सचा पुं० [सं०] प्रखरता । तीक्ष्णता । तेजी। प्राग्ज्योतिषपुर -सज्ञा पुं॰ [स०] प्राग्ज्योतिष देश की राजधानी जिसे प्राग-सज्ञा पुं० [ स० प्रयाग ] तीर्थराज प्रयाग । उ.-कासी अब गोहाटी कहते हैं। रामायण के अनुसार इस नगर को प्राग द्वारिका मथुरा, कहँ कहें चित दौरावौं ।-जग० श०, कुश के पुत्र अमूर्तरज ने बसाया था। पृ० ११७॥ प्रारदक्षिणा-सज्ञा पुं० [सं०] दक्षिण और पूर्व के बीच की दिशा । प्रागट्य-सञ्ज्ञा पुं० [स० प्राकटय] दे॰ 'माक्ट्य'। उ०-सो हरि जी दक्षिणपूर्व । तो सुरगी सखी को प्रागटय है।-दी सौ बावन०, भा० १, प्राग्देश-सचा पु० [सं०] पूर्व की ओर के देश । पूरब के देश [को० । पृ० १५१ । प्रारद्वार-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] पूरब की अोर का दरवाजा को०) । प्रागनुराग-सञ्ज्ञा पु० [सं०] पूर्वानुराग । प्राग्बोधि-सञ्ज्ञा पुं० [स०] एक पर्व का नाम । प्रागमाव-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ वह प्रभाव जिसके पीछे उसका प्राग्भक्त-सक्षा पुं० [ स०] १ भोजन करने के पहले प्रौषध खाना । प्रतियोगी भाव उत्सन्न होता है। किसी विशेष समय के पूर्व २ सुश्रुत के जनुसार औषध खाने के दस समयो में से एक । न होना । जैसे, घट, वस्त्र बनने के पूर्व नही थे । इस प्रकार दवा खाने के लिये भोजन करने से पहले का समय । के प्रभाव को वैशेषिक शास्त्र में प्रागभाव कहते हैं । वैशेषिक विशेष-सुश्रुत में लिखा है कि जो प्रौषध भोजन करने से पहले