पानीकार २७६० पछतावा न जिममें वह पीया जमाई जाय। किसी वस्तु के अरु बहुत पच्छि । ऋतु सिसिर द्वादसी तिथि सुरच्छि ।- +-ए नन प दूसरी वस्तु के टुाडे इन प्रकार खोदकर ह० रासो, पृ० २६ । माना fr इस वस्तु मे तन (मतह ) के मेल में पच्छिउँ -पशा पु० [ म. पश्चिम ] १० पश्चिम' । उ०—पच्छिउँ गौर देगाने या -ने में उभरे या गडे हुए न मालूम कर वर पुरुप क वारी।—जायसी ग्र०, पृ० ११६ । नया नया मीम न दियाई पढने के कारण प्राधार पच्छिनी-सञ्ज्ञा मी० [ म पक्षिणी ] ., 'पक्षिणी'। तु पग जान परें। जैसे, स गमर्म पर रगविरग के पच्छिम - पुं० [ म० पश्चिम ] ६० 'पश्चिम' । उ०-पुब्वे १यर के ताजा। २ पिसी धातुनिर्मित पदार्थ सेना मज्जिनाइ, पच्छिम हुअऊँ पयान ।-वीति०, पृ०६२ । पर निीय धातु पनरा जडाव । जैसे, किमी पनों या जगं किनी चीज पर नांदी के पत्तरो पच्छिम-वि० [ मं० पश्चिम ] पिछला। पीछे का (हिं०) । पच्छियान-4 [म० पश्चिम] दे॰ 'पिछला' । उ०-रही जाम 7-171 एफ निसा पच्छियान । बजे नद्द नीसान वीसान जान ।-पृ० मुहा०-(रिमी म ) पच्ची हो जाना = बिलकुल मिल जाना ग०, १२६३१ । या वरी हो जाना । लीन हो जाना । हल हो जाना । जैसे,- सदार रजा उता हे तर तव प्रासमान में पच्ची पच्छिराज-सज्ञा पुं० [ मं० पक्षिराज ] गरुड । उ०-पक्षिराज ना जाना है। जच्छिराज प्रेतराज जातुधान ।-केशव ( शब्द०)। पम्चीकार-- [हिं० पच्ची + फा० कार ] पच्ची का काम पच्छिवं-उज्ञा पुं॰ [ में पश्चिम ] दे० 'पश्चिम' । करनेवाला पनि। पच्छो-सशा पुं० [सं० पक्षी ] दे० 'पक्षी'। पन्चीकारी- 7 [हिं० पन्ची+फा० कारी (= करना) ] पच्छे-अव्य० [ में परच ] दे० पीछे' । उ०-वीर देव सम वीर पानी पिपा या भाव । जटने जोडने की क्रिया लरि भग्गि सेन कमज्ज । ता पच्छ सोमेस पर उड्डि सार भार। बजरज्ज । -पृ० रा०, ११६५५ । पन्छ - 1 पं० [ ३८ पन, प्रा० पच्छ ] दे० पक्ष'। उ०-मनु पछा'-वि० [सं० पश्च, हिं० पच्छ, पछ ] पीछे । जुग परत प्रतच होत मिटि जात जमुन जल ।-भारतेंदु ग्र० विशेष-यौगिक पदो मे ही यह रूप प्राप्त होता है । जैसे,-अग- मा० १, पृ० ४५५ । पछ, पछलगा, पछलत्त । पन्चकट-० [ 10 ] माल की मझोली जड जो रंगाई के पछल-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ म० पक्ष ] पक्ष। नरफदारी। उ०-दीना- काम मे पाती है। नाथ दयाल भक्त की पछ करौ।-घरम०, पृ० २३ । पन्चधात----, . [ हिं.] दे० 'पक्षापात' । पछा-सज्ञा पु० [ म०पस ] पख । पर। उ०-एक भरोसा पाय पता-"पाता ] दे० 'पक्षपात'। दिया सिर भाइ लराई। पछी को पछ गया रहा इक नाम पन्छति। -प्र० पश्चान ] पश्चात् । बाद में। उ०-उर सहाई।-पल०, भा० १, पृ०७० । मदोदर मरिय, तिन पच्छति इच्छिनि नुमरय । इति दप्पिया पछइ-मव्य० [हिं०] • 'पीछे' । उ०-प्रीतम बीडिया पछई, मगर यनिनिय, ता जंतयुमार उठयो सुनिय । -पृ० मुई न कहिजइ काइ। --ढोला, पृ०४०३ । -०, १२।७। पछटो-मज्ञा पी० [देश] तलवार । (हिं०) । पन्यधर-र" [म. परा+घर ] पक्षघर । पक्षी । उ०-तनु पछड़ना-कि० अ० [हिं० पाछा ] १ लटने मे पटका जाना । FITE MATTन, अहि प्रहार, मन घोर । तुलमी हरि भए पछाटा जाना । २२० "पिछडना' । TIPाकर मन मो-तुलसी ग्र०, पृ०६४। पछताना-कि० अ० [हिं० पछताव ] किसी किए हुए अनुचित पनपान,-"[ पमपात ] 7 'पक्षपात' । उ०—तुलमी काय के सबध मे पीछे से दुखी हाना। किसी की हुई बात मामा हिमत भागा। मे पन्टपात नहिं गया।-घट०, पर पीछे से खिन्न होना या खेद प्रकट करना। पश्चा- पृ० २०९। ताप करना। पछतावा करना । उ०-दो टूक कलेजे के पन्दपाया....... [ " पञ्चान पद ] पोदे हटा हुमा । पीके पैर करता पछताता पथ पर पाता। -अपरा, पृ.६६ । ने राना । 30-मई फौज नानुवक को पन्दपाय । तवै पछतानि+-सञ्ज्ञा पी० [सं० पश्चात्ताप ] पछताने का भाव । जागगनी गहा-ग०, ११४५३ । पछतावा। पश्चात्ताप । पन्दम-"" परिपन ] पचापाता---०० पायान ]" 'पक्षापात' । पछतावा-जा पुं० [सं० पश्चात्ताप ] ', 'पछतावा'।
- {:- परी प्रा० पच्दी]
पछतावना-फि० प्र० [हिं०] २० 'पछताना' । 'पक्षी'। २०-कर rपतिमा। गतो, पृ० ३७ । पछतावा-शा पु० [ म० पश्चात्ताप, या, पच्छाताव ] वह सताप या पन्छि'--. । [" पण ] पक्ष' । ३०-प सिद्धि माम दुख जो क्सिी को, की हुई बात पर पीछे से हो । अपने किए फो युग समझने मे होनेवाला रज। पश्चाताप । अनुताप । पशिम'।