पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५०

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पची २७५४ पश्ची हुा । भली भाँति जिसका पाक हो गया हो। उ०-चवित पचौ-सञ्ज्ञा पु० [ देश० ] किसी कपडे पर छीट छप चुक्ने के पीछे उसका विज्ञान ज्ञान वह नहीं पचित । भौतिक मद से मानव ८ या १२ दिन तक उसे धूप मे खुला रखना । आत्मा हो गई विजित । -ग्राम्या, पृ० ६५ विशेष-ऐसा करने से छापते समय सारे स्थान पर जो धव्वे प्रा पची-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० पचित] दे० 'पच्ची'। जाते हैं वे छूट जाते हैं। पचौनी-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० पाचन ] १ पाचन । पाचक । २ प्रामाशय पचीस'-वि० [सं० पञ्चविंशति, पा० पंचवीसति, अपभ्रश प्रा० जहाँ खाए अन्न का पाचन होता है। पचीस ] पाँच और बीस। बीस से पांच अधिक । पांच पचौर-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पच या पचौली ] गांव का मुखिया । ऊपर बीस। सरदार । सरगना । उ०—पहुंचे जाइ पचौर प्रवीन । छत्रसाल पचीस-शा पु० वह सख्या या प्रक जो पांच और बीस के जोडने सो मुजरा कीन । -लाल (शब्द०) । से प्रकट हो। ५ पीर २० के योगफल रूप सख्या या प्रक पचौली--सशा पु० [हिं० पाँच+कुली ] गांव का मुखिया । जो इस प्रकार लिखा जाता है -२५ । सरदार । पच । पचीसाँ-वि० [हिं० पचीस + वॉ (प्रत्य॰)] गणना मे पचीस के पचौली२- सञ्चा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का पौधा जो मध्यभारत स्थान पर पडनेवाला । जो क्रम मे पचीस के स्थान पर हो । तथा बबई में अधिकता से होता हैं। इसकी पत्तियो से एक पचीसी-एशा स्त्री॰ [हिं० पचीस] १ एक ही प्रकार की २५ वस्तुओ प्रकार का तेल निकाला जाता है जो विलायती सुगधियो का समुह । जैसे, वैताल पचीसी (पचीस कहानियो का संग्रह) । ( एसेंस आदि ), मे पडता है । २ किसी की आयु के पहले २५ वर्ष । जैसे,—अभी तो उन्होने पचौवर-वि० [हिं० पाँच + स० श्रावर्त ] जिसकी पाँच तहे की गई पचीसी भी नहीं पार की। ३ एक विशेष गणना जिसका हो । पाँच परत का। पांच तह या परत किया हुआ । पच- सैकडा पचीस गाहियो अर्थात् १२५ का माना जाता है। हरा । उ०-चौवर पचौवर के चादर निचोर है ।-(शब्द॰) । आम, अमरूद आदि सस्ते फलो की खरीद बिक्री मे इसी का व्यवहार किया जाता है। ४ एक प्रकार का खेल जो चौसर पच्चड़-सझा पु० [ हिं• ] दे० 'पच्चर' । की बिसात पर खेला जाता है। पच्चर-सञ्चा क्षी० [ स० पचित या हिं० पच्ची ] काठ का पैवद । लकडी या बाँस की वह कट्टी या गुल्ली जिसे चारपाई, चौखट विशेष-इसकी गोलियाँ भी उसी की सी होती हैं और उसी आदि लकडी की बनी चीजो मे साल या जोड को कसने की तरह चली जाती हैं। अतर केवल यह है कि इसमे पासे के लिये उसमे टूटे हुए दरार या रध्र मे ठोकते हैं । की जगह ७ कौडियाँ होती हैं जो खडखडाकर फेंकी जाती हैं। विशेष-छेद या खाली जगह भरने के लिये इसके एक सिरे चित और पट कौडियो की सख्या के अनुसार दाँव का निश्च होता है। को दूसरे से कुछ पतला कर लेते हैं। परतु जब इससे दो लकडियो को जोडने का काम लेना होता है तब इसे पचूका। सज्ञा पु० [हिं० पिच से अनु० ] पिचकारी। उतार चढाव नही बनाते, एक फट्टी या गुल्ली बना पचेल + सज्ञा स्त्री॰ [हिं पछेली ] पछेली नामक हाथ का आभू- षण जो पीछे की ओर पहना जाता है। उ०-भूषण देति २ लकडी की बडी मेख या खुटा (लश०) । जसोमति पहुँची पांच पचेल । टीका टीक टिकावली, हीरा कि० प्र०-ठोंकना ।-देना ।—करना । हार हमेल ।-छीत०, पृ० २५ । मुहा०-पच्चर अढाना = वाधक होना। वाधा खडी करना । पचेलिम-वि० [सं०] १ शीघ्र पकनेवाला । अपने आप पकने रुकावट डालना । अडगा डालना । जैसे,-तुम नाहक इस काम वाला । स्वय परिपक्व होनेवाला जो०] । मे क्यो पच्चर अडाते हो। पच्चर ठोंकना = किसी को कष्ट पचेलिम-सज्ञा पुं०१ अग्नि । २. सूर्य (को० । पहुंचाने या पीडित करने के लिये कोई उपाय करना। पचेलुक-सशा पु० [मे०] वह जो भोजन बनाता हो । रमोइया [को०) । ऐसा काम करना जिससे किसी को बहुत कष्ट पहुंचे या वह खूव तग और परेशान हो। खूटा ठोकना । जैसे,—घवटाते पचोतर-वि० [सं० पञ्चोतर ] ( किसी सख्या से ) पांच अधिक । क्यो हो, ऐसी पच्चर ठोकूगा कि सारी आई बाई पच जायगी। पांच पर । जैसे, पचोत र सो। पच्चर मारना= होते हुए काम को रोकना । बनती हुई बात पघोतर सो-सज्ञा पु० [स० पञ्चोत्तरशत ] सौ और पांच की सख्या को विगाड देना । भौजी मारना । जैसे,-अगर तुम पच्चर न या अक । एक सौ पाँच । यह अंको मे इस प्रकार लिखा जाता डालते तो यह सवध अवश्य बैठ जाता। है-१०५। पच्चरी-वि० [सं० पचित ] धारण किए हुए। उ०-इक सूही पचोतरा-सञ्चा पुं० [ स० पञ्चोतर ] कन्या पक्ष के पुरोहित का एक दूजी सोहणी, तीजी सो भावती नारि। सुहने रुपे पच्चरी, नेग जिसमे उसे दायज में, विशेषकर तिलक के समय वर नानक विनु नावे कुडचार ।-सतवाणी०, पृ०६८ । पक्ष को मिलनेवाले रुपयो आदि मे से सैकडे पीछे पांच पच्ची-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० पचित ] १ ऐसा जडाव या जमावट जिसमे जडी या जमाई जानेवाली वस्तु उस वस्तु के विलकुल समतल लेते हैं। मिलता है।