प्राचीनपनस ३२२० प्राज्ञ का नाम। रण किया प्राचीनानस-संज्ञा पुं॰ [सं०] वेल का पेड़ । हो जाती है। जैसे, हर हर भज जाम माठहूँ। तज सवै प्राचीनवहि-शा पुं० [स० प्राचीनवर्हिस् ] १ इद्र । २ एफ भरम रे करो यही। तन मन धन दे लगा सवै । पाइही परम प्राधीन राजा का नाम । घाम ही सही। विशेप-अग्निपुराणानुसार यह अग्निगोत्रीय राजा हविर्धान के प्राच्यायन-सज्ञा पुं॰ [सं०] पूर्व के ऋषियों के गोत्र में उत्पन्न पुत्र थे और प्रजापति कहलाते थे । प्रचेतागण इनके पुत्र थे। पुरुष । प्राचीनमून-वि० [सं० ] जिसका जड या मूल पूर्व पोर हो [को०] । प्राच्छित,माछिच-सज्ञा पुं० [स० प्रायश्चिच ] दे० 'प्रायश्चित्त' । प्राचीनयोग-तशा पुं० [सं०] एक प्राचीन गोत्रप्रवर्तक ऋषि उ०-(क) जिहि विरचि रचि जिन प्रपंच को प्राच्छित कोन्ह्यो ।-रत्नाकर, भा०१, पृ० ५५ । (ख) चौदह नेम संभाले नित्त । लागे दोष फरै प्राछित्त ।-प्रध०, पृ० ५४ । प्राचीनशाल-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १. पुराना घर। २ पूर्व दिशा का घर। प्राजक-सज्ञा पुं॰ [सं०] सारथी। रथ चलानेवाला। प्राचीना'-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ पाठा । २ रास्ना । प्राजन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] कोडा । चाबुक [को॰] । प्राचीनार-वि० स्त्री० [सं० प्राचीन का स्त्रीलिंग रूप] जो प्राचीन हो । प्राजहित-सञ्ज्ञा पुं० [स०] गार्हपत्य अग्नि । प्राचीनामलक--सज्ञा पुं० [सं०] पानी मामला। जल प्रामला । प्राजापत-सशा पुं० [सं०] प्रजापति का धर्म या भाव । प्राचीनावीत--सज्ञा पुं० [सं०] यज्ञोपवीत धारण करने का एक प्राजापत्य-वि० [सं०] १ प्रजापति संबंधी। २. प्रजापति से प्रकार जिसमें बायां हाय यज्ञोपवीत से बाहर रहता और उत्पन्न । ३ प्रजापति निमित्तक । राज्ञोपवीत दाहिने कधे पर रहता है। यह उपवीत का उलटा प्राजापत्य-सशा पुं० १ पाठ प्रकार के विवाहो मे चौथा । है। इस प्रकार का यज्ञोपवीत पितृकार्य में विशेष-इस विवाह में कन्या का पिता वर और कन्या को एकत्र जाता है । पितृसव्य । सव्य । कर उनसे यह प्रतिज्ञा कराता है कि हम दोनो मिलकर प्राचीनावीती-वि० [सं० प्राचीनावीतिन् ] जो प्राचीनावीत यज्ञोपवीत गार्हस्थ धर्म का पालन करेंगे, और फिर दोनो की पूजा धारण किए हो । सत्य । करके वर को अलंकारयुक्त कन्या का दान करता है। ऐसे प्राचोनोपवीत--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] दे० 'प्राचीनावीत' । विवाह को काम भी कहते हैं । प्राचीपति-सञ्ज्ञा पुं० [स०] इद्र । २ एक व्रत का नाम जो वारह दिन का होता है । प्राचीर-सचा पु० [स० ] नगर या किले मादि के चारो मोर उसकी विशेष-इस व्रत में पहले तीन दिन तक सायकाल २२ ग्रास, रक्षा के उद्देश्य से बनाई हुई दीवार । चहारदीवारी । शहर फिर तीन दिन तक प्रात काल २६ ग्रास, फिर तीन दिन तक पनाह । परकोटा। अपाचित अन्न २४ ग्रास खाकर पंत के तीन दिन उपवास प्राचीरवती-वि॰ [ स० प्राचीर + वत+ ई (प्रत्य॰)] प्राची रयुक्त । करना पड़ता है। धर्मशास्त्रों में इस व्रत का विधान प्रायश्चित्त मे किया गया है। चहारदीवारी से प्रावृत । उप-मैंने नयनोन्मीलन करके इधर उघर, सब भोर निहारा, पर लोचनगत हुई मुझे तो ३. रोहिणी नक्षत्र । ४. यज्ञ । ५ प्रयाग का नाम । ६ विष्णु यह प्राचीरवती पुढ कारा ।-अपलक, पृ० ७६ । का नाम (को०)। ७. पितृलोक । प्राचुर्य -सशा पुं० [सं० प्राचुर्य,प्राचुर्य ] १ प्रचुर होने का भाव । प्राजापत्या-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १. एक इष्टि का नाम । अधिकता । प्रचुरता । बहुतायत । २. राशि । ढेर (को॰) । विशेष—यह इष्टि प्रवज्याश्रम या सन्यासाश्रम ग्रहण के प्राचेतस-मज्ञा पुं० [सं०] १. प्रचेतागण जो प्राचीनहि के पुत्र समय की जाती है। इस यज्ञ में सर्वस्व दक्षिणा मे दे दिया • थे और जिनकी सख्या दस थी। २. वाल्मीकि मुनि का नाम जाता है। प्रचेता के अपत्य या वशज । ४ विषणु । ५ दक्ष । ६ मनु २. वैदिक छदों के पाठ भेदों में एक भेद । का पैतृक नाम (को०)। ७ वरुण के पुत्र का नाम । प्राजिक-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] बाज नामक पक्षी । प्राच्य–वि० [सं०] १ पूर्व देश या दिशा में उत्पन्न । पूर्व का। प्राजिता-सञ्ज्ञा पुं० [ स० प्राजित ] सारथी। २ पूर्वीय । पूर्व सवघी। जैसे, प्राच्य सभ्यता, प्राच्य विद्या प्राजी-सशा पुं० [सं० प्राजिन् ] एक प्रकार का पक्षी । श्येन । महार्णव । ३ पूर्व काल का । पुराना। प्राचीन । प्राजेश-सज्ञा सं० [ स०] १ रोहिणी नक्षत्र । २ वह घर प्रादि प्राच्य-सहा पु० शरावती नदी के पूर्व का देश । पदार्थ जो प्रजापति देवता के लिये हो। प्राच्यक-वि० [स०] पूर्वी । पूरब का (फो०] । माज्ञमन्य, प्राज्ञमानी-सझा पुं० [सं० प्राज्ञम्मन्य, प्राज्ञम्मामिन्] दे० प्राच्यभापा-सज्ञा री० [सं०] पूर्वी या पुरानी भाषा [को०)। 'प्राज्ञमानी' [को०] । प्राच्यवृत्ति-संशा खी० [सं०] वैताली वृत्ति के एक भेद का नाम प्राज्ञ'- वि० [सं०] [स्रो प्राज्ञा, प्राज्ञो ] १. बुद्धिमान् । समझ- जिसके सम पादो में चौथी और पांचवी मात्रा मिलकर गुरु दार । चतुर । २. विज्ञ । पडित । विद्वान् । उ०-जामत तौ >
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५११
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