पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५१२

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३२२१ प्राण नहिं मेरे विष फछु स्वप्न सुतौ नहिं मेरै विष है । नाहिं सुषोपति मेरे विप पुनि विश्व हूँ तैजस प्राज्ञ पर्ष है। -सु दर० ग्र०, भा०२, पृ०६१६ । ३. मूर्ख । बेवकूफ । प्राज्ञर-सशा पुं० १ वेदातसार के अनुसार जीवात्मा । २ पुराणा- नुसार कल्किदेव के बडे भाई का नाम । ३ चतुर मनुष्य । बुद्धिमान व्यक्ति (को०)। ४. एक प्रकार का शुफ या तोता (को०)। प्राज्ञता-सहा श्री [ स०] २० 'प्राज्ञत्व' [को०) । प्राज्ञत्व-सच्चा पु० [सं०] १ चतुराई । बुद्धिमत्ता । २ पाहित्य । विज्ञता । ३ मूर्खता । वेवकूफी । प्राज्ञमन्य-वि० [स० ] दे० 'प्राज्ञमानी' । प्राज्ञमान-सञ्ज्ञा पु० [स०] प्राज्ञ व्यक्ति का आदर [को०] । प्राज्ञमानी-सज्ञा पु० [सं० प्राज्ञमानिन् ] वह जिसे अपने पाडित्य का अभिमान हो। जो अपने पापको विद्वान् या बुद्धिमान् समझना हो। प्राज्ञा-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ बुद्धि । समझ । उ०-प्राज्ञा अभिमानी जुकृत जमगुण रूपा । ईश्वर तहं देवता भोग मानंद स्वरूपा ।-सुदर००, मा० १, पृ०६८। २ चतुरा स्त्री। विदुषी ली। प्राज्ञो-सहा सी० [स०] १ सूर्य को भार्या का नाम । २ विद्वान् की स्त्री (को०) । ३ चतुरा या विदुषी स्ली (को०)। प्राज्य-वि० [ म०] १ प्रचुर । अधिक । बहुत । २. जिसमे बहुत घी पडा हो । ३ विशाल (को०)। ४ उच्च । केचा (को०)। प्राइविवाक-मज्ञा पुं० [स०] १ वह जो व्यवहारशास्त्र का ज्ञाता हो और विवादो आदि का निर्णय करता हो । न्याय करनेवाला । न्यायाधीश । विशेष-प्राचीन काल में जो राजा स्वय न्याय नहीं करते थे वे विद्वान् ब्राह्मणो को प्राविवाक या न्यायाधीश के पद पर नियुक्त कर देते थे । वे ही सब झगडों का फैसला किया करते थे। २ वह जो दूसरो के भभि योग आदि चलाता या उनका उत्तर देता हो। वकील । प्राइविवेक-सज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'प्राइविवाक' । प्राणत-मचा पुं० [सं० प्राणन्त ] १ वायु । हवा । २ रसाजन । प्राणंसी-सना स्त्री० [सं० प्राणन्ती ] १ क्षुधा । भूख । २. हिक्का । हिचकी । ३. छीक। प्राण-सज्ञा पुं॰ [ स०] दे॰ 'प्राण' (को०] । प्राण-सच्चा पुं० [स०] १ वायु । हवा । २ शरीर की वह वायु जिससे मनुष्य जीवित रहता है। उ०—कह कथा अपनी इस घ्राण से, उड गए मधु सौरभ प्राण से । -साकेत, पृ० २६७। विशेष-हिंदुनो के शास्त्रो मे देशभेद से दस प्रकार के प्राण माने गए हैं जिनके नाम प्राण, अपान, ध्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकिल, देवदत्त और धनजय हैं। इनमें पहले पाँच १-६३ (प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान) मुख्य हैं, पौर पचप्राण कहलाते हैं। ये सबके सब मनुष्य के शरीर के भिन्न भिन्न स्थानो में काम किया करते हैं और उनके प्रकोप करने से मनुष्य के शरीर में अनेक प्रकार के रोग उठ खड़े होते हैं । इन सबमें प्राण सबसे प्रधान और मुख्य है । जिस वायु को हम अपने नथने द्वारा साँस से भीतर ले जाते हैं उसे प्राण कहते हैं । इसी पर मनुष्य, पशु आदि जतुप्रो का जीवन है । इस वायु का मुख्य स्थान हृदय माना गया है। प्राण धारण करने ही के कारण सांस लेनेवाले जतुप्रो को प्राणी कहते हैं। मरने पर श्वास प्रश्वास, या वायु का गमनागमन बंद हो जाता है, इसलिये लोगों का कथन है कि मरने पर प्राण निकल जाते हैं। शास्त्रों में प्राँख, कान, नाक, मुंह, नाभि, गुदा, मूत्रंद्रिय पौर ब्रह्मरध्र मादि प्राणों के निकलने के मार्ग माने गए हैं। लोगो का कथन है कि मरने के समय मनुष्य के शरीर से जिस इद्रिय के मार्ग से प्राण निकलते हैं, वह कुछ अधिक फैल जाती है और ब्रह्मरन्ध्र से निकलने पर खोपड़ी चिटक जाती है। लोगो का विश्वास है कि जिस मनुष्य के प्राण नाभि से ऊपर के मार्गों से निकलते हैं उसकी सद्गति होती है और जिसके प्राण नाभि से नीचे के मागों से निकलते हैं उसकी दुर्गति- या मधोगति होती है। ब्रह्मरध्र से प्राण निकलनेवाले के विषय में यह प्रसिद्ध है कि उसे निर्वाण या मोक्ष पद प्राप्त होता है। प्राण शब्द का प्रयोग प्राय बहुवचन में ही होता है। ३. जैन शास्त्रानुसार पाँच इद्रियां, मनोबल, वाक्वल, और कायवल नामक त्रिविध बल तथा उच्छ्वास, विश्वास और वायु इन सबका समूह । ४ श्वास | सांस । ५ छादोग्य ब्राह्मण के अनुमार प्राण, वाक्, चक्षु श्रोत्र और मन । ६ वाराहमिहिर और प्रार्यभट्ट पादि के अनुसार काल का वह विभाग जिसमें दस दीर्घ मात्रामो का उच्चारण हो सके । यह विनाहिका का छठा भाग है। ७ पुराणानुसार एक कल्प का नाम जो ब्रह्मा के शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन पड़ता है। ८ बल । शक्ति । ६. जीवन । जान । उ०-(क) अगद दीख दसानन वैसा । सहित प्राण कज्जल गिरि जैसा । -तुलसी (शब्द॰) । (ख) प्राण दिए धन जायें दिए सब । केशव राम न जाहिं दिए अब । -केशव (शब्द०)। (ग) ए रे मेरे प्राण कान्ह प्यारे के चलाचल में तब तो चले न अब चाहत कितै चले।- पद्माकर (शब्द०)। यौ०-प्राणाधार या प्राणाधार । प्राणप्रिय । प्राणप्यारा। प्रायानाथ । प्राणापति, इत्यादि । विशेष-इस शब्द के साथ प्रत में पति, नाथ, कात प्रादि शब्द समस्त होने पर पद का अर्थ प्रेमी या पति होता है। मुहा०-प्राण उह जाना = (१) होश हवास जाता रहना। बहुत घबराहट हो जाना । हक्का बक्का हो जाना। जैसे,- उसके देखने ही से उसमे के बच्चों का प्राण उड गया।- गदाधरसिंह (शब्द॰) । (२) हर जाना। भयभीत होना।