पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५१९

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प्राविजनीन ३२२० मातीपक प्राविजनीन-वि० [सं०] [ वि० स्त्री० प्रतिजनीनी] १ शत्रु फे प्रातिलोमिक --वि० [सं०] १ प्रानुलोमिक का उलटा । प्रतिलोम विरद्ध उपयुक्त । २ प्रत्येक के लिये उपयुक्त । सार्व से उत्पन्न । २ विपक्ष । विरुद्ध । ३ अधीतिकर | जो भला जनीन [को०] । न जान पड़े। प्रातिदैवसिक-वि० [२०] [ वि० स्त्री० प्रतिदेवसिकी ] प्रतिदिन होने- प्रातिलोम्य-ग- पुं० [ में०] १ प्रतिलोम का भाव । २ विरुद्धता । वाला [को०] 1 ३ प्रतिकूलता। प्रातिनिधिक'-वि० [स० प्रतिनिधि ) प्रतिनिधित्व से युक्त । जैसे,- प्रतिवेशिक-तज्ञा पुं० [ म० ] पढ़ोसी । प्रतिवेशी । प्रातिनिधिक संस्था । प्रातिश्मक-संज्ञा पुं० [सं०] [ सी० प्रातिवेरिमकी ] पटोसी। प्रातिनिधिक-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] प्रतिनिधि [को०] | प्रतिवेश्य-राग पुं० [सं०] १ पढोस । २ पदोसी । ३ वह पड़ोसी प्रातिपक्ष-वि० [ म०] १ विपरीत । विरुद्ध' । शव सबधी । शत्रु जिसका द्वार अपने द्वार के ठीक सामने हो। प्रानुदेश्य का का । शात्रव (को॰] । उलटा। प्रातिपक्ष्य-सज्ञा पुं० [०] शत्रुता । दुश्मनी [को॰] । प्रातिवेश्यक-समा पु० [सं०] पडोसी। प्रातिपथिक-सज्ञा पुं० [स०] राहगीर । यात्री को०।। प्रातिशाख्य-म० पुं० [म.] वह ग्रथ जिसमें वेदो की किसी शाखा प्रातिपद-वि० [सं०] १ प्रारभिक । आरभ का। २ प्रतिपदा से फे स्वर, पद, सहिता, संयुक्त वर्ण इत्यादि के उच्चारण पादि सबधित [को०] । फा निर्णय किया गया हो। प्रातिपदिक-सज्ञा पुं० [सं०] १ अग्नि । २ सस्कृत व्याकरण के विशेप-वेदों की प्रत्येक शाला की सहितानो पर एक एक अनुसार वह अर्थवान् शब्द जो धातु न हो और न उसकी प्रातिशास्य थे और उनके कर्तामो के मत का उल्लेग्य यथा- सिद्धि विभक्ति लगने से हुई हो । जैसे, पेड, अच्छा प्रादि । स्थान मिलता है। पर आजकल घिपय के केवल पांच विशेप--प्रातिपदिक के अतगत एसे नाम, सर्वनाम, तद्धितात छह ग्रप मिलते है। कृदत और समासात पद पाते हैं जिनमे कारक की दिभक्तियाँ प्रातिसीम-सा पुं० [सं०] पडोसी । प्रतिवेशी [को० । न लगाई गई हो। ध्याकरण मे उनकी प्रातिपदिक' सज्ञा प्रातिस्विक-वि० [सं०] १ अपना । निज का । २ माना अपना । केवल विभक्तियो को लगाकर उनसे सिद्ध पद बनाने के लिये प्रत्येक का । यथाक्रम पृथक् पृथक् । ३. जिसमे कुछ असाधा- की गई है। रणता हो। प्रातिपीय-संज्ञा पुं० [सं०] १ महाभारत के अनुसार एक राजा का नाम । २ एक पि का नाम जो गोत्रप्रवतक थे। प्रातिन-सा पुं० [स० प्रातिन्त्र] प्रतीकार । बदला। प्रतिशोध [को०)। प्रातिपेय-सचा पु० [सं०] महाभारत के अनुसार एक राजा प्रातिहत-सता पुं० [सं०] स्वरित । का नाम। प्रातिभ'-संज्ञा पुं० [सं०] १ पुराणानुसार उन पांच प्रकार के प्राति-मज्ञा पुं० [ स०] १ प्रतिहर्ता का फम । प्रतिहर्ता का उपसर्गों या विघ्नो में से एक प्रकार का विघ्न जो योगियो भाव । प्रतिहर्तापन । के योग में हुआ करता है। प्राविहार-सचा पुं० [ म०] १ लाग या खेल करनेवाला । मायावी । विशेप-यह विघ्न प्रतिभा के कारण हुमा करता है और इसमें जादूगर । २ द्वारपाल । प्रतिहार । योगी के मन मे सब वेदों और पास्यो प्रादि के अर्थ पौर प्रतिहारिक-संज्ञा पुं० [सं० ] दे० 'प्रातिहार' [को॰] । अनेक प्रकार की विद्यापी तथा कलाओं आदि का ज्ञान उत्पन्न प्रातिहारिफ'-वि० [सं०] प्रतिहार सवधी। हुमा करता है। २ वह जिस में प्रतिभा हो । प्रतिभाशाली । प्रातिहारिक-सशा पुं० १. द्वारपाल । २ लाग का खेल करनेवाला। प्रातिभ- वि० १. प्रतिभा से सवधित। प्रतिभा का । २ बौद्धिक । जादूगर । मायावी। मानसिक । ३ प्रतिभायुक्त (को०] । प्रातिहार्य-सगा पुं० [सं०] १ द्वारपाल का काम। २. माया । प्राविभाव्य-सज्ञा पुं० [स०] १ प्रतिमू का भाव । जमानत । लाग। इद्रजाल । जामिनी । २ वह धन जो प्रतिभू या जामिन को देना पडे । प्रातीतिक-वि० [स०] १ जिसकी प्रतीति केवल चिंता या कल्पना प्रातिभाव्य ऋण-सज्ञा पुं० [सं०] वह माण जो किसी की जमानत के द्वारा मन मे होती हो। जो केवल कल्पना और चिंतन पर लिया गया हो। से भासमान होता हो। प्रातिभासिक । २ जिसकी प्रतीति प्रातिभासिफ-वि० [सं०] १ प्रतिभास सबधी। अनुरूपक । २. स्वय किसी को हो। जो वास्तव मे न हो पर भ्रम के कारण भासित हो । जैसे, प्रातीप-सक्षा पु० [सं०] १ प्रतीप का अपत्य । २ प्रतीप के रज्जू में सर्प का ज्ञान प्रातिभासिक है। ३ जो व्यावहारिक पुत्र शांतुन नरेश । न हो। प्रातोपक-वि० [सं०] १ प्रतिकूल प्राचरण करनेवाला । विरुद्धा- प्रातिरूपिक-वि० [म०] समान रूप का । नकली । दिखावटी [को० । चारी। २ विपरीत । उलटा।