पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५२५

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प्रार्थन १२३४ प्रावार प्रार्धन-इस पुं० [२०] याचन । याचना । प्रार्थना करना । मांगना । प्रार्थी-वि० [सं० प्रार्थिन् ] [ वि० सी० प्रार्थिनी ] १ मांगनेवाला। प्रार्थना'-० [सं०] १ किसी से कुछ मांगना । याचना । प्रार्थना करनेवाला। याचक । २ निवेदक । निवेदन करने- चाहना । जैसे,—मैने उनसे एक पुस्तक के लिये प्रार्थना की वाला । ३ प्रार्थनाशील । इच्छुक । थी। २. किनी से नम्रतापूर्वक कुछ कहना । विनती । विनय । प्रार्य-० [सं०] प्रार्थना के योग्य । याचनीय । निवेदन । जैसे,-मेरी प्रार्थना है कि अब भाप यह झगडा प्रालव-सज्ञा पुं॰ [स० प्रालम्ब ] १ रस्सी प्रादि के ढंग की वह मिटा दें। ३ इच्छा । प्राकाक्षा | स्पृहा (को०) । ४ तंत्रसार वस्तु जो किसी केची वस्तु में टेंगी और लटकती हो। के पनुसार एक मुद्रा का नाम । २ वह माला जो गर्दन से छाती तक लटकती हो । हार। विशेष-इस मुद्रा में दोनो हाथो के पजों की उंगलियो को ३ मोतियो का हारनुमा एक भाभूषण (को०)। ४. स्तन । फैलाकर एक दूसरे पर इस प्रकार रखते हैं कि दोनों हाथो कुच (को०) । ५. एक प्रकार का कद या तु बी (को०) । की उंगलियाँ यथा'म एक दूसरे के ऊपर रहती हैं । इस प्रालवक-सज्ञा पुं० [सं० प्रालन्यक ] दे॰ 'प्रालब' को०] । प्रकार हाय जोटकर नगलियो को सीधे और सामने की पोर प्रालबिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० प्रालम्पिका ] गले में पहनने का सोने करके हृदय पे पास ले जाते हैं मोर वहाँ इस प्रकार रखते हैं का हार | सोने की माला । कि दोनो फलाई की सघि छाती के सबिमध्य में रहती है। प्राल-सज्ञा पु० [हिं०] दे० 'पलाल'। प्रार्थना-कि० स० [सं० प्रार्थन] प्रार्थना करना। विनती प्रालब्ध-सज्ञा पुं॰ [सं० प्रारब्ध ] दे॰ 'प्रारब्ध' । कारना । उ०-हरिवल्लभ सब प्रार्थना जिन चरण रेणु माशा धरी।-नामादास (शब्द०)। प्रालेय-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ हिम । तुषार । उ०-व्यस्त बरसने लगा पश्रुमय यह प्रालेय हलाहल नीर ।-कामायनी, पृ० प्रार्थनापत्र-मग पु० [स०] वह पत्र जिसमें किसी प्रकार की १३ । २ बर्फ। ३ भूगर्भशास्त्रानुसार वह समय जव अत्यत प्रार्थना लिखी हो। निवेदनपत्र । अर्जी । हिम पड़ने के कारण उत्तरीय ध्रुव पर सब पदार्थ नष्ट हो गए प्रार्थनाभग-सहा पुं० [सं० प्रार्थनाभन ] याचना स्वीकार न और वहां शीत की इतनी अधिकता हो गई कि अब कोई होना (को०] । जतु या वनस्पति वहाँ नहीं रह सकती। प्रार्थनासमाज-मशा पुं० [ स०] एक नवीन समाज या संप्रदाय । यौ०-प्रालेयकर = हिमकर । चंद्रमा। प्रालेयपर्वत, प्रालेय. विशेष-इस मत के अनुयायी दक्षिण मे वबई की पोर अधिक भूधर = हिमालय । प्रालेयरश्मि । प्रालेयशैल । हैं । इस मत के सिद्धांत ब्राह्मसमाज से मिलते जुलते हैं । इस प्रालेयरश्मि-सञ्ज्ञा पु० [ स०] १ चंद्रमा । २. कपूर (को॰) । मत के लोग जाति पांति का भेदभाव नही मानते और न प्रालेयशैल-सज्ञा पुं० [सं०] हिमालय (को॰] । मूर्तिपूजा पादि करते हैं। प्रार्थनासिद्धि-पज्ञा स्त्री० [सं०] इच्छा का पूरा होना । अभिलापा- प्रालेयाशु-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ हिमाशु । चंद्रमा । २. कपूर । प्राप्तिको०)। प्रालेयाद्रि-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] हिमालय । प्रार्थनीय-सवा पुं॰ [सं० ] द्वापर युग का एक नाम । प्रावट-सज्ञा पुं० [सं०] यव । जी। प्रार्थनीयर-वि० प्रार्थना करने योग्य । निवेदन करने के योग्य । प्रावण-सहा पु० [सं०] कुदाल । खनित्र । फावसा [को०] । याचनीय । प्रावधान-सहा पुं० [सं० प्र ( उप०)+ अवधान ] नियम । प्रार्थयितव्य-वि० [ मे०] मांगने योग्य । प्रार्थना करने के योग्य । कानून । व्यवस्था । उ०-उसके एक प्रावधान में बहुत कुछ यापनीय । ऐसा कहा गया है कि केंद्र और राज्यों में भी पांच वर्षों तक अग्रेजी को ही प्रशासनीय भाषा के रूप में जारी रखना प्रार्थयिता-सा पुं० [म० प्रार्थयित्] १. प्रार्थना करने वाला। होगा।-शुक्ल० अभि० ग्र०, पृ०७१ । मांगनेवाला । याचक । २ प्रणय की कामना करनेवाला । प्रणयी:01 प्रावर'-सज्ञा पुं० [सं०] १ प्राचीर । चहारदारी । २ उत्तरीय । प्रार्थित'- [सं०] १. जो मांगा गया हो। याचित । २ जिस- उपरना । ३ एक देश का नाम (को॰) । पर माक्रमण किया गया हो। माक्रात (को०)। ३ जो मार प्रावर २-वि० चारो ओर । चतुर्दिक् । उ०-दोइ घरी दिन पछछ दिया गया हो। जिसकी हिंसा कर दी गई हो (को०)। ४. रहि, चल्यौ दिली पुर माह । मति उज्जल वस्त्रग वर प्रावर जिसे माघात पहुंचाया गया हो (को०)। ५. जिसकी इच्छा खित्रि थाह । पृ० रा०, २४१३००। की गई हो । माकाक्षित (को॰) । प्रावरण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ प्रच्छादन । ढक्कन । २ उत्तरीय प्रार्थित- पुं० इच्छा है। वस्म । योढने का वस्ल । चादर । प्रार्थितदुर्लम-वि० [ म० ] जो इच्टिव हो या जिसकी इच्छा की प्रावरणीय-सज्ञा पुं० [सं०] उत्तरीय । प्रोढ़ने का वस्त्र (को॰) । गई हो पर जिसका पाना कठिन हो ।को०] । प्रावार-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ एक प्रकार का कपडा जो प्राचीन काल में