पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५३

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पछिउँ २०६२ पछोडना TO पीछे पीछे चलना। पीछा करना । उ०-लीनो व्यासदेव उ०—(क) भूलिगा वह शब्द पछिला मति मदरस पागी। पछिमाई । वारहि बार पुकारत जाई ।-रघुराज (शब्द॰) । -जग० बानी, पृ० ३६ । (स) वेदहु हरि के रूप स्पांस मुम्ब २ किसी को पीछे छोड देना । अपने से पीछे कर देना । ते जो निसरे। कर्म क्रिया प्रासक्ति सबै पछिल' सुधि विसरै पछिग-रशा पुं० [ म० पश्चिम, प्रा० पच्छ्विं ] दे० 'पश्चिम'। -नद० ग्र०, पृ० १७७ । पछिता-सझा पुं० [ मं० पश्चात्ताप ] दे० 'पछतावा'। उ० पछि-मशा पी० [म० पश्चिम ] 'पश्चिम'। उ०-जन केहि कारन पछिता करौ भयौ रेन परभात ।-हिंदी प्रेम ससि उदी पुरुष दिमि कीन्हा । प्रो रवि उठो पछि दिमि लीन्हा । —जायसी प्र० (गुप्त). पृ० २५३ । गाथा०, पृ०२७६ । पछिताना-क्रि० अ० [हिं० पछताना] रे० 'पछताना' । उ०-ध्रुव पछिवाँ'-० [हिं० पच्छिम ] पश्चिम की (हगा)। धनु देखि मदन पछिता ।। हर के समय समर किन भायो । पछिवार-मचा ग्नी पपिचम की हवा । -नद० ग्र०, पृ०१२२ । पछीत-संशा ग्री० [सं० पश्चात्, प्रा. पन्छा ] १ घर का पिछ- पछितानि-सज्ञा स्त्री० [हिं० पछिताना ] पछताने का भाव । वाहा। मकान के पीछे का भाग । उ०-यानि बरेदि पो पछतानि । पछतावा । उ०—प्रनु सप्रेम पछितानि सुहाई। पाट पछीति मयारि कहा किहि काम के कोरे ।-प्रवरी, हरउ भगत मन के कुटिलाई।--मानस, २०१० । पृ० ३५४ । पछिवाघ-मशा पुं० [ स० पश्चात्ताप ] दे० 'पछताना' । उ०—-सुनि पछीत-क्रि० स० पीछे। पीछे की प्रोर । उ०-प्राइ प्रगीत, सीतापति सील सुभाव । सिला साप सताप विगत भइ पछीत गई, नित टरत मोहिं मनेह के कूरन ।-ठाकुर०, परसत पावन पाव । दई सुगति सो न हेरि हरख हिय चरन पृ०१॥ छुए कोप छिताव ।—तुलसी (शब्द०)। पछुवाँ'-वि० [हिं० पच्छिम ] पच्छिम को (हरा) । पछितावना-क्रि० भ० [हिं० पछिताव ] दे० 'पछताना' । उ०—जानति हो पछितावत ही मन, लखि मो अंगोरे पछुवाँ'-पशा मी० पच्छिम की हवा । ही। रूप रसिक विधना के सारे सवन होत बरजोरे ही। पछुवा-वज्ञा पुं॰ [हिं० पाछा ] कडे के प्राकार का पैर मे पहनने पोद्दार अभि० न०, पृ० २६४ । का एक गहना। पछिनावा-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] पशुप्रो का एक रोग। पछेड़ा-मशा पुं० [हिं० पाछ ] पीछा । पछिया-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० पश्चिम ] दे० 'पछुपा' । उ०-चल रहे क्रि० प्र०—करना ।—होना । ग्राम कुजो मे पछिया के झकोर, दिल्ली लेकिन ले रही लहर पछेलनाां-ज्ञा पुं० [हिं० पाछ+एलना (प्रत्य०) ] पीछे डालना । पुरवाई में ।-दिल्ली, पृ० २२ । पीछे छोडना । प्रागे वढ जाना। पछियाई-उच्चा श्री० [हिं० पछिया] दे० 'पछुवा'। उ०-रत्नो के फूल जठे, लता चढी जड पकरे। लहरी पछियाई नहरो को पछेला-सशा पुं० [हिं० पा+एला (प्रत्य॰)] [Rो० प्रत्या. पछेली ] १ हाथ मे एक साथ पहने जानेवाले बहुत से चिपटे खाडी।-माराधना, पृ०७५ । पछियाउरि-शा स्त्री॰ [देश०] ८० 'पछावरि'। एक प्रकार का कडो मे से पिछला जो प्रगलो से पडा होता है। पीछे की पेय । सिखरन या शरवत । उ०-पुनि जाउरि पछियाउरि मठिया । २ हाथ मे पहनने का सियो का एक प्रकार का आई। धिरित खांड़ के बनी मिठाई ।—जायसी ग्र०, कडा जिसमे उभरे हुए दानो को पक्ति होती है । पृ०१२४1 पछेला-पि० पीछे का । पिछला । पछियाना-क्रि० सं० [हिं० पीछे ] दे० 'पछिमाना' । पछेलिया -सज्ञा मी० [हिं० पछेल ] २० 'पछे नी' । पछियाव-सञ्चा पु० [हिं० पच्छिउँ+वाउ ] पच्छिम की हवा । पछेली-सज्ञा स्त्री० [हिं० पछेल ] ( 'पछेला'। उ०-जाके चोप पछियावर-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ देश० या हिं० पीछे ] १. दे० पछियाउरि'। की चुनरी, ज्ञान पछेली चमक रही।-वीर श०, पृ० ११ । २ छाछ से बना हुआ एक प्रकार का पेय पदार्थ जो भोज- पछेव-प्रव्य० [हिं० पीछा, प्रा० पच्छए ] २० 'पीछे'। उ०- नादि मे परोसा जाता है। इससे भोजन शीघ्र पचता है। फिरि व्यास कहै सुनि अनग राइ । भवतव्य बात मेटी न दे० 'पछावरि । जाय । रघुनाथ हाथ लोक देव । ते कनक मृग्ग लागे पछेव । पछिल-क्रि० वि० [हिं० पीछे] दे० 'पीछे। उ०—चौहहि अत्र -पृ० रा०, ३१३४॥ अपार चदेले बीर हैं। पछिल न धारहिं पाय महा रनधीर पछै-क्रि० वि० [हिं०] दे० 'पीछे'। उ०-प्रादि अगम अवि- हैं।-५० रासो०, पृ०७ । कार एक ईस्वर अविणासी । पछै प्रकृति ततपच विविध सुर पछिलगा-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पीछे+लगना] दे० 'पिछलगा'। ईख जवासी।-रा० रू०, पृ०७। पछिलना-क्रि० प्र० [हिं०] दे॰ 'पिछडना' । पछोड़ना-क्रि० स० [ मं० प्रक्षालन, प्रा० पच्छाडन ] १ सूप आदि पछिला-वि० [हिं० पीछे ] [ वि० सी० पछिली ] दे० 'पिछला' । मे रखकर (पन्न आदि के दानो को) साफ करना । फटकना ।