पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५४२

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प्लक्षतीर्थ ३२५१ प्लाव। प्लक्षतीर्थ-सञ्ज्ञा पुं० [स०] हरिवश के अनुसार एक तीर्थ का नाम । प्लवगा-सञ्चा स्त्री० [सं०] कन्या राशि या लग्न [को॰] । प्लक्षप्रसवण-संशा पुं० [सं०] - लक्षराज' । प्लवन'-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] १ उछलना । कूदना। २ तैरना । ३. प्लक्षराज-सञ्ज्ञा पुं० [म.] उस स्थान का नाम जहाँ से सरस्वती बाढ़ जलप्लावन (को०) । ४ उडना (को०)। ५. घोडे की नदी निकलती है। एक चाल (को०)। ६ ढालवां जमीन (को॰) । प्लक्षसमुद्रवाचका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] सरस्वती नदी [को०। प्लवन-वि० नत । नीचे की ओर झुका हुप्रा (को०] | ढालू । ढालवाँ प्लक्षादेवी-सज्ञा स्त्री० [स०] सरस्वती नदी। (को०)। प्लक्षावतरण-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] महाभारत के भनुसार एक स्थान प्लवर्ग-सञ्ज्ञा पुं० १. भग्नि । माग । २. जलपक्षी । का नाम जहाँ से सरस्वती नदी निकलती है। प्लवाका-सञ्ज्ञा पु० [स० ] नाव (को०] । प्लति-सञ्ज्ञा पु० [सं० ] एक वैदिक ऋषि का नाम । प्लविक-सञ्चा पुं० [सं०] नाव से पार करनेवाला केवट । प्लवग-सञ्ज्ञा पुं० [ स० प्लवज्ञ] १ वानर । बदर २ साठ माझी [को०] । सवत्सरो मे से इकतालीसवाँ सवत्सर । ३ मृग । हरिन । ४. प्लवित-सज्ञा पुं० [सं०] १.पैरना। तैरना । २. कूदना। उछ- प्लक्ष । पाकर। लना [को०] । प्लवंगम-पज्ञा पु० [ स० प्नवगम ] एक छद जिसके प्रत्येक पाद मे प्लविता-वि० [ प्लवित ] [वि॰ स्त्री० प्लवित्री ] तैरनेवाला । ८+१३ के विराम से २१ मात्राएँ, अादि का वर्ण गुरु और तैराक। अत मे १ जगण प्रौर १ गुरु होता है। २ वदर । वानर । प्लांचेट- सञ्चा पु० [सं०] मेस्मेरेज्म पर विश्वास रखनेवालो के । कपि । ३. मेढक । काम की पान के प्राकार की लकडी की एक छोटी तख्ती। प्लवंगमैदु-सज्ञा पुं॰ [ स०] हनुमान [को०] विशेष-इसके चौडे भाग के नीचे दो पाए मढे हुए होते हैं । प्लव'-सज्ञा पुं० [सं०] १ साठ स वत्सरो में से पैतीसवी जिनके नीचे छोटे छोटे पहिए लगे हुए होते हैं और आगे की सवत्सर । २ मुरगा। ३. उछलकर या उडकर जानेवाले / नोक की ओर एक छेद होता है जिसमें एक पेंसिल लगा दी पक्षी प्रादि । ४. कारडव पक्षी।। ५ मेंढक । ६. बदर । जाती है। कहते हैं, जब एक या दो आदमी उस तस्ली पर ७ भेट । ८ चाहाल (डि.)। ६. शत्रु । दुधमन । १०. धीरे से अपनी उ गलियों रखते हैं तब वह खसकने लगती है नागरमोथा। ११ मछली पकड़ने का जाल या काठ का और उसमें लगी हुई पेंसिल से लकीरें, अक्षर, शब्द और पाटा । १२ नहाना । १३. तैरना । १४ नदी की बाद । वाक्य बनते हैं, जिनसे लोग अपने प्रश्नों का उत्तर निकाला १५ एक प्रकार का बगला। १६ कोई जलपक्षी। १७ करते हैं, अथवा गुप्त भेदों का पता लगाया करते हैं। इसका शब्द । प्रावाज । १८ अन्न | १६ गोपाल करज | २०. छोटी आविष्कार ईसवी १८५५ में हुआ था और इसके सबंध मे नौका । बाँस, तृण भादि से बनी नाव । उडुप (को०)। २१. कुछ दिनों तक लोगों में बहुत से झूठे विश्वास थे प्लक्ष का वृक्ष । (को०)। २२. ढाल । उतार (को०)। २३. प्लाईवुड-मचा श्री० [अं॰] एक प्रकार की हलकी लकही जो कुदाना । उछाल (को०)। २४ वापस होना या लौटना (को॰) । तीन विभिन्न प्रकार की पतली लकहियो को मशीन से दबाकर २५ प्रोत्साहन (को०)। बनाई जाती है। उ०-इसके अतिरिक्त सेमल, शीशम और प्लव-वि०१ तैरता हुप्रा । २ मुमता हुप्रा । ३ क्षणभगुर । ४ सागौन से प्लाईवुड बनाने का उद्योग भी उल्लेखनीय है ।- कूदता या 'उछलता प्रा (को०)। ५ विशिष्ट । श्रेष्ठ। अभि० ग्र०, पृ० १५ । उत्कृष्ट (को०)। प्लवक'-पि. [म० ] १ तैरनेवाला । पैराक । २ सतरणोपजीवी, प्लाक्ष'-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ पाखर का फन । २. प्लक्ष का भाव । जैसे मल्लाह (को०)। प्ताक्ष-विप्लक्ष संवधी । प्लक्ष का। प्लवकर-पञ्ज्ञा पु०१ की धार पर नाच करनेवाला पुरुष । प्लाक्षायन-सञ्ज्ञा पुं० [०] प्नक्षि के गोत्र मे उत्पन्न । २ मेंढक । ३ पाकर वृक्ष । ४. चाहाल (को०) ५ वानर । प्लाट-सज्ञा पु० [अ०] १ इमारत बनाने या खेती आदि करने के कपि (को०)। लिये जमीन का टुकडा। २ ऐसी जमीन का बना हुआ प्लवग-सा पुं० [सं०] १ सिरस का पेड । २ बदर। उ०- नकशा । ३. कोई कार्य करने का निश्चित किया हुमा ढग । कपि, साखामृग, वलीमुख, प्लवग, कीस, लंगूर । वानर के मनसबा । ४ उपन्यास, नाटक या काम्य आदि की वस्तु या कर नारियर, दयो विधाता कूर । नंद० ग्र०, पृ०६३ । मुख्य कथाभाग। वस्तु। ५ गुम पोर हानि करनेवाली ३ मेंढक । ४ हरिन । ५ जलपक्षी । ६ सूर्य का सारथी। कार्रवाई । षड्यत्र । साजिश । प्लवग-वि०१ कूदनेवाला । उछलनेवाला । २ तैरनेवाला। प्लाटफार्म-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'प्लेटफार्म' । यौ०-प्लवगराज = कपिराज । सुग्रीव । प्लवगेंद्र = हनूमान । प्लान-सञ्ज्ञा पुं० [अ० प्लैन ] दे० 'प्लैन'। प्लवगति-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] मेंढ़क [को०] । प्लाव-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] १ गोता। डबकी । २. परिपूर्णता। ३. जल