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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५४३

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प्लावन ३२५२ लेग का उमडकर बहना (को०)। ४ उछाल । कूर्दन (को०)। प्लीहघ्न- सज्ञा पुं० [स०] रोहडा वृक्ष । ५ किसी तरल पदार्थ को छानना (को०)। प्लीहशत्रु-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] प्लीहघ्न । रोहडा वृक्ष । प्लावन-तज्ञा पुं० [सं०] १ बाढ़ । सैलाब । जैसे जलप्लावन । उ० प्लीहा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० प्लीहन्] पेट की तिल्ली। वरवट । नीचे प्लावन की प्रलय घार, ध्वनि हर हर ।-तुलसी०, विशेष-दे० 'तिल्ली'। २. वह रोग जिसमे रोगी की तिल्ली पृ० ४ । २ खूब अच्छी तरह धोना। बोर । ३ किसी चीज बढ़ जाती है । दे० 'तिल्ली'। को ऊपर फेंकना। ४ जल का उमडकर बहना (को०)। प्लीहाकर्ण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक रोग का नाम जो कान के पास ५ तैरना । ६ विस्तार । दीर्घ करना । जैसे, स्वरों का। होता है। प्लावित -वि० [स०] १. जो जल में डूब गया हो। पानी में डूबी प्लीहारि-सझा पुं० [सं०[ भश्वत्य । हुपा । २ दोधकृत । दीर्घोच्चारित, जैसे, स्वर (को०) । प्लीहार्णवरस-सज्ञा पुं॰ [सं०] प्लीहा के एक प्रौषध का नाम । प्लावित-सज्ञा पुं० बाढ़ । जलप्लावन (को०)। विशेष-ईगुर, गधक, सोहागा, अभ्रक और विप माठ माठ प्लाविनो-सशा स्त्री० [सं०] युक्तिकल्पतरु के अनुसार १४४ हाथ तोले लेकर और उसमें चार चार तोला मिर्च और पीपल लबी, १८ हाथ चौडी और १४१ हाथ ऊंची नाव या मिलाकर छह छह रत्ती की गोलियां बनाई जाती हैं। यह जहाज। निगुंडी के रस और मधु के साथ दी जाती है। प्लावी-वि० [सं० प्लाविन्] १. फैलनेवाला। २ बहनेवाला [को०] । प्लीहाविद्रधि-सज्ञा पुं॰ [सं०] तिल्ली का एक रोग जिसमे रुक रुक- प्लावी२-सज्ञा पुं० पक्षी [को॰] । कर साँस माती है। प्लाव्य-वि० [सं० ] जल में डुवाने के योग्य । जो जल में डुवाया प्लीहाशत्रु-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] रोहड़ा । जाय। प्लाशि-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० ] पुरुष के मूत्रंद्रिय की जड़ के पास की प्लीहोदर-पशा पुं० [स०] प्लीहा रोग। तिल्ली। उ०-प्रव नाड़ी। प्लीहोदर के लक्षण कहता हूँ तू सुन । -माधव , पृ० १६५ । प्लाशुक-वि० [स०] जो शीघ्र पक जावे । शीघ्र तैयार होनेवाला। प्लीहोदरी-वि० [सं० प्लीहोदरिन् ] [ वि० सी० प्लीहोदरिणी ] जिसे प्लीहा रोग हुमा हो । प्लीहा रोगग्रस्त । प्लास्टर-सञ्ज्ञा पुं० [म.] १ डाक्टरी के अनुसार वह ओषधि जो शरीर के किसी रुग्ण अग पर उसे अच्छा करने के लिये प्लुक्षि-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ मग्नि । माग। २ गृहादि का जलना लगाई जाय । औषषलेप। (को०)। ३ स्नेह । प्रेम | ४ तेल । स्नेह कि० प्र०-लगाना |-चढ़ाना। प्लुत'--सज्ञा पुं० [सं०] १ घोड़े की एक चाल का नाम जिसे पोई २ इंटों प्रादि की दीवारों पर लगाने के लिये सुर्सी चूने आदि कहते हैं । २ टेढ़ी चाल । उछाल । ३ स्वर का एक भेद जो का गाढ़ा लेप । पलस्तर । दीघं से भी बड़ा भौर तीन मात्रा का होता है। ४ वह ताल प्लास्टर आफ पेरिस-सज्ञा पुं० [अ०] एक प्रकार का अंगरेजी जो तीन मात्रामो का हो। (संगीत)। मसाला जो बहुत ठोस और कडा होता है और जो धातु, प्लुत-वि० १ कागति युक्त । जो कापता हुआ चले । २ प्लावित | चीनी, पत्थर और शीशे आदि के पदार्थों को जोडने और ३ तराबोर । ४.जिसमें तीन मात्राएँ हो । मूर्तियों यादि बनाने के काम में आता है। प्लुतगति'-वि० [सं०] जो कूद कूदकर चलता हो। विशेष-जिस अवस्था में जोहने या छेद प्रादि बद करने में प्लुतगति-सधा पुं० खरगोश [को०] । और मसाले काम नहीं आते उस अवस्था में यह बहुत प्लुति-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ उछल कूद की चाल । २ जल मादि का उपयोगी होता है। ज्योंही यह जल में मिलाकर कहीं उमडकर बहना (को०)। ३ फैल जाना । फैलना । ४. घोडे की लगाया जाता है त्योही वह दृढ़तापूर्वक बैठ जाता और एक चाल जिसे पोई कहते हैं। ५. वह वर्ण जो तीन मात्रामों फैलकर सधियों आदि को भरने लगता है। प्लेस्टर से बोला गया हो। ही पेरिस। प्लुष-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ दाह । जलना । २ पूर्ति । ३. स्नेह । प्रेम । प्लास्तर-मचा पुं० [अ० प्लास्टर दे० 'प्लास्टर'। प्लुष्ट-वि० [सं०] दग्ध । जला हुमा । प्लिहा-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० प्लहन्] दे० 'प्लीहा' [को॰] । 'लेट-सज्ञा पुं० [अ०] वह पावेदनपत्र जो किसी दीवानी अदालत प्लीडर-मज्ञा पु० [अ०] १ वह जो वकालत करता हो । वकील । में किसी पर नालिश या दावा करते समय दिया जाता है २ किसी का पक्ष लेकर वादविवाद करनेवाला। और जिसमें दावे के सवध मे मपना सब वक्तव्य रहता है। प्लीह-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० प्लीहन् ] दे० 'प्लीहा' । उ०—विदाही और अर्जीदावा। अभिष्यदी वस्तु खाय तो प्लीह (तापतिल्ली) होय । प्लेइंग कार्ड-सञ्ज्ञा पु० [थ •] ताश । माधव०, पृ० १६० प्लेग-सज्ञा पुं० [अ०] १. भयकर भौर सक्रामक रोग जिसके