पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५८

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पटबिजना २७६७ पटलता पटविजना-सा पुं० [हि०पट + विज्जु ] 'पटबीजना' । उ० महा०-पटरा फेरना = किसी के घर को गिराकर जुते हुए शून्य विजन के पटविजना से, चाँद सितारे आसमान के, जरा खेत की तरह चौरस कर देना। ध्वस यार देना। तवाह मरण से मुक्त न देखे, देखा-अपने ही समान थे । हस०, कर देना। पटरा हो जाना = मर कटकर नष्ट हो जाना । पृ०५४ । पटरागिनि-मशा लो० [हिं० ] दे० 'पट रानी' । उ०-पट- पटवोजना -सशा पु० [हिं० पट( = घरावर) +विज्जु ( =: विजली)] रागिनि पाँवार रूप रभा गुन जुब्बन । प्रमुदा प्रान समान जुगुनू । खद्योत । नहीं विसरत्त एक छन ।-पृ० रा०, ११३७० । पटभाक्ष-सया पुं० [ स०] प्राचीन काल का एक यत्र जिससे प्रखि पटरानी-सशा सी० [सं० पट्ट + रानी ] वह रानी जो राजा के को देखने में सहायता मिलती थी। साथ सिंहासन पर बैठने की अधिकारिणी हो। किसी राजा पटमंजरी-पना पु० [सं० पटपञ्जरी ] सपूर्ण जाति की एक शुद्ध की विवाहिता रानियो मे सर्वप्रधान । राजा की सबसे बडी रागिनी जो हिंडोल राग की ली है। रानी । राजा की मुख्य रानी। पट्टरानी । पाटमहिपी । विशेष-हनुमत के मत से इसका स्वरग्राम यह है-4 ध नि सा पटरी-सशा स्त्री॰ [हिं० पटरा ] १ काठ का पतला और लवोतरा रे ग म प । इसका गान समय ६ दह से १० दड तक है। तख्ता। एक और मत से यह श्री राग की रागिनी है और इसका मुहा०-पटरी जमना = घुडसवारी मे जीन पर सवार का रानो गान समय एक पहर दिन के बाद है। को इस प्रकार चिपकाना कि घोडे के बहुत तेज चलने या. कोई कोई इसे सकर रागिनी भी मानते है। इसमे से कुछ के शरारत करने पर भी उसका प्रासन स्थिर रहे। रान बैठाना मत से यह नट और मालथी के मिलाने से बनी है । दूसरे या जमाना । पटरी वैठना = मन मिलना । मित्रता होना। इसे मारू, धूलथी, गाधारी और धनाथी के सयोग से बनी मेल होना। पटना । जैसे,—हमारी उनकी पटरी कभी हुई मानते हैं। न बैठेगी। पटमंडप-पशा पुं० [स० पटमण्डप ] तबू । खेमा । शिविर । २ लिखने की तख्ती। पटिया । १ वह चौडा खपडा जिसपर पटम'-वि० [हिं० पटपटाना ] वह जिसकी आँखें भूख से पटपटा नरिया जमाते हैं। ४ सड़क के दोनो किनारो का वह कुछ या बैठ गई हो । जो भूख के मारे अघा हो गया हो । ऊँचा और कम चौडा भाग जो पैदल चलनेवालो के लिये पटम२-पञ्चा पुं० [ म० पटु ] घोखा । छल । छद्म । पाखड । होता है । ५. नहर के दोनो किनारो पर के रास्ते । ६ पटुता । इन वातन मोहिं अचिरज पावै। पटम किए पिव वगीचो में क्यारियों के इधर उधर के पतले पतले रास्ते जिनके कैसे पावै । -सतवानी० पृ० १० । दोनो ओर सुदरता के लिये घास लगा दी जाती है। रविश । पटमय'-वि[ म० ] कपडे से बना हुमा को०] । ७. सुनहरे या रुपहले तारो से बना हुग्रा वह फीता जिसे पटमय-सज्ञा पु० तवू । खेमा । साडी, लहँगे या किसी कपडे की कोर पर लगाते हैं । ८ हाथ पटरफ-सा पुं० [सं०] पटेर । गोदपटेर । में पहनने की एक प्रकार की पट्टीदार चौडी चूडी जिमपर पटरा-मशा पुं० [ म० पट्ट + हिं० रा (प्रत्य०) अयवा म० पटल ] नक्काशी बनी होती है । ६ जतर । चौकी । ताबीज । [त्री० अल्पा० पटरी ] १ काठ का लवा चौकोर और चौरस पटल-सज्ञा पुं० [सं०] १. छप्पर । छान । छत । २ आवरण । चीरा हुमा हुया टुण्डा जो लवाई चौडाई के हिसाब से बहुत पर्दा। आड करने या ढकनेवाली कोई चीज । ३. परत । कम मोटा हो । तरता । पल्ला । तह । तवक । ४ पहल । पात्र । ५. अग्वि की बनावट की विशेष-काठ के ऐसे भारी टुकड़े को जिसके चारो पहल वरावर तहे। आँख के पर्दे। ६ मोतियाबिंद नामक प्राख का या करीव करीव बरावर हो अथवा जिसका घेरा गोल हो रोग । पिटारा । ७. लकडी आदि का चौरस टुकडा । पटरा। 'कुदा' कहेगे । कम चौडे पर मोटे लवे टुकडे को 'बल्ला' या तस्ता । ८ पुस्तक का भाग या अविशेष । परिच्छेद । ६ वल्ली कहेगे । बहुत ही पतली वल्ली को छठ कहेगे । माथे पर का तिलक । टीका । १०. समूह । ढेर । अवार। मुहा०-पटरा कर देना - (१) किसी खडी चीज को गिराकर ११ लाव लश्कर । लवाजमा। परिच्छद । १२ वृक्ष । पटरी की तरह जमीन के बराबर कर देना । (२) मनुष्य, पेठ (को०) । १३ पिटक । पिटारी (को०) । १८ पुस्तक । ग्रथ वृक्ष प्रादि को काटकर गिरा देना। मार लाट कर फैला । (को०) । १५ वृ त । डठल (को॰) । देना या विछा देना । जैसे,—शाम तक उसने सारे का मारा पटलक-सज्ञा पुं० [म०] १ प्रावरण । पर्दा । झिलमिली। बुरका । जगल काट कर पटरा कर दिया। (३) चौपट कर देना । २ कोई छोटा सदूक, डलिया या टोकग। ३ माह । राशि । तवाह कर देना। सर्वनाश कर देना। जैसे,—इस वर्ष के ढेर । भवार। अकाल ने तो पटरा कर दिया। पटरा होना- मरकर गिर पटलवा-सा सी० [सं०] १ पटल का काम । २ अधिक्ता। जाना। मर जाना। नष्ट हो जाना । स्वाहा हो जाना। उ०-जौन अंग डिग है कढ़ी हुई थैल की चाह । जैसे,—इस साल हैजे से हजारो पटरा हो गए। अजहूँ लौं अवलोकिये, पुलक पटलता ताह।-मतिराम २. घोबी का पाट । ३ हेगा। पाटा । पं०, पृ. २७५1 1