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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५७

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o रखी जाय। पटतारना' २७६६ पटबंधक पटतारना-क्रि० स० [हिं० पटतर ] ऊँची नीची जमीन को पटनिया, पटनिहा-वि० [हिं० पटना + इया या इहा (प्रत्य॰)] चौरस करना । टीले को काटकर उसकी मिट्टी को इधर उधर १ वह वस्तु जो पटना नगर या प्रदेश मे बनी हो। जैसे, इस प्रकार फैला देना कि जहाँ वह फैलाई जाय वहाँ का तल पटनिया एक्का। २ पटना नगर या प्रदेश से सवध चौरस रहे । पडतारना । रखनेवाला। पटताल-सज्ञा पुं० [सं० पट्ट+ताल ] मृदग का एक ताल । पटनी- सज्ञा स्त्री० [हिं० पाटना] वह कमरा जिसके ऊपर कोई विशेष-यह ताल १ दीर्घ या २ ह्रस्व मात्राओं का होता है। और कमरा हो । कोठे के नीचे या कमरा । पर्टीहा। इसमे एक ताल और एक खाली रहता है। इसका वोल यो पटनी२--सज्ञा मी [हिं० पटना ( = तै होना) ] १ जमीदारी का + वह अश जो निश्चित लगान पर मदा के लिये वदोबस्त कर है-धा, केटे दि ता, धा। दिया गया हो। वह जमीन जो किसी को इस्तमरारी पटक-सज्ञा पु० [स०] तस्कर । चोर [को०] । पट्टे के द्वारा मिली हो। यौ०-पटनीदार । पटद-सञ्ज्ञा पु० [सं०] कपास । विशेप-यदि कापतकार इस जमीन या इसके प्रशविशेष को वे पटधारी'-वि० [ म० पटधारिन् ] जो कपडा पहने हो। ही अधिकार देकर जो उसे जमीदार से मिले हैं, दूसरे मनुष्य षटधारी२-सज्ञा पुं० तोशाखाने का मुख्य अफसर । उ०-वोलि के साथ बंदोबस्त कर दे तो उसे 'दरपटनी' और ऐसे ही सचिव सेवक सखा पटधारि भंडारी । तेहु जाहिं जोइ चाहिए तीसरे वदोवस्त के बाद उसे 'सिपटनी' कहते हैं । सनमानि संभा”।-तुलसी (शब्द०)। २ खेत उठाने की वह पद्धति जिसमे लगान और किसान या पटन'-सज्ञा पुं॰ [ स० पत्तन प्रा० पट्टण पटण ] दे० 'पत्तन' उ०- असामी के अधिकार सदा के लिये निश्चित कर दिए जाते हैं। धर्म पुरी एक नगर सुहावा । हाट पटन बहु देखि वनावा।- इस्तमरारी पट्टे द्वारा खेत का बदोबस्त करने की पद्धति । ३ हिंदी प्रेमगाथा०, पृ० २०५ । दो खटियो के सहारे लगाई हुइ पटरी जिसपर कोई चीज पटन-सञ्ज्ञा पुं० [स०] गुजरात देश, जहाँ की राजधानी का नाम पट्टन या पाटन था। उ०—अवतार लियौ प्रिथिराज पहु ता दिन दान अनत दिय । कनवज्ज देस गज्जन पटन किल- पटपट'-सज्ञा मी० [अनु० पट ] हलकी वस्तु के गिरने से उत्पन्न किलत कालकनिय ।-पृ० रा०, ११६८७ । शब्द की वार वार श्रावृत्ति । 'पट' शब्द अनेक वार होने की क्रिया या भाव । पट शब्द की वार वार उत्पत्ति। पटना-क्रि० प्र० [हिं० पट ( = जमीन के सतह के घरावर )] १ किसी गड्ढे या नीचे स्थान का भरकर पास पास की पटपट-क्रि० वि० बगवर पट ध्वनि करता हुआ । 'पटपट' अावाज सतह के बराबर हो जाना । समतल होना । जैसे,—वह झील के साथ । जैसे, पटपट वू दे पड़ने लगी। अब बिलकुल पट गई है। २ विसी स्थान मे किसी वस्तु पटपटाना-क्रि० म० [हिं० पटकना ] भूख प्यास या सरदी गरमी की इतनी अधिकता होना कि उससे शून्य स्थान न दिखाई के मारे बहुत कष्ट पाना। बुरा हाल होना। २ किसी पडे । परिपूर्ण होना । जैसे, रणभूमि मुदों से पट गई। चीज से पटपट ध्वनि निकलना। जैसे,—ये चने खुब ३ मकान, कुएं आदि के ऊपर कच्ची या पक्की छत पटपटा रहे हैं। बनाना। मकान की दूसरी मंजिल या कोठा पटपटाना-क्रि० स०१ किसी चीज को वजा या पीटकर पटपट उठाया जाना। ५ मींचा जाना । सेराव होना। जैसे, शब्द उत्पन्न करना । जैसे,—व्यर्थ क्या पटपटा रहे हो?. वह खेत पट गया। ६ दो मनुष्यो के विचार, भाव, रुचि या २ खेद करना । शोक करना। स्वभाव मे ऐसी समानता होना जिससे उनमें सहयोगिता या पटपर'-वि० [पि० पट + अनु० पर ] समतल । बराबर। मित्रता हो सके। मन मिलना। वनना । जैसे,—हमारी चौरस । हमवार। उनकी कभी नहीं पट सक्ती । ७ विचारो, भावो या ठचियो पटपर-सज्ञा पुं०१ नदी के पासप की वह भूमि जो बरसात के की समानता के कारण मित्रता होना। ऐसी मित्रता होना दिनो में प्राय सदा डूवी रहती है। इसमे केवल रवी की जिसका कारण मनों का मिल जाना हो। जैसे,—आजकल खेती की जाती है । २ ऐसा जगल जहाँ घास, पेड और पानी हमारी उनकी खूव पटती है। ८ खरीद, विक्री, लेन देन तक न हो । प्रत्यत उजाड स्थान । प्रादि में उभय पक्ष का मूल्य, सूद, शर्तों आदि पर सहमत हो पटबंधक-मज्ञा पु० [हिं० पटना + स० वन्धक] एक प्रकार का रेहन जाना। ते हो जाना। वैठ जाना। जैसे, सौदा पट गया, जिसमे महाजन या रेहनदार रखी हुई सपत्ति के लाम में से मामला पट गया, आदि। ६ ( ऋण या देना ) चुकता हो सूद लेने के बाद जो कुछ बच जाता है उसे मुल ऋण मे जाना । (ऋण) भर जाना। पाई पाई अदा हो जाना। मिनहा करता जाता है और इस प्रकार जब सारा ऋण वसूल जैसे,-ऋण पट गया। हो जाता है तव सपत्ति उसके वास्तविक स्वामी को लौटा संयोकि०-जाना। देता है। -ना-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० पट्टन ] दे॰ 'पाटलिपुत्र'। क्रि०प्र०—करना ।—देना ।-लेना ।-रखना। ४