पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/६३

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- पटेरा २७७२ पट्ट' पटेरहिं लागत बार । अस कछु कीनो नदकुमार ।-नंद ग्र०, बद होते और दूसरी ओर सरकाने से खुलते हैं। डहा । पृ० २५८ । न्योडा। २. दे० 'पटेला'। उ०-कोई पटैले पर बोसों के विशेष—इसके पत्ते प्राय एक इच चौके और चार पाँच फुट ठाट ठाटे हैं।-प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० ११३ । तक लवे होते हैं । पत्ते बहुत मोटे होते हैं और पत्तो में ये पटोटज-सञ्ज्ञा ० [ म० पट + उटज ] १. तवू । खेमा । २ नए पत्ते निकलते हैं। इन पत्तों से चटाइयाँ आदि वनाई कुकुरमुत्ता [को०। जाती हैं । इसमे बाजरे की वाल की तरह वालें लगती हैं, पटोर-शा पुं० [ स० पटोल ] १ पटोल । २ कोई रेशमी कपडा । जिनके दानो का माटा सिंघ देश के दरिद्र निवासी खाते हैं। उ०-पुनि पट पीत पटोरन पोछत, धरि पागे समुहाई।- वैद्यक में यह कसैली, मधुर, शीतल, रक्तपित्तनाशक और मूत्र, नद० ग्र०, पृ० ३८६ । ३ परवल । शुक्र रज तथा स्तनो के दूध को शुद्ध करनेवाली मानी पटोरी-सशा स्त्री० [सं० पाट + पोरी ( प्रत्य० ) ] १ रेशमी जाती है। साडी या धोती। २ रेशमी किनारे की घोती। उ०-घसि पर्या०-गुन । पटेरक । रच्छ । गवेराभमूलक । चदन इक चोली कीनी कचुकि पहिरि पटोरी लीनी।- पटेरा सच्चा पु० [हिं०] १ दे० 'पटेला' । २ दे० 'पटैला'। हिंदी प्रेमगाथा०, पृ० १६१ । पटेल'–सञ्चा पु० [हिं० पट्टा + (प्रत्य॰) ऐल (= वाला)] १ गांव पटोल-सज्ञा पुं० [सं०] १ एक प्रकार का रेशमी कपडा जो का नवरदार ( मध्यप्रदेश ) । २ गाँव का मुखिया । गाँव प्राचीन काल में गुजरात में वनता था । का चौधरी । एक प्रकार की उपाधि । यौ०-पाटपटोल । उ०-दीन्हउ सोनर सोलहर पाट पटोला विशेष—यह उपाधि धारण करनेवाले प्राय मध्य और दक्षिण वीडा पान ।--बी० रासो, पृ०६। भारत में होते हैं। २ परवल की लता। था श्री पटोल दल पानी। त्रिफला प्रो पटेल (सरदार)-सज्ञा पुं० स्वतत्र भारत के प्रथम गृहमत्री जिनका श्रीकुटा समानी ।-इद्रा०, पृ० १५१ । ३. परवल का फल । पूरा नाम वल्लभ भाई पटेल था। पटोलक-सञ्चा पुं० [सं०] सीपी । शुक्ति । सुतही । पटेलना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'पटीलना'। पटोलपत्र-सज्ञा पुं॰ [स०] १ एक प्रकार की पोई । २ परवल पटेला-सज्ञा पुं० [हिं० पाटला स्त्री० अल्पा० पटेली] १ वह नाव की लता का पत्र। जिसका मध्य भाग पटा हो । वैल घोडे आदि को ऐसी ही पटोलिका-सज्ञा स्त्री॰ [स०] सफेद फूल की तुरई या तरोई । नाव पर पार उतारते हैं । २ एक घास जिसकी चटाइयाँ पटोली--तज्ञा स्त्री० [म०] १ २० 'पटोलिका' । २.@ चादर । पटोरी बनाते हैं। वि० दे० 'पटेर'। ३ हेगा। ४ सिल । पटिया । उ.--फाडि पटोली धुज करो कामलडी फहराय । जेहि जेहि ५ कुश्ती का पेच जिससे नीचे पडे हुए जोड को चित किया भेपे पिय मिल सोइ सोइ भेप कराय।-कबीर सा० सं०, जाता है। पृ०४१।- विशेष-इसमे बाएँ हाथ से जोड की गरदन पर कलाई जमाकर पटोसिर--सज्ञा पु० [ स० पट + हि० सिर ] पगडी । साफा । उ० उसकी दाहिनी वगल पकड लेते और दाहिने हाथ से उसकी उ०-धन घावन, वगांति पटोसिर वैरख तडित सोहाई।-- दाहिनी मोर का जाँघियां पकडकर स्वय पीछे हटते हुए तुलसी ग्र०, पृ० ४४१ । उसे अपनी पोर खीचते हैं जिससे वह चित हो जाता है पटौनी--पशा पु० [ देश-] मांझी । मल्लाह । १६ हाथ का कहा । पछेला । पछेली। पटौहाँ-नशा पुं० [हिं० पाटना + श्रौहा (प्रत्य०) ] १ पटा हुआ पटेली-सञ्चा क्षी० [हिं० पटेला ] छोटी पटेला नाव । स्थान । २ पटाव के नीचे का स्थान । ३ वह कमरा जिसके पटेवा-सज्ञा पु० [हिं० ] २० 'पटवा' । उ०-मोराहिरे अंगना ऊपर कोई और कमरा हो। ४ पट बधक । पाकडी सुनु बालहिया। पटेवा पाउस वास परम हरि वाल पट्ट'-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ पीढा । पाटा । २ पट्टी। तख्ती । लिखने हिया । पटेवा मइया हीत नीत सुन वालहिया । चोलरि एक की पटिया। ३ ताँबे आदि धातुप्रो की वह चिपटी पट्टी विनि देहि परम हरि वालहिश्रा ।-विद्यापति, पृ० १५४ । जिसपर राजकीय आज्ञा या दान आदि की सनद खोदी विशेष--इम उदाहरण से ज्ञात होता है कि गहना गूथने के जाती थी। ४ किसी वस्तु का चिपटा या चौरस तल भाग । साथ ये लोग वस्त्र ( रेशमी ) वुनने का व्यवसाय भी ५ शिला। पटिया । ६ घाव पर बांधने का पतला कपडा। करते थे। पट्टी । ७ वह भूमि सवधी अधिकारपत्र जो भूमिस्वामी की पटैत-सज्ञा पुं० [हिं० पटा+ऐत (प्रत्य॰)] पटा खेलने या पोर से असामी को दिया जाता है और जिसमें वे सब शर्ते लडनेवाला पटेवाज । लिखी होती हैं जिनपर वह अपनी जमीन उसे देता है । पट्टा। पटैला-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पटरा ] १ लकडी का बना हुआ चिपटा ८ ढाल । ६ पगडी।। १ दुपट्टा । ११ नगर। चौराहा । उहा जो किवाहों को वद करने के लिये दो किवाडो के मध्य चतुष्पथ । ।३ राजसिंहासन । आहे वल लगाया जाता है। इसे एक ओर सरकाने से किवाड यौ०-पमहिपी।