पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/६२

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पटीर २७७१ पटेर पटीर-सञ्ज्ञा पु० [ स०] १ एक प्रकार का चदन। उ०—लावति वीर पटीर घसि ज्यो ज्यो सीरे नीर । त्यौं त्यों ज्वाल जगै दई या मृदु वाल सरीर ।-स० सप्तक पृ० २३० । २ कत्था । ३ कत्थे या खैर का वृक्ष । ४. मूली। ५ वटवृक्ष । उ०- जटिल पटीर कृपाल वट रक्तफला न्यग्रोध । यह बसीवट देखु बलि सब सुख निरुपघ वोध ।-नददास (शब्द०)। ६ कदुक । गेंद (को०) । ७ कामदेव (को०)। ८ केश (को०)। ६ मेघ । बादल (को०)। १० वातरोग (को०) । ११ प्रतिश्याय । ठढक । जुकाम (को०)। १३ क्यारी (को०) १४ ऊँचाई । उच्चता (को०) । १५ उदर (को०) । पटीर-वि० १ सुदर । सौंदर्ययुक्त । २ ऊंचा। [को०] । पटीरजन्मा- सञ्ज्ञा पु० [ स० पटीरजन्मन् ] चदन का वृक्ष को०] । पटीरमारुत-सज्ञा पु० [स०] चदन के संपर्क से सुगधित हवा [को॰] । पटीलना-क्रि० प्र० [हिं० पटाना ] १ किसी को उलटी सीधी बातें समझा बुझाकर अपने अनुकूल करना । ढग पर लाना । हत्थे चढाना । उतारना । २ अर्जित करना। कमाना । प्राप्त करना । ३ ठगना । छलना । ४ मारना । पीटना । ठोंकना। ५ परास्त करना। नीचा दिखाना । ६ सफलतापूर्वक किसी काम को समाप्त करना । खतम करना । पूर्ण करना। सयो क्रि०-डालना ।-देना।-लेना। पटीला@f-सज्ञा पु० [हिं० ] चिपटा कडा । पछेला। पटेला । उ०-चाल की चुरिया पहिरो सजनी परख पटीला डार हो । -कबीर, श०, भा॰ २, पृ० १३४ । पटु'--वि० [सं०] १ प्रवीण । निपुण । कुशल । दक्ष । उ०—नदी नाव पटु प्रश्न अनेका । केवट कुसल उतर सविवेका।—मानस, ११४१। २ चतुर । चालाक । होशियार । ३ धूर्त । छलिया। मक्कार। फरेबी । ४ निष्ठुर । प्रत्यत कठोर हृदयवाला। ५ रोगरहित । तदुरुस्त । स्वस्थ । ६ तीक्ष्ण । तीखा । तेज । ७ उन । प्रचढ । ८. स्फुट । प्रकाशित । व्यक्त । ६ सु दर । मनोहर । उ०—(क) रघुपति पटु पालकी मंगाई। तुलसी (शब्द॰) । (ख) पौढाये पटु पालने सिसु निरखि मगन मन मोद। —तुलसी (शब्द॰) । पटु-सञ्ज्ञा पु० १ नमक । २ पाशुलवण । पांगा नोन । ३ परवल । ४ परवल के पत्ते । ५ करेला। ६ चिरचिटा नाम की लता । ७ चीनी कपूर । ८ जीरा। ६ वच । १० नक- छिकनी । ११ छत्रक । कुकुरमुत्ता (को॰) । पटुआ-सज्ञा पु० [हिं०] दे० 'पटुवा १ और २'। पटुक-सञ्ज्ञा पुं० [स०] परवल । पटुकल्प-वि० [ म० ] कुछ कम पटु । जो पूर्ण कुशल या चालाक न हो । कामचलाऊदक्ष । पटुका-सञ्ज्ञा पु० [ स० पटिका ] १ ० 'पटका'। उ०—हरीचद पिय मिले तो पग परि गहि पटुका समझाऊँ। -भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ४६३ । २ चादर। गले में डालने का वस्ल । उ०--कटि काछनि सिर मुकुट विराजत, काँधे पर सोहै पटुका लहरिया ।-भारतेंदु ग्रं०, भा॰ २, पृ० ४३५ । ३ धारीदार चारखाना। पटुकी-मज्ञा स्त्री॰ [हिं० ] कमरवद । पटका । पटुका । उ०-कोउ नगधर वर पिय की गहि रहि परिकर पटुकी । जनु नवघन ते सरकि दामिनी छटा सु अटकी ।-नद० ग्र०, पृ० २० । पटुता--सज्ञा स्त्री० [ म०] १ पटु होने का भाव । प्रवीणता । निपुणता । होशियारी । २ चतुराई । चालाकी। पटुतूलक--सञ्ज्ञा पुं० ] स० ] एक घास । लवणतृण । पटुतृणक-सज्ञा पुं॰ [स०] लवणतृण नाम की घास । पटुत्रय-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] वैद्यक का एक पारिभाषिक शब्द जिससे तीन नमको का बोध होता है-बिड नोन, सेंधा नोन और काला नोन । पटुत्व-सज्ञा पुं॰ [स०] पटुता। पटुपत्रिका-सज्ञा स्त्री॰ [स०] छोटे पेंच का पौधा । पटुपर्णिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [म० ] एक प्रकार की कटेहरी । पटुपर्णी-सञ्ज्ञा सी० [स०] एक प्रकार की कटेहरी। सत्या- नाशी । कटेहरी । स्वर्णक्षीरी । भंडभाड । पटुमात्--सज्ञा पु० [स०] पानवश का एक राजा। किसी किसी पुराण मे इसका नाम पटुमान या पटुमायि मिलता है। पटुरूप-वि० [सं०] अत्यत चतुर (को०] । पटुली-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० पट्ट ] १ काठ की पटरी जो झूलों के रस्सों पर रखी जाती है। तख्ता । पटल । उ०-दोऊ हाथन की हथेली ताको पटुली को भाव करे तामें श्रीठाकुर जी को डोल मुलाए । —दो सौ बावन०, भा० १, पृ० २२६ । २ चौकी पीढी। उ०- पटुली कनक की तिही बानक की बनी मनमोहनी। नद० ग्र०, पृ० ३७५ । ३ गाडी या छकडे मे जड़ा हुआ लबा चिपटा डडा । पटुवाल'-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'पटवा' । उ०—पटुवन्ह चीर पानि सब छोरे । सारी कचुकी लहुरि पटोरे ।- जायसी ग्र० ( गुप्त ), पृ० ३४४। पटुवार-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पाट ] १ पटसन । जूट । २ एक साग । करे। पटुवा- सज्ञा पु० [हिं० पटला ] गून के सिरे पर बँधा हुआ डडा जिसको पकडे हुए मांझी लोग गून खीचते हैं । पटुवा-सञ्ज्ञा पुं॰ [ देश० ] तोता । शुक । पटूका-सज्ञा पुं० [सं० पट या देश० ] दे० 'पटका'। पटेबाज-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पटा + फा० बाज ] १ पटा खेलने- वाला । पटे से लडनेवाला। पटैत । २ एक खिलौना जो हिलाने से पटा खेलता है। ३ छिनाल स्त्री । कुलटा परंतु चतुरा स्त्री ( वाजारू)। ४ व्यभिचारी और धूर्त पुरुष (बाजारू)। पटेर-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० पटेरक ] पानी मे होनेवाली सरकडे की जाति की एक प्रकार की घास । गोद पटेर । उ०-फटत