पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/६९

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पठथ २७७८ पड़ती सदेश पहुंचाने के लिये कही भेजना। उ०—खेल ले नेहरा दिन चार । पहिली पठौनी तीन जने आए नौवा बाम्हन वार ।-कवीर श०, भा० १, पृ०४ । क्रि० प्र०-भेजना। २ किसी की कोई चीज लेकर कही जाने की क्रिया या भाव । किसी के भेजने से कही जाना। क्रि० प्र०-थाना ।-जाना। पठ्य-वि० [स० पाव्य] दे० 'पाठ्य' । पठ्यमान-वि० [म० पाठ्य+मान (प्रत्य॰)] पढ़ा जाने के योग्य । सुपाठ्य । पड़कुलिया-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] पबुक पक्षो। पेड़ की। उ०-चीडो की उध्वंग भुजाएँ भटका सा पड कुलिया का स्वर ।- इत्यलम्, पृ०६६ पड़छती-सञ्ज्ञा पु० [ स० पट च्छदि ] १ वह छोटा छप्पर या टट्टी जिसे बरसात के प्रारभ मे कच्ची दीवार पर इसलिये लगा देते है कि वोछार से वह कट न जाय । भीत की रक्षा के लिये लगाया जानेवाला छप्पर या टट्टी। क्रि० प्र०—बाँधना ।—लगाना । २ कमरे आदि के बीच में लकडी के खभों पर या दो दीवारो के बीच मे तख्ते या लट्ठ प्रादि ठहराकर बनाई हुई पाटन जिसपर चीज असवाव रखते हैं। टॉड । पड़छत्ती-सज्ञा पुं० [सं० पटच्छवि दे० 'पडछती'। पड़त-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० पढ़ना] २० 'पहता'। पड़ता-सज्ञा पु० [हिं० पड़ना] १ किसी वस्तु की खरीद या तैयारी का दाम। किसी माल को खरीदने, तैयार कराने या लाने आदि मे पडा हुआ खर्च । लागत । सर्फे की कीमत मुहा०-पड़ता खाना या पढ़ना = लागत और अभीष्ट लाभ मिल जाना। खर्च और मुनाफा निकल जाना। जैसे—(क) आपके साथ सौदा करने में हमारा पडता नहीं खायगा। (ख) इतने पर इस वस्तु के बेचने में हमारा पडता नहीं खाता। पडता फैलाना=किसी चीज को तैयार करने, खरीदने और मंगाने आदि में जो खर्च पडा हो उसे देखते हुए उसका भाव निश्चित करना। वस्तु की संख्या और उसके प्राप्त करने मे पढे हुए खर्च की रकम देखते हुए एक एक वस्तु का मूल्य मालूम करना। पडता निकालना या बैठाना = दे० 'पडता फैलाना' । ३ दर । शरह । ३ भूकर की दर । लगान की शरह । ४ सामान्य दर। औसत । सरदर शरह । एक एक वस्तु या एक एक निश्चित काल का मूल्य या आमदनी जो सब वस्तुओं के मूल्य या पूरे काल मे वस्तु की संख्या या कालविभाग की संख्या को भाग देने से निकले। जैसे,—फलकत्ते में पापकी आय का क्या पडता है। मुहा०-पढ़ता रहना = औसत होना। पड़ताल-सज्ञा स्त्री० [सं० परितोलन] १ पडतालना क्रिया का भाव । किसी वस्तु की सूक्ष्म छानबीन । भली भाँति जाँच या देख भाल । गौर के साथ किसी चीज की जांच । अन्वीक्षण । अनुसंधान। क्रि० प्र०—करना ।—होना । विशेप-इस अर्थ मे यह शब्द प्राय 'जांच' के साथ यौगिक रूप में वोला जाता है, अकेले क्वचित् प्रयुक्त होता है । जैसे,— वे हिसाव की जाँच पडताल करने पाए थे। ३ गांव अथवा नहर के पटवारी द्वारा खेतो की एक विशेष प्रकार की जाँच। विशेष-यह जाँच खरीफ, रबी और फस्ल जायद नामक तीनो कालो के लिये अलग अलग तीन वार होती है। खेत मे कौन सी चीज बोई गई है, किसने बोई है, खेत सींचा गया है या नहीं, सींचा गया है तो कहाँ से जल लाकर सीचा गया है, आदि बातें इस जांच मे लिखी जाती हैं। गांव का पटवारी प्रत्येक पडताल के बाद जिसवार एक नकशा बनाता है। इस नकशे से माल के अधिकारियो को यह मालूम होता है कि इस वर्ष कौन सी चीज कितने वीघे बोई गई है, उसकी क्या अवस्था है और वह कितनी उपजेगी, आदि । ३. मार । (क्व०)। विशेष-इस अर्थ मे इस शब्द का प्रयोग बहुधा वालको को ही मारने पीटने के सबध में होता है। पड़तालना-क्रि० स० [हिंपड़ताल +ना (प्रत्य॰) ] पडताल करना। जाँचना । अनुसघान करना। छान वीन करना। पड़ती-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० पटना ] विना जुती हुई भूमि। पडी हुई जमीन । भूमि जिसपर कुछ काल से खेती न की गई हो। विशेष-माल के कागजात में पडती के दो भेद किए जाते हैं- पडती जदीद भौर पडती कदीम। जो भूमि केवल एक साल से न जोती बोई गई हो उसको पडती जदीद और जो एक से अधिक सालों से न जोती बोई गई हो उसको पडती कदीम मानते हैं। क्रि० प्र०-छोदना ।—पड़ना ।—रखना। मुहा०—पढ़ती उठना = (१) पडती का जोता जाना। पडती पर खेती होना । जैसे,—यह पडती बहुत दिनो पर उठी है। (२) पडती के जोते जाने का प्रवध होना । पडती खेत का बदोवस्त हो जाना । जैसे,—इस साल हमारी बहुत सी पडती उठ गई । पढ़ती उठाना = (१) पडती को जोतना। पडती पर खेती प्रारभ करना। जमीदार का इस पाशा पर किसी पडती को खेती के योग्य बनाना और उसपर खेती प्रारम करना कि दो एक साल के बाद कोई असामी उसे ले लेगा। जैसे,—इस साल मैंने अपनी बहुत सी पडती उठाई है। (२) पडती का बदोवस्त कर देना। पडती को लगान पर काश्त- कार को देना । पढ़ती छोड़ना= किसी खेत को कुछ समय तक यों ही छोडना, उसे जोतना बोना नहीं जिसमें उसकी !