पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/७२

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पड़ाइन २७८१ पढना डाइन-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पाँडे] दे० 'पॅडाइन' । १ किसी के घर के आसपास के घर। किसी के घर के डाका-सञ्ज्ञा पु० [अनु॰] दे० 'पटाका'। समीप के घर । प्रतिवेश । मुहा०-पढ़ाके की गोट = दे० 'पटापटी' में 'पटापटी की गोट । यौ०-पास पडोस = आसपास । समीपवर्ती स्थान । डाना'-क्रि० स० [हिं० पडना का सक० रूप ] गिराना । मुहा०-पहोस करना = पडोस मे वसना। पडोसी होना । जैसे,- झुकाना । दूसरे को पडने मे प्रवृत्त करना। पड़ोस तो मैंने आपका किया है, मांगने किससे जाऊ । डाना-क्रि० स० [हिं० फाहना का प्रे० रूप ] फाडने का काम २ किसी स्थान के आसपास के स्थान । किसी स्थान के दूसरे से कराना। उ०—कन्न पडाय न मुड मुडाया। घरि समीपवर्ती स्थान । जैसे,—घर के पडोस मे चमार वसते हैं। घरि फिरत न भूकणु वाया ।-प्राण०, पृ० १११ । पड़ोसणा, पड़ोसिन-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पड़ोस] पडोस की रहनेवाली विशेप-योगी, विशेषत नाथपथी अपनी दीक्षा के क्रम में कान स्त्री । उ०—पांच पडोसण बैठी छइ श्राय ।-बी० रासो, की ललरी को चिरवाकर उसमे कुडल पहनते हैं। इसी लिये पृ०६४। इन योगियो को कनफटा भी कहा जाता है। पड़ोसिया-सञ्ज्ञा पु० [हिं० पडोस] २० 'पडोसी' । उ०-हम जुवति डापड़-क्रि० वि० [अनु॰] दे॰ 'पटापट'। पति गेलाह विदेस । लगनहिं बसए पडोसिया कलेस ।- डापदर-सज्ञा सी० दे० 'पटापट' । विद्यापति, पृ० ३८६। पड़ाव-सज्ञा पु० [हिं० पडना+श्राव (प्रत्य॰)] सेना अथवा किसी पड़ोसी-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पडोस + ई (प्रत्य॰)] [स्त्री० पड़ोसिन] यात्रीदल के यात्रा के बीच में प्राय रात बिताने के लिये कही वह मनुष्य जिसका घर पडोस मे हो। पड़ोस में रहनेवाला । ठहरने का भाव । यात्रीसमूह का यात्रा के बीच में अवस्थान । जिसका घर अपने घर के पास हो । प्रतिवासी। प्रतिवेशी। जैसे,—ाज यही पडाव पडेगा । हमसाया। क्रि० प्र०-ढालना ।-पहना। यौ०-अड़ोसी पड़ोसी = पडोसी इत्यादि । २ वह स्थान जहां यात्री ठहरते हो। वह स्थान जो यात्रियो को पड़ौसी-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पड़ोस] दे० 'पडोसी'। ठहरने के लिये निर्दिष्ट हो । चट्टी । टिकान । जैसे,—आज पढ़त-सशा मो० [हिं० पढ़ना + अत (प्रत्य॰)] १. पढ़ने की क्रिया हम लोग अमुक पडाव पर विश्राम करेंगे। या भाव । २. मत्र । जादू। ३ निरतर पढने की क्रिया । मुहा०-पडाव मारना = (१) पडाव डाले हुए किसी यात्रीदल पठत । वरावर पढना । जैसे, पढत कविसमेलन । को लूटना । कारवान या काफिला लूटना । (२) कोई वडा पढ़ता-वि० [हिं० पढ़ना] पढनेवाला। पाठ करनेवाला। उ०- साहसपूर्ण कार्य करना । भारी शौर्य प्रकट करना । जैसे,- वेद पढता पांडे मारे पूजा करते स्वामी हो।-कवीर कौन सा पडाव मार पाए हो? (शब्द०)। ३. चिपटे तले की वडी और खुली नाव जो जहाज से बोझ उता पढ़प्त-सज्ञा स्त्री॰ [स० पठन] पढ़ने की क्रिया या भाव । रने और चढाने के काम मे पाती है। पढ़ना-क्रि० स० [स० पठन ] १. किसी लिखावट के अक्षरो का पड़ाशी-सज्ञा स्त्री० [सं० पहाशी ] ढाक का पेड । अभिप्राय समझना। किसी पुस्तक, लेख आदि को इस प्रकार पडिया-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ हि० पँवा, पडवा ] भैस का मादा वच्चा । देखना कि उसमे लिखी बात मालूम हो जाय । जैसे,—इस पडियाना" -क्रि० स० [हिं० पहिया + अाना (प्रत्य॰) ] भैस का पुस्तक को मैं तीन बार पढ गया। मैसे से सयोग हो जाना । भैसाना । सयो० कि०-जाना।-ढालना ।-लेना। पडियाना'-क्रि० स० भैस का भैसे से सयोग कराना। भैस को २ किसी लिखावट के शब्दो का उच्चारण करना । उच्चारण- मैथुनार्थ भैसे के समीप पहुँचाना । पूर्वक पाठ करना। बाँचना। किसी लेख के अक्षरो मे पडिवा-मज्ञा स्त्री० [स० प्रतिपदा, प्रा० पडिवा ] प्रत्येक पक्ष की सूचित शब्दो को मुह से वोलना । जैसे, - जरा और जोर प्रथम तिथि । पडवा । प्रतिपदा । से पढो कि हमको भी सुनाई दे। पडीहारी-मज्ञा पु० [सं० प्रतिहार ] दे॰ 'प्रतिहार' । उ०-राई सगे०नि०-जाना ।—देना । कहई सुणि हो पडीहार । वेगि पलारण मलाई तुषार । ३ उच्चारण करना । मध्यम या धीरे स्वर से कहना। जैसे,- बी० रासो, पृ० १३८ । तुम कौन सा मत्र पढ़ रहे हो। पड़,आ-मज्ञा पुं॰ [देश॰] ऊख का खेत । सयो० कि०-जाना।-देना। पडेला-सञ्ज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'पडरू' । ४ स्मरण रखने के लिये किमी विषय का वारवार उच्चारण पड़ो-सज्ञा पु० [हिं०] दे० 'परवल' । करना । रटना । जैसे, पहाडा पढना। पडोस-मशा पु० [स० प्रतिवेश या प्रतिवास, प्रा० पड़िवेस, पढिवास ] संयो० कि०-जाना ।- डालना।