पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पड़ना २७८० पड़ा उपस्थित होना । प्रसग में आना । जैसे, वात पडना, मौका (जैसे, हाथ जला जाता है पैर कटा जाता था, चीज हाथ पडना, साथ पडना, काम पडना, पाला पडना, साविका से गिरी जाती है) उसी प्रकार पडना' भी लगाते हैं, जैसे- पडना, इत्यादि । जैसे,—जव कभी वात पडती है वे तुम्हारी छडी हाथ से गिरी पडती है। उ०—चूनरि चार चुई सी तारीफ ही करते हैं। परै चट कीली हरी अंगिया ललचावै ।-(शब्द०)। विशेष-जिन जिन स्थलो में 'होना' क्रिया बोली जाती है पड़पड़-सज्ञा स्त्री० [अनु॰] १ निरतर पडपड शब्द होना। २. उनमें से बहुत से स्थलो मे 'पडना' का भी प्रयोग हो सकता दे० 'पटपट'। है। 'पहना' के प्रयोग में विशेषता यही होती है कि इससे पड़पड़-ज्ञा पुं० [हिं०] पूजी । मूलधन । व्यापार का अधिक सयोगवश होना प्रकट होता है। साथ पड़पड़ाना-क्रि० प्र० [अनु॰] १ पडपड शब्द होना । २ मिर्च, हुप्रा' और 'साथ पडा' मे से पिछला क्रियाप्रयोग व्यापार सोठ आदि कडवे पदार्थो के स्पर्श से जीभ पर जलन सी मे सयोग का भाव सूचित करता है । मालूम होना । अत्यत कडवे पदार्थ के भक्षण या स्पर्श से जीभ १६ जांच या विचार करने पर ठहरना। पाया जाना । जैसे,- पर किंचित् दु खद तीक्ष्ण अनुभूति होना। चरपराना । जैसे,- (क) दोनो मे लाल घोडा कुछ मजबूत पडता है। (ख) तुमने ऐसी मिर्च खिलाई कि अब तक जीम पडपडा रही है। यह धान उससे कुछ बीस पडता है। १७ (देशातर या अवस्थातर) होना। (पहली स्थिति या दशा त्यागकर नई पड़पड़ाहट-सज्ञा स्त्री० [हिं० पडपढ़ाना] पडपडाने की क्रिया या स्थिति या दशा को) प्राप्त होना । (वदलकर) होना । जैसे, भाव। चरपराहट । जैसे,—ऐसी तेज मिर्च खाई कि अवतक पडपडाहट नही मिटी। नरम पडना, ठढा पडना, ढीला पहना, इत्यादि । विशेष—'पडना' के प्रयोग से जिस दशातर की प्राप्ति सूचित की पड़पणां-मज्ञा स्त्री॰ [देश॰] सहायता । उ०—जो राजा ऊपर खड जाती है वह प्राय पूर्वदशा से अपेक्षाकृत हीन या निकृष्ट जाऊँ पडपण खान सुजायत पाऊँ ।-रा० रू०, पृ० ३०७ । होती है। जहाँ पहली स्थिति से अच्छी स्थिति मे जाने का पड़पोता-सञ्ज्ञा पु० [सं० प्रपौत्] [स्त्री० पढपोती] पुत्र का पोता। भाव होता है वहाँ इसका व्यवहार कम स्थलो पर होता है। पोते का पुत्र । लडके के लडके का लडका। प्रपौत्र । ८ मैथुन करना। सभोग करना (पशुओ के लिये) । जैसे,- पडम-सञ्ज्ञा पु० [देश॰] एक प्रकार का मोटा सूती कपडा जो यह घोडा जब जब किसी घोडी पर पड़ता है तब तब बीमार प्राय खेमे वगैरह वनाने में काम आता है। हो जाता है। १६ अत्यत इच्छा होना। घुन होना। चिंता पड़रू-सञ्ज्ञा पु० [हिं०] दे० 'पंडवा'। होना । जैसे,—तुम्हे तो यही पड़ रही है कि किस प्रकार पड़वजा-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का बाजा। उ०-तुरक इस साल बी० ए० हो जायें। सुजायतखान री, सात करों सूवात । दाखै लिखै दुरग्ग न, मुहा०-क्या पढी है क्या प्रयोजन है। क्या मतलब है। पडवज सम प्रभात ।-रा० रू०, पृ० २४४ । जैसे,—तुमको क्या पडी है जो तुम उसके लिये इतना कष्ट पड़वा'-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० प्रतिपदा, प्रा० पढ़िवा ] प्रत्येक पक्ष की उठाते हो । उ०—परी कहा तोहिं प्यारि पाप अपने जरि प्रथम तिथि। जाही ।—सूर (शब्द०)। पड़वा-सञ्ज्ञा पु० [हिं०] दे० 'पंडवा'। विशेप-यह क्रिया अनेक क्रियाको विशेपत अकर्मक क्रियाओं से सयुक्त होती है। यह जव धातुरूप के साथ संयुक्त होती पड़वा-सज्ञा पु० [देश॰] घाट पर रहनेवाली वह नाव जो यात्रियो को पार ले जाती है । घटहा । (लश०)। है तब मुस्य किया के व्यापार में पाकस्मिकता या सयोग सूचित करती है, जैसे, कह पडना, दे पहना, आ पडना, जा पड़वाना-क्रि० स० [हिं० पडना ] गिरवाना। पड़ने का काम पडना प्रादि । और जव घातुरूप के बदले पूरी क्रिया ही से दूसरे से कराना। सयुक्त होती है तब उसके करने मे कर्ता की वाध्यता, विवशता पड़वी-सञ्ज्ञा स्त्री० [देश॰] एक प्रकार की ईख जो वैशाख या जेठ मे वोई जाती है। या परतत्रता प्रकट करती है, जैसे, कहना पडा, देखना पडा, सहना पडा, पाना पडा, जाना पडा इत्यादि । इसके अतिरिक्त पड़सादा-सज्ञा पुं० [सं० प्रतिशब्द, प्रा० पढिसह, पडिसाद ] प्रति- कभी कभी किसी शब्द के साथ लगकर यह क्रिया कुछ शब्द । प्रतिध्वनि । उ०—(क) मारू तोइण करणमण इ साल्ह विणेप अर्थ देने लगती है। जैसे,—(क) कुछ रुपया तुम्हारे कुमर बहु साद । दासी तद दीवाधरी सामलिया ण्डसाद।- नाम पड़ा है। (ख) कई दिन से तुम उनके पीछे पडे हो । ढोला०, दू० ६०५ । (ख) वांगा विदल वरावर वादे विड (ग) सरदी के मारे गले पड़ गए हैं। (घ) अव तो यह गाजियी गयण पडसादे ।-रा० रू०, पृ०२५३ । किताव हमारे गले पडी है, आदि। ऐसी दशा मे यह महाविर पडहा-सशा पु० [सं० पटह] दे॰ 'पटह' । उ०—(क) सामही का रूप धारण कर लेती है। ऐसे अर्थों के लिये मुख्य शब्द चाली छइ पारती। वाजइ पडह पखावज भेर ।-बी० अथवा सज्ञाएँ देखो। जिस प्रकार व्यापार के घटित होने रासो, पृ० ६४ । (ख) सज्जण चाल्या हे सखी, पडहउ के लगभग या सदृश व्यापार सूचित करने के लिये क्रिया का वाज्यउ द्रग।-ढोला० दू० ३५१ । रूप भूतकालिक करके तव उसके साथ 'जाना' लगाते हैं पड़ा-सशा पुं० [देश॰] दे॰ 'पडवा' । 1