पतवा २७८८ पवाक परिचय । पतवा-सचा पु० [हिं० पत्ता+वा ( प्रत्य०)] एक प्रकार का सकें। किसी का अथवा किसी के स्थान का नाम और स्थिति मचान, जिसपर बैठकर शिकार खेलते हैं। परिचय जैसे,—(क) आप अपने मकान का पता बतायें विशेष-यह लकडी का बनाया जाता है और चार हाथ ऊँचा तव तो कोई वहाँ आवे। (स) प्रापका वर्तमान पता तथा उतना ही चौडा होता है । लवा इतना होता है कि क्या है। श्रादमी रहकर निशाना मार सकें। चारो ओर पतली पतली क्रि०प्र०-जानना ।-देना ।-बताना ।-पूछना। लकडियों की टट्टियाँ लगी रहती हैं जिनमे निशाना मारने के यौ०-पता ठिकाना = किसी वस्तु का स्थान और उसका लिये एक एक वित्ता ऊँचे और चौडे सूराख बने रहते हैं । टट्टियो के ऊपर हरी हरी पत्तियो समेत टहनियाँ रख दी २ चिट्ठी की पीठ पर लिखा हुआ यह लेख जिससे वह अभीष्ट जाती हैं जिसमें बाघ आदि शिकारियो को न देख सकें। स्थान को पहुँच जाती है। चिट्ठी की पीठ पर लिसी हुई क्रि० प्र०-बाँधना। पते की इबारत । पतवार-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० पत्रवाल, पात्रपाल, प्रा० पात्तपाठ ] नाव क्रि० प्र०-लिसना । का एक विशेष और मुख्य अग जो पीछे की ओर होता है। ३ खोज । अनुसंधान । सुराग । टोह । जैसे,—पाठ रोज से इसी के द्वारा नाव मोडी या घुमाई जाती है। कन्हर । कर्ण उसका लडका गायव है, अभी तक कुछ भी पता नही चला। पतवाल । सुकान। क्रि०प्र०-चलना ।—देना ।-मिलना । —लगना।-लेना । विशेष-यह लकडी का और त्रिकोणाकार होता है। प्राय यो०-पता निशान = (१) सोज को सामग्री। वे बातें जिनसे आधा भाग इसका जल के नीचे रहता है और प्राधा किसी के सबंध मे कुछ जान सकें। जैसे,—अभी तक हमको जल के ऊपर । जो भाग जल के ऊपर रहता है उसमे अपनी किताव का कुछ भी पता निशान नहीं मिला । (२) एक चिपटा डढा जडा रहता है जिसपर एक मल्लाह बैठा अस्तित्वसूचक चिह । नामनिशान । जैसे,-अव इस इमारत रहता है। पतवार को घुमाने के लिये यह डहा मुठियो का पता निशान तक नहीं रह गया। का काम देता है। यह डडा जिस ओर घुमाया जाता है उसके विपरीत पोर नाव घूम जाती है। ४ अभिज्ञता । जानकारी । खवर। जैसे,-आप तो पाठ रोज पतवारी-सशा सी० [हिं० पाता, पत्ता ] ऊख का खेत । इलाहावाद रहकर पा रहे हैं, आपको मेरे मुकदमे का अवश्य पता होगा। पतवारी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० पतवार ] दे० 'पतवार'। क्रि-प्र०-चलना।—होना । पतवाल-सञ्ज्ञा सी० [हिं० पतवार ] दे० 'पतवार' । ५ गूढ तत्व । रहस्य । भेद । जैसे,—इस मामले का पता पाना पतवास-सज्ञा स्त्री॰ [ स० पतत् या पवत्री (= चिड़िया) + वास ] वडा कठिन है। पक्षियो का अड्डा । चिक्कस । क्रि० प्र०—देना ।-पाना। पक्षस-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ पक्षी। २ फतिंगा, टिड्डी आदि । मुहा०-पते की = भेद प्रकट करनेवाली वात। रहस्य खोलने- ३ चद्रमा। पतसर-सञ्चा पुं० [ स० शरपन्न ] सरपत । उ०-चारो ओर फैले वाली बात । रहस्य की कुजी। जैसे,-वह बहुत पते की पतसर के जगल । -भस्मावृत०, पृ० १०६ । कहता है। पते की बात = भेद प्रकट करनेवाली वात । पतसाई-मशा श्री० [फा० पादशाही ] वादशाह का अधिकार । रहस्य खोलनेवाला कथन । राज्य । उ०-कोटि करे वारे पतसाई।-राम० धर्म०, पता:--सज्ञा पुं॰ [ सं० पत्र ] दे० 'पत्ता'। उ०-(क) मजु वजुल पृ०१६९ की लता और नील निचुल के निकुज जिनके पता ऐसे सघन पतसाह-सञ्ज्ञा पु० [फा० पादशाह] सम्राट् । नृपति । उ०-इती जो सूर्य की किरनो को भी नहीं निकलने देते।-श्यामा०, जो न अव करूं तो न पतसाह कहाऊं। हरासो, पृ०६४ । पृ० ४१ । (ख) प्रानंदघन यजजीवन जेंवत हिलिमिलि ग्वार पतसाही-सज्ञा पुं० [हिं० पादशाही ] दे॰ 'पादशाही' । उ०- तोरि पतानि ढाक ।-घनानद, पृ० ४७३ । सरू थया मारग सगला ही। सोच दला मिटियो पतसाही । पताई-सज्ञा स्त्री० [ स०पन्न ] किसी वृक्ष या पौधे की वै पत्तियां -रा० रू०, पृ०२६२ । जो सूखकर झड गई हो । झडी हुई पत्तियो का ढेर । पतस्वाहा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं०] अग्नि । मुहा०-पताई लगाना = दहकाने के लिये आग में सूखी पत्तियाँ पता-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० प्रत्यय, प्रा० पत्तन ( = ख्याति ), या सं० झोकना। ( किसी के ) मुँह में पताई लगाना = ( किसी प्रत्यायक, प्रा० पत्ताश्रश्र>पताथ>हिं० पता] १ किसी का ) मुह फूकना। ( किसी के ) मुंह में आग लगाना । विशेष स्थान का ऐसा परिचय जिसके सहारे उस तक पहुंचा (स्त्रियो की गाली)। अथवा उसकी स्थिति जानी जा सके। किसी वस्तु या व्यक्ति पताक-मुशा मी० [सं० पताक ] दे० 'पताका'। उ०-नीच न के स्थान का ज्ञान करानेवाली वस्तु, नाम या लक्षण प्रादि । सोहत मच पर महि मैं सोहत घो। काक न सोह पताक किसी का स्थान सूचित करनेवाली वात जिससे उसको पा पै सजे हस सर तीर !-दीन ग्र०, पृ० ७६ ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/७९
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