पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/८१

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पतारी २७६० पतिघातिनी पवारी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० पत्रावती] लताकुज । पत्रावली। उ०- जो अनेक स्त्रियो का समान प्रीतिपात्र हो। 'घृष्ट' वह है जो तैसी झुकी रही लतारी । तैसे सोभित नवल पतारी। तामै तिरस्कार और अपमान सहकर भी अपना काम बनाता है, अटकि रहै सारी। तेहि पाप छुडावत प्यारी।-भारतेंदु जिसके लज्जा और मान नहीं होता । 'शठ' वह कहलाता ग्र०, भा०२, पृ० १२४ । है जो छल कपट में निपुण हो, जो वचनचातुरी से या पताल-सज्ञा पुं० [ म० पाताल ] दे० 'पाताल'। उ०-ल्यावै पासमान झूठ बोलकर अपना काम निकाले। इनके अतिरिक्त तं पताल त पकरि, पारावार ते कढ़ावै थाह लेत न थकत किसी-किसी प्राचार्य ने 'अनभिज्ञ' नाम से पति का पांचवां भेद है।-हम्मीर०, १० ११ । भी माना है । यह हाव भाव प्रादि शृगार चेप्टानो का अर्थ समझने में असमर्थ होता है। पताल आँवला-सञ्ज्ञा पुं० [स० पातालग्रामलकी अथवा भूम्यामल- की ] प्रौषघ के काम में आनेवाला एक पौधा ( क्षुप )। ३ पाशुपत दर्शन के अनुसार सृष्टि, स्थिति और संहार का वह कारण जिसमे निरतिशय, ज्ञानशक्ति और क्रियाशक्ति हो विशेष--यह बहुत बडा नहीं होता। पत्ते के नीचे पतली डडी निकलती है। इसी मे फल लगते हैं। वैद्यक के अनुसार यह और ऐश्वर्य से जिसका नित्य सवध हो। शिव या ईश्वर । ४ मर्यादा । प्रतिष्ठा । लज्जा । इज्जत । साख । द० 'पत'। कड़वा, कला, मधुर, शीतल, वातकारक, प्यास, खांसी, उ०-( क ) अब पति राखि लेहु भगवान । - सूर (शब्द०) रक्तपित्त, कफ, पाहुरोग, क्षत और विष का नाशक तथा पुत्र- (स) तुम पति राखी प्रहाद दीन दुख टोरा ।-गणेश प्रसाद प्रदायक है। (शब्द॰) । ५ मूल । जड। ६ गति । गमन (को०)। पा.- भूम्यामलकी । शिवा । ताली । क्षेत्रामली। तामलकी । पति'- सशा पी० [म० प्रतिष्ठा ] ८० 'पत'। सूक्ष्मफला। अफला। श्रमला । वहुपुत्रिका। वहुवीर्या । भूधात्री, श्रादि। यौ०-पतिपानी= दे० 'पतपानी' । उ०-सुमिरौं मैहर के भवानी हूँ पतिपानी राखऽ मोर !--प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० ४०१ । पतालकुम्हड़ा-प्रज्ञा पुं० [हिं० पताल + कुम्हढा ] एक प्रकार का जगली पौधा जिसकी बेल शकरकद की लता की तरह पतिश्रा-मझा भी० [ स० पन्निका ] पत्र । चिट्ठी । उ०--के पतिप्रा जमीन पर फैलती है और शकरकद ही की तरह जिसकी गांठों लए जाएत रे मोरा पियतम पाम ।--विद्यापति, पृ० ३६५ । से कद फूटते हैं। कदो का परिमाण एक सा नहीं होता, पतिआना-क्रि० स० [म० प्रत्यय, प्रा० पत्तय + हिं० पाना कोई छोटा और कोई बहुत बड़ा होता है । यह दवा के काम (प्रत्य॰)] विश्वास करना । सच मानना । प्रतीत करना। में पाता है। एतबार करना । मानना। पतालदती-मज्ञा पुं० [म० पातालदन्ती] वह हाथी जिसका दाँत नीचे पतिआर-सज्ञा पुं० [हिं० पतियाना ] पतिभाने का भाव । की ओर झुका हो। वह हाथी जिसके दांत का झुकाव भूमि विश्वास । खास । एतबार । मातवरी । की ओर हो । ऐसा हाथी ऐबी समझा जाता है। पतिधार-वि० दे० 'पतियार'। पतावर-यचा पुं० [हिं० पत्ता] पेड के सूखे हुए पत्ते । पतिक-सज्ञा पुं० [सं० प्रतिक ] कापण नाम का एक प्राचीन पतासी-सञ्ज्ञा स्त्री० [देश॰] वढ़इयों का एक औजार । छोटी सिक्का। रुखानी। पतिकामा-सा स्त्री० [म०] पति की अभिलापा करनेवाली पतिंग-सज्ञा पु० [स० पतग ] पतग । फतिंगा। भुनगा। उ०-- (स्त्री) । पतिप्राप्ति की इच्छा रखनेवाली (स्सी)। इहाँ देवता अस गए हारी। तुम पतिंग को अही भिखारी। पतिखेचर-सज्ञा पु० [सं०] शिव । महादेव [को॰] । जायसी (शब्द०)। पतिग-सज्ञा ॰ [ सं० पातक ] पाप । कल्मष । उ०-गगा गया पतिवरा--वि० [स० पतिम्वरा] १ (स्त्री) जो अपना पति स्वय छ तीरथ योग, वाणारसी तिहां परसजे, तिणि दरसण जाई चुने । स्वेच्छा से पति का वरण करनेवाली (स्वयवरा) । २ पतिग न्हासि । बी० रासो, पृ० ३५ । काला जीरा । कृष्णजीरक । पतिघातिनी-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ पति की हत्या करनेवाली पति'-मज्ञा पुं० [म०] [स्त्री पत्नी ] १ किसी वस्तु का मालिक । स्त्री । पति को मार डालनेवाली स्त्री। २ वह स्त्री, स्वामी । अधिपति । प्रभु । जैसे, भूमिपति, गृहपति प्रादि । २ जिसका ज्योतिप या सामुद्रिक के अनुसार विधवा हो जाना स्त्री विशेष का विवाहित पुरुष । किसी स्त्री के सवध में वह सभव हो । वैधव्य योग अथवा लक्षणवाली स्ली। पुरुष जिसका उस स्त्री से ब्याह हुआ हो। पाणिग्राहक । विशेष-कर्कट लग्न अथवा कर्कटस्थ चद्रमा मे मगल के तीसवें भर्ता । कात । दूल्हा । शौहर । खाविंद । अश में जन्म ग्रहण करनेवाली, जिसकी हथेली पर अंगूठे के विशेष-साहित्य मे पति या नायक चार प्रकार के होते हैं- निचले भाग से छिगुनी के निचले भाग तक सीधी रेखा हो, अनुक्ल, दक्षिण, घृष्ट और शठ । 'अनुकूल' वह पति है जो एक जिसकी आँखें लाल हो अथवा जिसकी नाक के सिरे पर ही स्त्री पर पूर्णरूप से अनुरक्त हो और दूसरी की पाकाक्षा तक काला मसा हो, जिसकी छाती अधिक उभरी या फैली हुई न रखता हो । 'दक्षिण' वह है जिसके प्रणय का प्राधार अनेक हो, जिसके ऊपर के अोठ पर रोएं हो-ऐसी सव स्त्रियाँ स्त्रियाँ हो, पर जिसकी उन सवपर समान प्रीति हो अथवा पतिघातिनी कही गई हैं।