पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/८२

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पतिन २७६१ पतियाना ३ वैधव्यसूचक एक विशेष हस्तरेखा। स्त्री की हथेली पर वह पतितव्य-वि० [स०] पतन के योग्य । गिरनेवाला । रेखा जो अंगूठे की जड से छिगुनी की जड तक होती है। पतितसावित्रीक-वि० [स०] जिसका उपनयन सस्कार न हुआ सिघ्न-वि० [ स० ] वैधव्यसूचक लक्षण का योग । हो या विधिपूर्वक न हुआ हो । सावित्रीभ्रष्ट (क्षत्रियादि)। तिघ्नी-तज्ञा स्त्री॰ [ स०] पतिध्न योग या लक्षणवाली स्त्री। पतितसावित्रीकर--सञ्ज्ञा पु० प्रथम तीन प्रकार के व्रात्यो में से एक । तिजिया।-सज्ञा स्त्री॰ [ स० पुघजीवा ] जीयापोता नामक वृक्ष । पतित्व-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] १ स्वामी, प्रभु या मालिक होने का पतित-वि० [ स०] १ गिरा हुआ। ऊपर से नीचे आया हुआ । भाव । स्वामित्व । प्रभुत्व । २ पाणिग्राहक या पति होने २ प्राचार, नीति या धर्म से गिरा हुआ। आचारच्युत । का भाव । पाणिग्राहकता । वरत्व । नीतिभ्रष्ट या धर्मत्यागी। २. महापापी। अतिपातकी । पतिदेव-वि० स्त्री० [सं० पतिदेवा ] दे० 'पतिदेवता' । उ० तेरे नरकदायक पाप का कर्ता । ४ जाति से निकाला हुआ। सुसील सुभाव भद्द, कुल नारिन को कुलकानि सिखाई । तेही समाज द्वारा बहिष्कृत । जातिच्युत। जाति या समाज जनो पतिदेवत के गुन गौरि सबै गुनगौरि पढाई ।-मति० से खारिज। ग्र०, पृ० २७५। विशेष-हिंदू धर्मशास्त्रो के अनुसार प्रापद्काल न होने पर पतिदेवता-वि० [सं०] जिस (स्त्री) के लिये केवल पति ही भी स्वधर्म के नियमो का उल्लघन करनेवाला पतित होता देवता हो। जिस (स्त्री) का पाराध्य या उपास्य एक- है।' आग लगानेवाला, विष देनेवाला, दूसरे का अपकार मात्र पति हो। पतिव्रता । उ०-पतिदेवता सुतीय महूँ मातु करने की नीयत से फांसी लगाकर, डूबकर या जलकर मर प्रथम तव रेख । —तुलसी (शब्द०)। जानेवाला, ब्रह्महत्याकारी, सुरा पान करनेवाला, गुरुपत्नी- पतिदेवा-सज्ञा स्त्री० [ स० ] दे० 'पतिदेवता' । गामी, नास्तिक, चोर, मद्यप, चाडाल स्त्री मे मैयुन करने पतिधर्म-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १. पति का धर्म। स्वामी का कर्तव्य । अथवा चाडाल का दान लेने या अन्न खानेवाला ब्राह्मण २ पति के प्रति स्त्री का धर्म। पति के सवध मे पत्नी तथा किसी अन्य महा या अतिपातक का कर्ता पतित के कर्तव्य । माना जाता है। शुद्धितत्व के अनुसार पतित का दाह, प्रत्येष्टिक्रिया, अस्थिसंचय, श्राद्ध यहाँ तक कि उसके पतिधर्मवती-वि० [स०] पतिसवधी कर्तव्यो का भक्तिपूर्वक पालन करनेवाली (स्त्री)। पति की भनी भांति सेवा लिये असू बहाना तक अकर्तव्य है। पतित का ससर्ग, शुश्रूषादि करनेवाली ( स्त्री ) । पतिव्रता । उसके साथ भोजन, शयन या बातचीत करनेवाला भी पतित होता है। पर पतितससर्ग के कारण पतित व्यक्ति का पतिध्रुक-वि० [ स० ] पति को न चाहनेवाली ( स्त्री ) । श्राद्ध, तर्पण आदि निषिद्ध नही है। माता के अतिरिक्त पतिनी-सञ्चा श्री० [ सं० पत्नी ] रे० 'पत्नी' । उ० --पट कुचैल, अन्य सव व्यक्ति पतित दशा मे त्याज्य हैं । गर्भधारण दुरवल द्विज देखत, ता के तदुल खाए हो। सपति दै वाकी और पोषण के कारण माता किसी दशा मे त्याज्य नहीं पतिनी कौं मन अभिलाष पुराए हो।-सूर०, ११७ । है । प्रायश्चित्त करने से पतित व्यक्ति की शुद्धि होती है । पतिप्राण-सज्ञा स्त्री० [सं०] पतिव्रता स्त्री। ५ अत्यत मलीन । महा अपावन । ६ युद्धादि मे पराजित या पतिबरता-वि० [सं० पतिव्रता ] दे० 'प्रतिव्रता' । उ०-सव समर्थ हारा हुमा (को०) । ७ अति नीच । अधम । पतिवरता नारी इन सम और न पान ।-भारतेंदु ग्र०, यौ०-पतितउधारन । पतितपावन । भा०१, पृ०६७६ । पतितउधारन-वि० [म० पतित + हिं० उधारना (नं० उद्धरण)] पतिव्रत-सञ्ज्ञा पु० [ स० पतिव्रत ] दे० 'पतिव्रत'। उ.-रानी जो पतित का उद्धार करे । पतितो को गति देनेवाला । रमा को विसारि पातिव्रत दै मन गोपी सनेह विसाहो।- पतितउधारन-सज्ञा पुं० १ ईश्वर । २ सगुण ईश्वर । पतित प्रेमघन०, भा० १, पृ० १६६ । जनो के उद्धार के लिये अवतार लेनेवाला ईश्वर । पतिभक्ति-वि० स्त्री० [ स०] पति की सेवा करना। पतितता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] १ पतित होने का भाव । जाति या पतिभरता-वि० स्त्री० [स० पतिव्रता] दे० 'पतिव्रता' । उ०-हम धर्म से च्युत होने का भाव । २ अपवित्रता। ३ अधमता । पतिभरता पुरुष बिन, कौन दिसा चित को धरै।-ह. रासो, पृ० १२०। पतितत्व-सञ्ज्ञा पुं० [ स० पतितत्त्व ] पतित होने का भाव । पतिमती-वि० सी० [सं०] सधवा । पतिवती [को०] । पतितपावन'- वि० [स०] [वि॰ स्त्री० पतितपावनी ] पतित को पतिया-सज्ञा स्त्री० [स० पत्रिका ] पत्री। चिट्ठी। उ०—रानी पवित्र करनेवाला । पतित को शुद्ध करनेवाला। पतिया पठाय, जीव जनि मारिया ।-घरम०, पृ०४ । पतितपावन-सञ्ज्ञा पु० १ ईश्वर । २ सगुण ईश्वर । पतियान-वि० [म.] पति का पदानुसरण करनेवाली। पति पतितवृत्त-वि० [ स० ] पतित दशा मे रहनेवाला। जातिच्युत हो- की अनुगामिनी। कर जीवन वितानेवाला। पतियाना-क्रि० स० [स० प्रत्यय +हिं० थाना (प्रत्य॰)] नीचता।