पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१०८

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बैंगनी धगरूरा 50- ठीक रास्ते से हटाना। ४. भुलाना। भटकाना । रसनिधि (शब्द॰) । (ख) भोर उठि नित्य प्रति मोंसों पाप के मोटरी बाम्हन भाई। इन सबही जग को बगदाई । करत है झगरो। ग्वाल बाल संग लिए सब घेरि रहै -पलटू, भा० ३, पृ० ११ ॥ बगरो। —सूर (शब्द॰)। ६. पशुसमूह । पशुप्रो बगना@+-•ि म० [सं० वक् (= गति) ] घूमना फिरना । का झुड। उ०-नद रु यशोदा के लड़ाइते कुंभर हिय, हेरे ग्वार गोरिन वगर-संज्ञा स्त्री० [हिं०] 'वगल' । उ०-तसवा की सरिया में के खोरिन बगे रहैं। चैन न परत देव देखे विनु वैन सुने सोने के किनरिया उजरिया करत मुख जोति । पगर बगर मिलत बने न तव नैन उमगे रहैं। -देव (शब्द॰) । जरतरवा लगल बाड़े जगर मगर दुति होति ।-बिरहा घगनी'-संञ्चा स्त्री॰ [ देशज ] एक प्रकार की घास जिसे कहीं फहीं (शब्द०)। लोग भांग के साथ पीते हैं। इससे उसका नशा बहुत बढ़ बगरनाg+-क्रि० प्र० [स० विकिरण ] १. फैलना । बिखरना । जाता है। दे० 'बगई'। उ० -(क) बगनी भंगा खाइ कर छितराना । उ०-(क) तनपोषक नारि नरा सिगरे । मतवाले माजी ।-दादू ( शब्द०)। (ख) जी भांग भुजाना परनिंदक ते जग मो बगरे । —तुलसी (शब्द०)। (ख) घगनी छाना भए दिवाना सैताना । -सुंदर० प्र०, मा० १, रीझे श्याम नागरी रूप । तैसी ये लट बगरी ऊपर सवत नीर पृ० २३७। अनूप । -सूर (शब्द॰) । (ग) वीथिन मे, व्रज में, नवेलिन में, वेलिन में, वनन में बागन में बगरो बमत है। बगनी-मज्ञा ली० [सं० वर्धन, बर्धनी, हिं० मधना] दे० 'बधना"। उ०-दोड़ सीताब बगनी भरि लाव । -बी० रासो, -पद्माकर (शब्द०)। २. घूमना फिरना । परिभ्रमण करना । उ०-कबीर देश देश हम बगरिया ग्राम ग्राम सब पृ०१७॥ खौर।-कबीर मं०, पृ० ३२४ । बगमेल' संज्ञा पुं० [हिं० बाग + मेल ] १. दूसरे के घोड़े के साथ बाग मिलाकर चलना। पांत बांधकर चलना । वराबर बगरा-संज्ञा पुं० [ देश ] एक प्रकार की मछली जो संयुक प्रांत और बंगाल में होती है। घराबर चलना । उ०—जो गज मेलि होद सँग लागे । तो बगमेल करहु सँग लागे ।-जायसी (शब्द०) । २. बरावरी। विशेष-यह छह सात बंगुल लंबी होती है और जमीन पर समानता । तुलना । उ०-भूधर भनत ताकी बास पाय उछलती या उड़ान भरती है। यह खाने में स्वादिष्ट होती सोर करि कुत्ता कोतवाल को बगानो बगमेला में |-भूधर है । इसे शुमा भी कहते हैं। (शब्द०)। बगराना -कि० सं० [हिं० बगरना का सक० रूप ] फैनाना । बगमेकर-क्रि० वि० पक्तिवद्ध । बाग मिलाए हुए । साथ साथ । छितराना । छिटकाना । उ.-(क) ते दिन विसरि गए ह्या उ०-(क) प्राइ गए वगमेल धरहु घरह घावत सुभट । माए । प्रति उन्मच मोह मद छाए फिरत फेश बगराए ।- तुलसी-(शब्द०)। (ख) हरखि परस्पर मिलन,हित फछुक सूर (शब्द०)। (ख) जानिए न पाली यह छोहरा चले बगमेल । जनु आनंद समुद्र दुइ मिलत विहाइ सुबेल ।- जसोमति को बासुरी वजाइगो कि बिष वगराइगो।- तुलसी (शब्द०)। रसखानि (शब्द०)। (ग) सजनी इहि गोकूल में विष सो बगरायो हैनंद के सावरियाँ ।-रसखान (शब्द०)। बगर -संज्ञा पुं० [सं० प्रघण, पा पघण ] १. महल । प्रासाद । बगराना-क्रि० अ० बगरना । फैलना । विखरना । उ०-कहां २. बड़ा मकान । घर । उ०—(क) पास पास वा बगर के जहें बिहरत पशु छद । ब्रज बड़े गोप परजन्य सुत नीके श्री लौ बरनौ सुदरताई । अति सुदेश मृदु हरत चिकुर मन मोहन नव नंद ।-नाभा (पशब्द०)। (ख) गोपिन के अंसुवन भरी मुख बगराई । —सूर (शब्द०)। सदा उसोस अपार । डगर डगर नै ह रही वगर वगर के बगरिया-संज्ञा स्त्री॰ [ देशज ] एक प्रकार की कपास जो कच्छ बार ।-बिहारी (शब्द०)। ३. घर । कोठरी। उ.- पौर काठियावाड़ में पैदा होती है। (क) टटकी घोई धोवती, चटकीली मुख जोति । फिरवि बगरो'-संज्ञा पुं० [हिं० पगरना ] एक प्रकार का धान जो भादों रसोई के बगर जगर मगर दुति होति ।-बिहारी (शब्द॰) । के अंत में पकता है। (ख) जगर जगर दुति दूनी केलि मंदिर में, बगर बगर धूप विशेष—यह काले रंग का होता है। इसका चावल लाल और मगर वगारे तू । -पद्माकर (शब्द०)। ४. द्वार के सामने मोटा होता है। इसे तैयार करने में विशेष परिश्रम नहीं का सहन । प्रांगन | उ०-(क) नंद महर के बगर तन पव करना होता, केवल बीज बिखेरकर छोड़ दिए जाते हैं। मेरे को जाय । नाहक कहुँ गड़ि जायगो हित कॉटो मन पाय ।- रसखान (शब्द॰) । (ख) राम डर रावन के बगरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बगर ] बखरी । घर । मकान । उ०- मगर अगर घर बगर नगर पाजु कथा भाजि जानकी ।- घाट बाठ सब देखत प्रावत युवती डरन मरति हैं सिगरी । हनुमान (शब्द०)। ५. वह स्थान जहां गाएं बांधी जाती सूर श्याम तेहि गारी दोनो जो कोई प्राव तुमरी बगरी।- हैं। घगार । घाटी। उ०—(क) नगर बसे नगरे लगे सुनिए सूर (शब्द०)। मागर नारि । पगरे रगरे सुमन के डारे बगर बहारि । बगरूरा-संवा पुं० [सं० वातघूणं, वायुपूर्ण, हिं० बघूरा, अयवा हिं०