पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१०९

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बगल ३३४८ धगली या+गोला ] चदंबर। यगृला । उ-चित्र की सी पुत्रिका (क) बगली नीर विटारिया सायर घटा कलंक । प्रौर पसेरू रे मारे महि, चंबर घनाद लई कामिनी के काम की। पीबिया हम न वोरे चच । -कबीर (शब्द॰) । (ख) -मेर (१८८०)। बद्दलनि बुनद चिलोको बगलान वाग बंगलान लिन बहार वगल- मो. [पा०] १ वाहमूल के नीचे की पोर फा गट्टा । बरसा की है।-पद्माकर (शब्द० मान। ३०-उसके प्रस्तबल का दगेगा एक हबशी गुलाम विशेष-इस पक्षी वी टांगें, चोंच और गला लंबा और पूँछ पा। वही समयो बगल में हाप देकर पोहे पर सवार कराता नाम मात्र को, बहुत छोटी होती है। इसके गले पर के पर पा:-जियप्रमाद (नन्द०)। प्रत्यंत कोमल होते हैं और किसी क्सिी के सिर पर चोटी यो०-गलगंध भी होती है। यह पक्षो मुह मे या प्रलग अलग दिन भर २छाती के दोनोमिनागे का भाग जो बाद गिरने पर उसके पानी के किनारे मछली, केकड़े प्रादि पकड़ने की ताक में खडा नीचे पढ़ता है। पार्व । ३०-जोकन बीस दिनऽ घावपि, रहता है । इसकी कई जातियां होती हैं। जिनके वणं पौर बगल , गेटी दिवस गमावयि।-कीति०, पृ०६०। प्राकार भिन्न भिन्न होते हैं ।-(क) अंजन नारी वा सेन यी-गलबंदी। जिसका रंग नीलापन लिए होता है । (ख) बगली, सोच वगला वा गड़हबगलिया जो छोटी और मटमैले रग की मुद्दा०-घगल गरम करना= सहवास करना। प्रसंग करना । होती है और धान के खेतो, तालों और गड़हियो आदि में पगन में दबाना = (१) विसी घीज को बाहु के नीचे छाती रहती है । (ग) गैबगला वा सुरखिया बगला जो डंगरों के के किनारे सना या लेना । (२) धासा देकर वा बलात् झंड के साथ तालो में रहता है और उनके कार के छोटे किसी वस्तु को अपने अधिकार में लाना । अधिकार करना । छोटे कीड़ो को खाता है। (घ) राजबगला जो तालो पौर ले लेना । उ०-लैगे अनूप रूप संपति बगल दाथि उचिके झीलो मे रहता है और जिसका रंग प्रत्यत उज्वल होता प्रचान कुन फंदन पहार से ।-देव (शब्द०)। बगल में है। यह बड़ा भी होता है और इस जाति के तीन वर्ष से धरना = (१) बगल में छिपाना । बगल मे दयाना । उ०- प्राधिक अवस्था के पक्षियो के सिर पर चोटी होती है । बगलो दूदै सुहावनी से लागत मत भोजे तेरी चूनरी। मोहिं दे का शिकार प्रायः उनके कोमल परो के लिये किया जाता है। उतारि पर रासों बगल मे तू न री।-हरिदास (शब्द०)। वैद्यक में इसका मास, मधुर, स्निग्ध, गुरु मौर अग्निप्रकोपक (२) अधिकार में लाना । छीन लेना । घगले बजाना = बहुत तथा श्लेष्मवर्धक माना गया है । प्रसन्नता प्रकट करना । गूब खुशी मनाना । मुहा०-बगला भगत = (१) धर्मध्वजी। वंचक भगत । (२) ३. सामने और पीछे को छोड़कर इधर उधर का भाग । किनारे कपटी। घोखेवाज। पा हिस्सा। वगला-संशा पु० [हिं० बगल ] थाली की बाढ़ । अवठ । मुहा०-यगले झांकना = इधर उधर भागने का यत्न करना। वगला3-संज्ञा पुं० [ देश०] एक झाड़ीदार पौधा जो गमलों में बचाव का रास्ता हूँढना। ३०-घोड़ी देर में उनका दम शोभा के लिये लगाया जाता है। टूट गया थय प्राजाद वगले भागने लगे ।---फिसाना०, मा०३, पृ० १३७॥ बगला-संज्ञा सी० [ स०] एक देवी । दे० 'वगलामुसी' । ४. कापरे का यह टुरमा जो अंगरसे या कुरते प्रादि की मातीन बगलामुखी -संज्ञा पु० [स०] तात्रिकों के अनुसार एक देवी जिसकी में बंधे थे जोड़ के नीचे लगाया जाता है। यह टुकडा प्रायः पाराधना करने से प्राराधक अपने विरोधी की वाशक्ति को तीन चार अगुल का पौर तिकोना या चौकोना होता है। स्थगित, स्तंभित या बंद कर सकता है। ५. समोप का स्थान । पास की जगह । जैसे,—सड़क की गलियाना-क्रि० प्र० [हि० बगल + इयाना (प्रत्य॰)] चगन मे ही वह नया मान बना है। वगल से होकर जाना। राह काटकर निकालना । अलग हट पगलग-० [हि. यगत +गंध] १. वह फोड़ा जो घगल कर चलना या निकलना। में होता है। पवनार । २. एक प्रकार का रोग जिसमें बगलियाना'-क्रि० स० १. अलग करना । पृथक् निकालना । २. गत से बहन बदबूदार पगीना निरसता है। में लाना या करना। बगलगीर-० [I] १. पाववती। सहचरी । २. प्रेमपात्र । वगली'-वि० [हिं० यगल + ई (प्रत्य॰)] वगल से संबंध प्रमिता रखनेवाला । वगल का। फि• प्र०-हाना-नाना।-होना। मुहा० - यगली घूसा = वह चूंसा जो बगल में होफर मारा यगलबंदो-- [fi० गलपा० बंद ] एक प्रकार की जाय । वह वार जो बाद में छिपकर या घोशे से किया जाय । मिगिन के नीने लग है। वगली २-संवा स्त्री० १. केंटों का एक दोष जिसमें चलते समय गला - t० [.. ६, प्रा० पग + ला (प्रत्य॰)] उनकी जांघ की रग पेट में लगती है। २. मुगदर हिलाने [ ] | फिर रंग वा एक प्रसिद्ध पक्षी । उ०- का एक ढंग। बगल