सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/११६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

इसके रेशे से बुरुश बजबजाना -क्रि० प्र० [अनु.] किसी तरल पदार्थ का सही बजरबोंग-संज्ञा पुं० [हिं० वज्र+बोंग (अनु०)] १. एक प्रकार धेजना ३३५५ बजरिया बजे। तदपि अघम विचरत तेहि मारग कबहुं न मूढ़ लजै । वजरg+-संज्ञा पुं० [सं० बज्र, हिं० धज्र] दे० 'वज्र'। उ०—(क) —तुलसी (शब्द॰) । ३. शस्त्रों का चलना । जैसे, लाठी गोट गोट सखी सब गेलि बहराय । बजर किवाद पर देलन्हि बजना, तलवार बजना। ४. अड़ना। हठ करना । जिद लगाय । -विद्यापति०, पृ० २०४। (ख) अजर अमर करना । उ०—(क) प्रीति करी तुमसों वजि के सुविसारि पणभंग व जर प्रायुध बजरंगी।-रघु० रू०, पृ० ३ । करी तुम प्रीति घने की।-पद्माकर (शब्द॰) । (ख) घरी बजरबट्ट-मज्ञा पुं० [हिं० बज्र + पहा ] एक वृक्ष के फल का बजी घरियार सुनि, बजि के कहत वजाइ बहुरि न पैहै यह दाना वा बीज जो काले रंग का होता है पौर जिसकी माला घरी, हरि चरनन चित लाह। -रसनिधि (शब्द०)। ५. लोग बच्चो को नजर से बवाने के लिये पहनाते है । उ०- प्रख्याति पाना। प्रसिद्ध होना । कहलाना। उ०-गुन प्रभुता माजूफल शंख रुद्र प्रक्ष त्यो बजरबटू. तुलसी की गुलिका पदवी जहां तहां बने सब कार । मिलै न कछु फल आक ते बजे सुधारे छबि छाजे हैं। -रघुराज (शब्द०)। नाम मंदार ।-दीनदयाल (शब्द०)। विशेष-इसका पेड़ ताड़ की जाति का है और मलावार में घजना-सञ्ज्ञा पुं० [स० वादन, वा हिं० बाजा] १. वह जो बजता समुद्र के किनारे तथा लका में उत्पन्न होता है । बगाल और हो । बजनेवाला बाजा । २. रुपया । (पलाल)। वरमा में भी इसे लोग बोते और लगाते हैं । इसकी पत्तियाँ बजना-वि० [हिं० बजाना ] बजनेवाला । जैसे, वजना बाजा। बहुत बड़ी और तीन साढ़े तीन हाप व्यास को होती है और बजनियाँ-संज्ञा पुं॰, स्त्री० [हिं० बजना+इया (प्रत्य० ) वाजा पखे, चटाई, छाते प्रादि बनाने के काम मे पाती हैं । योरप बजानेवाला। उ०-सेवक सकल बजनियाँ नाना। पूरन में इसकी नरम और कोमल पत्तियो से अनेक प्रकार के किए दान सनमाना ।-तुलसी (शब्द॰) । कटावदार फीते बनाए जाते है बनाए और जाल बुने जाते हैं। इसकी रस्सियां भी वटी जा बजनिहाँ-संज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'बनियो । सकती हैं। इसके फल बहुत कड़े होते हैं पौर योरप में बजनी'-वि० [हिं० बजना ] वजनेवाला । जो वजता हो। उ०- उनसे बटन, माला के दाने और छोटे छोटे पात्र बनाए जाते घुघरू बजनी, रजनी उजियारी ।-(शब्द०)। हैं । मलावार मे इसके पेड़ो को लोग समुद्र के किनारे वागों बजनी-सज्ञा स्त्री० [हिं० बजना ] लड़ाई। झगडा । संघर्ष । मे लगाते हैं। यह पेड़ चालीस बयालीस वर्ष तक रहता है उ०-कहै सहेलिन सों हो सजनी। रजनी बीच करत दुख और अंत में पुराना होकर गिर पड़ता है। इसे नजरबट्टू बजनी।-इंद्रा०, पृ० १४७ । पौर नजरवटा भी कहते हैं। बजन-वि० [हिं० बजना ] बजनेवाला । जो बजता हो । का धान जो अगहन महीने में पककर तैयार होता है । इसका या गंदा होने के कारण वुलबुले छोड़ना । चावल बहुत दिनों तक रह सकता है । २. वास का मोटा बजमारा@+-वि० [हिं० बन + मारा ] [ी वजमारी] बज्र से और भारी डडा। मारा हुमा। जिसपर बन पड़ा हो। उ०—(क) दान लेहू बजरहड्डी-शा मो• [हिं० बज्र+हडी] घोड़े का एक देहु जान काहे को कान्ह देत हो गारी। जो कोक कहो करे रोग जो उसके पैरों की गांठो मे होता है। रोहठ याही मारग पावै बजमारी।-सूर (शब्द॰) । (ख) ये विशंप-इसमें पहले एक फोड़ा होता है जो पककर फूट जाता अलि इकंत पाइ पायन परे हैं प्राय हौं न तव हेरी या गुमान है और गांठ को हड्डी फूल पाती है। इससे घोड़ा बेकाम हो वजमारे सों। -पद्माकर (शब्द०)। (ग) जा बजमारे अब जाता है । यह रोग बड़ी कठिनाई से अच्छा होता है। मैं तो सों भूलि कळू नहि कहिहौं ।-अयोध्या० (शब्द०)। वजरा-संज्ञा पुं॰ [देश॰] १. एक प्रकार की बड़ी और पटी हुई नाव विशेष—इस शब्द का प्रयोग प्रायः स्त्रियाँ गाली या शाप के जिसमें नीचे की भोर एक छोटी कोठरी और एक बड़ा रूप में करती हैं। कमरा होता है और ऊपर खुली छत होती है। २. दे० बजरंग'-वि० [सं० बज्राङ्ग] बन के समान दृढ़ शरीरवाला। 'बाजरा' । उ०-सजि बुधुव पायक संग। रन मध्य मह बजरंग।-५० बजराग, बजरागो-संज्ञा स्त्री० [सं० वञ्चाग्नि ] दे० 'बजरागी'। रासो, पृ० १३४ । उ०-विरह बड़ी बजराग, जकि उर ऊपर परे।-नट०, बजरंग-संज्ञा पुं० हनुमान । पृ० १०४॥ बजरंगवती-संज्ञा पुं॰ [ सं० बज्वाङ्ग+बली ] हनुमान । महावीर। बजरागी-संज्ञा स्त्री० [सं० बचाग्नि] वज्र की अग्नि । विजली। बजरगी-वि० [स० वचाझिन्] बज्र की तरह शरीरवाला । उ०- उ०-पानी मांझ उठ बजरागी। कहाँ से लौकि वीजु मुई पवननंद परचंड प्वीत दारुण खल जगी। अगर ममर पणभंग लागी।-जायसी (शब्द०)। घजर मायुध बजरंगी।-रघु० ६०, पृ० ३ । बजरिया -मशा स्त्री० [हिं० बजार+इया (प्रत्य॰)] दे० 'बाजार'। बजरंगी बैठक-संज्ञा स्त्री० [हिं० पजरंग+बैठक ] एक प्रकार की उ०-मुसी है कुतवाल ज्ञान को, चहुँ दिस लगी बजरिया । बैठक कसरत। -कबोर.श., पृ०५५।