पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/११८

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घटना वैजारु, बजारू बजारु, वजारू-वि० [हिं० घजार+ऊ (प्रत्य॰)] दे० 'बाजारू' । बझाव-पंज्ञा पुं० [हिं घझाना ] १. बझने का भाव । फंसने की घजावनहार'-वि० [हिं० वजाना+हार (प्रत्य॰)] बजानेवाला । क्रिया या भाव । २. उलझाव । अटकाव । उ०-काट कुरोय बजवैया । उ०-यत्र वजावत हो सुना टूटि गए सब तार । लपेटनि लोटनि ठावहि ठाँव बझाव रे । जस जम चलिप दूरि यंत्र विचारा क्या करे गया वजावनहार |--कवीर (शब्द॰) । तस तस निज बास न भेट लगाव रे । —तुलसी (एग्द०) । वजुआ-संज्ञा पु० [हिं० ] दे० 'वाजू'। पझावट -सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० घमना+श्रावट (प्रत्य० ) ] १. बझने बजुज-अव्य० [फा० बजुज़ ] सिवा । अतिरिक्त । जैसे,-बजुज की क्रिया या भाव | २. उलझाव । घटकाव । आपके और कोई वहाँ न जा सकेगा। बझावनाg -क्रि० स० [हिं० ] दे० 'वझाना' । उ०-रूप प्रवाह बजुल्ला-सज्ञा पु० [फ़ा० वाजू+उल्ला (प्रत्य॰)] बाँह पर पहनने नदी तट खेलत मैन सिकारी रझाबत मीन है। -प्रवीन का बिजायठ नाम का प्राभूषण । (शब्द०)। वजूखा-सज्ञा पु० [हिं०] दे० 'विजूखा' । बट'-संज्ञा पु० [ स० वट ] १. दे० 'वट' (वृक्ष)। उ०—वट पीपर बज्जना-क्रि० अ० [हिं० ] दे० 'वजना'। पाकरी रसाला । —मानस, ७.५६ । २. बड़ा नाम का वज्जर+-सञ्ज्ञा पु० [हिं०] दे॰ 'वज्र'। उ०-तेहि बज्रागि पकवान । धरा। उ०-तिमि बतासफेनो वासोधी । जरे ही लागा। बज्जर अग जरत उठि भागा। -जायसी विविध वटी टट माडी प्रोधी ।-रघुराज (शब्द०)। (ख) ग्र०, पृ० २५६ । पायस चद्र किरन सम सोहै। चंद्राकार विविध बट जोहै । बज्जाता-वि॰ [फा० वदजात ] दुष्ट । बदमाश । पाजो। -रघुराज (शब्द०) । ३. गोला । गोल वस्तु । उ०-नट बज्जाती-सञ्ज्ञा सो० [फा० बदजाती] दुष्टता। बदमाशी। पाजीपन । बट तेरे दुगन को कौन सकत है पाय । -रसनिधि (शब्द॰) । ४. बट्टा । लोढ़िया । ५. बाट । बटखरा । ६. वखरा । बज्रगी-वि० [स० वज्रागिन् ] बज्र के समान अगवाला । उ०- हिस्सा । वाट। उदित अक दिसि पुन्ध पहुं जगे सेन दोइ जग। अश्व अप्प वल बड्डए बल बजगी अग।--पृ० रा०, २४ । १२४ । बट-संज्ञा ला. [सं० वर्त ] रस्सी की ऐठन । वटाई । बल । वज्र-संज्ञा पुं० [सं० वज्र] दे० 'वज्र' । बट--सशा पु० [ सं० वर्त्म, प्रा. वह, हिं० बाट ] मार्ग। रास्ता । बज्रागि-सज्ञा स्त्री० [सं० वज्राग्नि ] दे० 'बजरागि। उ०-परि उ०-छूटो घुघरारी लट, लूटी हैं वयूटी बट, टूटी चट लाज है बचागि ताकै कार अचानचक धूरि उड़ि जाइ कई तें न जूटी परी कहरै ।-दीनदयाल (शब्द०)। ठौहर न पाइहै ।-सुदर० प्र०, भा॰ २, पृ० ५०० । बटई -संज्ञा स्त्री॰ [ स० वत्तक ] बटेर नाम की चिड़िया । उ०- बनी-सशा पुं० [ वचिन् ] इंद्र। तीतर बटई लवा न वांची । सारस गूज पुछार जो नाची । वझना-क्रि० अ० [सं० बद्ध, प्रा० वज्म+हिं० ना (प्रत्य॰)] —जायसी (शब्द०)। १. बंधन में पड़ना । बंधना । उ०—जीव परयो या ख्याल मे बटखर-सशा पुं० [हिं ] दे० 'बटखरा' । अरु गए दसा दस । बझे जाय खगवृद ज्यो प्रिय छवि लटकनि घटखरा-सञ्ज्ञा पु० [स० वटक ] नियत गुरुत्व का पत्थर, लोहे आदि लस ।—सूर (शब्द०)। (ख) सुने नाना पुरान मिटत नहि का टुकड़ा जा वस्तुपों की तौल निश्चित करने के काम में अज्ञान पढ़ न समुझं जिमि खग कीर । वझत बिनहि पास माता है। बोलने का मान । बाट । जैसे, सेर भर का बटखरा । सेमर सुमन पास करत चरत तेऊ फल बिनु ही ।-तुलसी उ० -ज्ञान बटखरा चढ़ा के पूरा करु भाई । -कवीर० (शब्द०)। २. अटकना । उलझना। फंसना । जैसे, काम में पा०, भा० ३, मृ०६१ वझना। ३. हठ करना। टेक करना । उ.-उपरोहित घटन'-सञ्ज्ञा त्रा० [हिं० बटना ] रस्सी आदि बटने या ऐंठने की निमिवश को शतानंद मुनिराय । लियो नेग वझि राम सो, क्रिया या भाव । ऐठन । वल । बट । मम हिय बसो सदाय । -रघुराज (शब्द०)। बटन-सज्ञा पु० [सं०] १. चिपटे प्राकार की कड़ी गोल घुडी जो बमवट-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० बॉम+वट (प्रत्य०)] १. बोझ स्त्री। कुरते, कोट, अगे प्रादि मे टंकी रहती है पोर जिसे छेद मे २. गाय, भैस या कोई मादा पशु जो वाम हो। ३. मन्न डाल देने से खुली जगह बंद हो जाती है पोर कपड़ा बदन को के पौधो के डठल जिनसे बालें तोड़ ली गई हो। पूरी तरह ढंक लेता है । बुताम । २. एक प्रकार का बादखे बझाउg+-संज्ञा पु० [हिं० घमना ] दे० 'वझाव' । का तार । ३. विजली, मशीन, प्रादि का स्विच या घुटी। यझान-संज्ञा स्त्री० [हिं० बझना] बझने की क्रिया या भाव । बझाव । वटनरोज-सज्ञा पुं॰ [अं॰] गुलाब की जाति का एक छोटा फूल जो बझानाg -क्रि० स० [हिं० घझना का सकर्मक रूप ] वधन में कोट के बटन के प्राकार का होता है। उ०-बटनरोज वह लाना। उलझाना। फंसाना। उ०—(क) नाथ सो कौन लाल, ताम्र, माखनी रंग के कोमल :-प्राम्पा, पृ० ७६ । विनती कहि सुनावो। नाम लगि लाय लासा ललित वचन कहि व्याध ज्यो विषय विहंगन वझावों। -तुलसी (शब्द०)। बटना-क्रि० स० [ स० यट (बटना)] कई तंतुनो, तागो या (ख) जनु पति नील बलकिया सी लाय । यो मन वार तारों को एक साथ मिलाकर इस प्रकार एठना या घुमाना वधुप्रवा मीन वझाय । -रहीम (शब्द॰) । कि वे सब मिलकर एक हो जाय । ऐंटन देकर मिलाना । स०