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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१२५

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बड़ीमाता धना जिसमें वीज होते हैं और जिसे सुखाकर मनक्का बनाते हैं। बढ़ती। -संवा स्त्री॰ [ हिं• ] २० 'बढती' । दे० 'अंगूर'। बढ़-वि० [हिं० यदना ] बढा हुप्रा । अधिक । ज्यादा । बडीमाता-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० घड़ी+माता ] शोतला । चेचक । यो० -घटबढ़ = छोटा वडा । बड़ीमैल-संज्ञा स्त्री० [ देश० ] एक चिड़िया जो बिलकुल खाकी बढ़-मंशा स्त्री० बढती । ज्यादती । रंग की होती है। यौ-घटबढ़। वडोमौसली -मज्ञा स्त्री० [हिं० बड़ी + मौसली ] थाली में नक्काशी विशेष-इस शब्द का प्रयोग अकेले नही होता है। बनाने के लिये लोहे का एक ठप्पा जिससे तीसी के प्रागे नक्काशी बनाते हैं। बढ़ई-शा पु० [ म० वड़कि, प्रा० बढ्ढ ] काठ को छीलकर और गढ़कर अनेक प्रकार के समान बनानेवाला । लकड़ी का काम बड़ोराई -सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० बढ़ी+राई ] एक प्रकार की सरसो जो करनेवाला। लाल रंग की होती है । लाही। बजाg+-सज्ञा पुं॰ [ स० बिडौजा ] दे॰ 'विडोजा' । चढ़ईगिरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बढ़ई+फा गिर+ई ] बढ़ई का पेशा । बढ़ती-संज्ञा श्री० [हिं० बढ़ना +ती (प्रत्य॰)] १. तोल या गिनती बड़ेमोती का फूल-सज्ञा पु० [हिं०] थाली मे नक्काशी करने में अधिकता । मान या संख्या में वृद्धि । मात्रा का प्राधिक्य । का लोहे का ठप्पा जिसे ठोककर तीसी के प्रागे नक्काशी जमे, अनाज की बढनी, रुपए पैसे की बढनी। बनाते हैं। विशेप-विस्तार यी वृद्धि के लिये अधिकतर घाट' शब्द का बड़ेरर :-सज्ञा पुं० [ देशज ] बवंदर । चक्रवात । वेग से घूमती हुई प्रयोग होता है | जैस, पौधे की बाढ़, प्रादमी की वाढ, नदी वायु । उ०-जव चेटकी फुटी नियरायो। तब एक घोर की बाढ़ प्रादि। बड़ेरर प्रायो। -रघुराज ( शब्द०)। २. धन धान्य की वृद्धि । धन मंपचि मादि का बढना । बड़ेरा@-वि० [हिं० वड़ा+रा (प्रत्य॰)] [वि० ग्री० वढेरी ] उन्नति । जैसे,—दाता, तुम्हारी बढती हो। १ बड़ा । उ०-छोटे धो वडेरे मेरे पूतऊ अनेरे-सव । -तुलसी ग्र०, पृ० १७२ । २. श्रेष्ठ । वृहत् । महान् । उ०-मवहि मुहा०-बदती का पहरा = निरतर उन्नति होना। मनवरत समृद्धि के दिन। कहत हरि कृपा बहेरी भव ही परिहि लखाई ।-भारतेंदु ग्र०, भा० २, पृ० ५८० । ३. प्रधान । मुख्य । ४. प्रधान बढ़दारी-संज्ञा स्त्री॰ [ देशज ] टॉकी। पत्थर काटने का पौजार । पुरुष । मुखिया। बढ़ना-संज्ञा स्त्री० [हिं० बदना ] वृद्धि । बाढ़ । पाधिक्य । बड़ेरा-संज्ञा पु० [सं० बडभि, प्रा०, वडहि + रा] [स्त्री० अल्पा० बढ़ना-क्रि० प्र० [सं० वद्धन, प्रा० घड्ढन ] १. विस्तार या वड़ेरी ] १. छाजन में बीच की लकडी.जो लवाई के बल परिमाण में अधिक होना। डोल डोल या लंबाई चौड़ाई होती है और जिसपर सारा ठाट होता है । २. कुएं पर दो आदि में ज्यादा होना । वधित होना । वृद्धि को प्राप्त होना । खभों के ऊपर ठहराई हुई वह लकड़ो जिसमें घिरनी लगी जंसे, पौधे का बढ़ना, बच्चे का बढ़ना, दीवार का बढ़ना, खेत रहती है। का वढना, नदी बढना। बड़े लाट-संज्ञा पुं० [हिं० बड़ा +अं० लाई ] हिंदुस्तान में पंग्रेजी संयो० कि०-जाना। . शासन कालीन साम्राज्य का प्रधान शासक । मुहा०-यात बढ़ना = (१) विवाद होना। झगड़ा होना । बड़ौंखा-संज्ञा पु० [हिं० बड़ा + ऊख ] एक प्रकार का गन्ना जो (२) मामला टेढा होना। वहुत लवा और नरम होता है। २. परिमाण या संख्या मे अधिक होना। गिनती या नाप तौल बड़ौना - सज्ञा पु० [हिं० वड़ापन ] वडाई । महिमा । प्रशंसा । में ज्यादा होना । जैसे, धन धान्य का बढना, रुपए पैसे का तारीफ । उ०-सुनि तुम्हार संसार बडोना । योग लीन्ह तन बढना, प्रामदनी बढ़ना, खर्च बढ़ना । कीन्ह गड़ौना ।—जायसी (शब्द०)। संयो० कि०-जाना। बड्ड-वि० [ प्रा० वड ] दे० 'बडा'। ३. अधिक व्यापक, प्रबल या तीव्र होना । बल, प्रभाव, गुण बड्डा-वि० [सं० वर्ध, प्रा० वड्ड वा देशी ] [वि० सी० बड्डो ] आदि मे अधिक होना । मसर या खासियत वगैरह में ज्यादा दे० 'बड़ा' उ०—(क) निपट अटपटो चटपटो ब्रज को प्रेम होना । जैसे, रोग बढ़ना, पीड़ा बढना, प्रताप वढना, यश वियोग । सुरझाए सुरझे नही, अरुझे बड्डे लोग।-नद. बढना, कीर्ति बढना, लालच वढना । ४. पद, मर्यादा, ग्रं॰, पृ० १६४ । (ख) बड्डो रैनि सनक से दिना। क्यों अधिकार, विद्या बुद्धि, सुख संपत्ति प्रादि मे अधिक होना। भरिए पिय प्यारे बिना ।-नंद० ग्र०, पृ० १३५ । दौलत रुतवे या इख्तियार में ज्यादा होना । उन्नति करना। बड्ढना-क्रि० प्र० [सं० वर्धन, प्रा० बड्ढण ] दे० 'बढना' । तरक्की करना। जैसे,—(क) पहले उन्होने बोस रुपए की उ०-अरु कहो साहि हम्मीर बैर । किहिं भाति कंक बड्ढयो नौकरी की थी, धीरे धीरे इतने बढ गए । (ख) आजकल सु फेर। -ह. रासो पृ० ३ । सब देश भारतवर्ष से बढ़े हुए हैं।