पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१३५

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घदुओं ३३७४ धंद्धशि बद्दुआ-सज्ञा स्त्री० [फा० बददुश्रा ] दे॰ 'बददुप्रा' । बद्धफल-संज्ञा पुं० [सं० ] करंज का फल [को॰] । वटू-संज्ञा पुं० [ देशज ] अरब की एक असभ्य जाति जो प्रायः बद्धभू-संज्ञा स्त्री० [ सं०] १ नीचे की जमीन या फर्श । २. मकान लूट पाट किया करती है। के लिये तैयार की हुई भूमि । ३. गच । कुट्टिम । पक्की जमीन [को०] 1 बदू-वि० बदनाम । बद्ध-वि० [सं०] १. बंधा हुग्रा | जो या जिससे बांधा गया हो । बंधन बद्धमुष्टि-वि० [सं०] १. जिसकी मुठ्ठी बँधी हो अर्थात् देने के में पड़ा हुमा या बांधने में काम आया हुप्रा । लिये न खुलती हो । कृपण । कजूस । २. बंधी मुट्ठीवाला । यौ०-यपरिकर । वद्धशिख । बद्धमूल-वि० [स०] जिसने जड़ पकड़ ली हो। जो दृढ़ और २. अज्ञान में फंसा हुप्रा । संसार के बंधन में पड़ा हुमा । जो मटल हो गया हो। मुक्त न हो । जैसे, बद्ध जीव । ३. जिसपर किसी प्रकार का क्रि० प्र०-करना।-होना । प्रतिबंध हो। जिसके लिये कोई रोक हो। ४. जिसकी गति, बद्धमौन-वि० [सं०] चुप्पी साधे हुए । मोन (को०) । क्रिया, व्यवहार यादि परिमित और व्यवस्थित हो। जो किसी हद हिसाब के भीतर रखा गया हो । जैसे, नियमबद्ध, बद्धयुक्ति-संज्ञा स्त्री॰ [सं० ] (संगीत में) वशी बजाने में उसके छिद्रों पर से उँगली हटाकर उसे खोलने की क्रिया । मर्यादाबद्घ । ५. निर्धारित । निर्दिष्ट । स्थिर । ठहराया हुमा। ६. बैठा हुआ । जमा हुआ। बद्धरसाल-संज्ञा पुं० [सं०] उत्तम जाति का एक प्रकार का प्राम। यौ०- बद्धमूल । HO या पारा। ७. सटा हुमा । जुड़ा हुमा । एक दूसरे से लगा हुपा । बद्धराग-वि० [सं०] दृढ़ प्रेमवाला । दृढ़ अनुरागयुक्त । प्रासक्त यौ-पद्धांजलि । 170] बद्धराज्य -वि• ] स० ] जिसे राज्य मिला हो । राज्यारुढ [को०] । बद्धक-संज्ञा पुं० [ ] बंधुप्रा । कैदी। बद्धवचेस-वि० [सं०] मलरोधक । बद्धकक्ष-वि० [सं० ] दे० 'बद्घपरिकर' [को०] । बद्धकोप-वि० [सं०] १. क्रोध को रोकनेवाला। २. क्रोध पालन- बद्धवैर-वि० [सं०] किसी से शत्रुता साधे हुए [को०। वाला । क्रोधी [को०] । बद्धशिख'-वि• [सं०] जिसकी शिखा या चोटी बंधो हो । बद्धकोष्ठ-संज्ञा पुं० [सं०] मल अच्छी तरह न निकलने की अवस्था विशेष-विना शिखा बांधे जो कुछ धर्म कार्य किया जाता है या रोग । पेट का साफ न होना। कब्ज । कब्जियत । वह निष्फल होता है। बद्धगुदोदर-संशा पुं० [ सं० ] पेट का एक रोग जिसमें हृदय और बद्धशिख'–संज्ञा पुं० शिशु । बच्चा । नाभि के बीच पेट कुछ बढ़ पाता है और मल रुक रुककर बद्धशिखा-संशा स्त्री० [सं०] उच्चटा । भूम्यामलको । थोड़ा थोड़ा निकलता है। बद्धसूत-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'बद्घसूनक' । विशेष-वैद्यक के अनुसार जब मंतड़ियों में पन्न, मिट्टी, बालू बद्धसूतफ-संज्ञा पुं० [ स०] रसेश्वरदर्शन के अनुसार वद्ध रस प्रादि जमते जमते बहुत सी इकट्ठी हो जाती हैं तब मल बहुत कष्ट से थोड़ा थोड़ा निकलता है। चिकनी, चिपचिपी पीजें विशेष—यह अक्षत, लघुद्रावी, तेजोविशिष्ट, निर्मल और गुरु मधिक खाने से यह रोग प्रायः हो जाता है और इसमें वमन मे कहा गया है। रसेश्वरदर्शन में देह को स्थिर या अमर करने मल की सी दुर्गंध भाती है । इसे बधगुद भी कहते हैं । पर मुक्ति कही गई हैं । यह स्थिरता रस या पारे की सिद्धि बद्धष्ट-वि० [सं०] लगातार वा टकटकी लगाए हुए [को०] । द्वारा प्राप्त होती है। बद्धना-क्रि० प्र० [ सं० वद्धन, प्रा० बद्धन, बढुण, हिं० बढेना] बद्धस्नेह-वि० [ स०] प्रासक्त । अनुरक्त [को०] । दे० बढ़ना'। उ०—(क) वरप बधै विय बाल पिथ्थ बद्ध पद्धांजलि-वि० [सं० बद्धाञ्जलि ] करवद्घ । अंजलिवद्ध । इक मासह । -पृ. रा०, ११७१७ । (ख) क्रम क्रम फल उ०-बोले गुरु से प्रभु साश्रुवदन, बद्घांजलि । -साकेत, गुन बद्धक्ष्य, बेली नमै सुतेम।-पृ० रा०, ११।३१ । पु० २२३ । बद्धनिश्चय-वि० [सं० ] दृढ़निश्चय । दृढ़प्रतिज्ञ [को॰] । षद्धानंद-वि० [सं० बद्धानन्द ] प्रानंदयुक्त (को०] । बद्धपरिकर-वि० [सं०] कमर बांधे हुए । तैयार । उ०-जिनकी बद्धानुराग-वि० [स०] आसक्त । बद्धराग को०] । दशा के सुधार के पर्थ वह बद्धपरिकर हुई है। प्रेमघन०, बद्घायुध-वि० [सं० शस्त्रसज्ज | शस्त्रास्त्रयुक्त [को०] । भा०२, पृ० २७०। घद्धाशंक-वि० [सं० वद्धाशक ] माशंकायुक्त । आशंकित । शंका- चद्धपुरीप-वि० [सं०] कब्ज का रोगी (को०] । युक्त [को०] । घद्धप्रतिज्ञ-वि० [सं०] वचनबद्ध [को०] । बद्धाश-वि० [सं०] आशान्वित । भाशायुक्त [को॰] ।