पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१४६

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वौतो ३३८५ बबूल सिव बिरंचि फह मोहे को है वपुरा धान |-मानस, ७६२ । क्रि० प्र०-देना।-लेना। (ख) फहा करै वपुरी ब्रज भवला गरब गोठि गहि खोले । २. वह ओषधि जिसकी भाप से इस प्रकार का सेंक किया जाय । घनानंद, पृ० ४७५। ३. वाष्प । भाप । वपौती-संज्ञा स्त्री० [हिं० वाप+ौती (प्रत्य॰)] वाप से पाई बफुजी-संज्ञा स्त्री० [देश॰] एक प्रकार का सदाबहार छोटा पौधा हुई जायदाद । पिता से मिली हुई संपत्ति । जो प्रायः सभी गरम देशों में और विशेषतः रेतीली जमीनों वप्तिस्मा-संज्ञा पुं॰ [अं० धपतिसमा ] दे० वपतिसमा' । उ० --मैं में पाया जाता है। इसकी पत्तियां ऊँटों के चारे के काम में मभी प्राप दोनों को गिर्जे में फादर के पास ले जाती हूँ, प्राज प्राती हैं। ही बप्तिस्मा हो जायगा । -जिप्सी, पृ० १६५ । वफौरी-पंज्ञा सी० [हिं० भाप + शौरी (प्रत्य॰)] भाप से पकाई वप्पड़ा-वि० [देशी बप्पुड राज० बप्पड़ा, बापड़] दे० 'वापुरा'। हुई वरी। उ०-(क) बगही भला त बप्पड़ा धरणि न मुक्का पाइ ।- विशेप-बटलोई में पदहन चढ़ाकर उसके मुंह पर बारीक ढोला०, दू० २५७ । (ख) प्रजइ कुप्रारउ बप्पड़ा, नही ज कपड़ा बांध देते हैं। जब पानी खुब उबलने लगता है तब कामरिण मोह ।-ढोला०, दू० ३२२ । कपड़े पर बेसन या उर्द की पकौडी छोड़ते हैं जो भाप से ही वप्पा-संज्ञा पुं० [सं० वप्ता, प्रा० वप्पा, हिं० वाप] पिता । बाप । पकती है। इन्ही पकौड़ियों को बफोरी कहते हैं । विशेष-इस शब्द का प्रयोग कुछ प्रांतों में प्रायः संबोधन रूप बवकना-क्रि० प्र० [अनुध्व०] १. उत्तेजित होकर जोर से मे होता है । जैसे, अरे बप्पा ! अरे मैया ! बोलना । बमकना । २. आवेश में उछलना कूदना । वफरना-कि० प्र० [सं० विस्फुरण ] बढ बढ़कर बातें करना बबर-सज्ञा पुं० [फा०] १. बर्वरी देश का शेर । बडा शेर । सिंह । दे० 'विफरना' । उ० ( क) संध्या समय घर प्राया, तो २. एक प्रकार का मोटा कंबल जिसमें शेर की खाल को सी वफरने लगा। अब देखता हूँ कौन माई फा लाल इनकी धारियाँ बनी होती हैं। हिमायत करता है।-रंगभूमि, भा॰ २, पृ० ५८७ । (ख) बबा-संज्ञा पुं० [हिं॰] दे० 'बावा' । हरनाथ कुगल योद्धा की भांति शत्रु को पीछे हटता देखकर, बफरफर बोला ।-मान०, भा० ५, पृ० १९३ । बबुआ-मशा पु० [हिं० घाबू ] १. बेटे या दामाद के लिये प्यार वफर स्टेट-संज्ञा पुं० [भं० ] वह मध्यवर्ती छोटा राज्य जो दो बड़े का संबोधनात्मक शब्द । (पूरब)। २. जमींदार । रईस । राज्यों को एक दूसरे पर आक्रमण करने से रोकने का काम (पूरब)। करे । संघर्ष निवारक राज्य । घंतधि । बबुई।-संज्ञा स्री: [हिं० धाबू का स्त्री०] १. बेटी । कन्या । उ०-- विशेष-दो बड़े राज्यों के एक दूसरे पर -प्राक्रमण करने के बाबा घर रहलो वदुई फहौलों सैया घर चतुर सयान, चेतब । घरवा मापन रे।-कबीर० श०, भा० २, पृ० ३८ । २. मार्ग में जो छोटा सा राज्य होता है, उसे 'बफर स्टेट' कहते छोटी ननद । पति की छोटी बहन । ३. किसी ठाकुर, सरदार हैं । जैसे, हिंदुस्तान और रूस के बीच अफगानिस्तान, फ्रांस तथा जर्मनी के बीच वेलजियम हैं। यदि ये छोटे राज्य या बाबू की बेटी। तटस्थ या निरपेक्ष रहें तो इनमें से होकर कोई राज्य दूसरे बबुर, वबूर-संज्ञा पुं० [सं० बब्बूर ] दे० 'बवूल' । उ०-गुरु के राज्य पर आक्रमण नही कर सकता। इस प्रकार ये संघर्ष पास दाख रस रसा । वैरि बबूर मारि मन कसा ।—जायसी रोक्ने का कारण होते हैं। ऐसे छोटे राज्यों का बड़ा महत्व ग्र० (गुप्त), पृ० २२४ । है। संधि न होने की अवस्था में इधर उधर के प्रतिद्धती बबूल-संज्ञा पुं० [सं० बब्बुल, बठबूत, प्रा० बबूल ] मझोले कद का राज्य इनसे सदा सशंक रहते हैं कि न जाने ये फव किसके एक प्रसिद्ध काँटेदार पेड़ । कीकर । पक्ष में हो जायें और उसके प्राक्रमण का मार्ग प्रशस्त कर विशेष—यह वृक्ष भारत के प्रायः सभी प्रांतों में जंगली पवस्था दें । गत प्रथम महासमर में जर्मनी ने वेलजियम की तटस्थता मे अधिकता से पाया जाता है। गरम प्रदेश और रेतीली भंग कर उसमे से होकर फांस पर चढ़ाई की थी। साथ ही ' जमीन में यह बहुत अच्छी तरहु मौर अधिकता से होता है। साथ यह भी होता है कि जब दो प्रतिद्वंद्वी राज्य.'बफर स्टेट' कहीं कही यह वृक्ष सौ सौ वर्ष तक रहता है। इसमें छोठी की तटस्थता भग करके भिड़ जाते हैं, तब बफर स्टेट की, छोटी पत्तियां, सुई के बराबर फाटें और पीले रंग के छोटे बीच में होने के कारण भीषण हानि होती है । छोटे फूल होते हैं। इसके अनेक भेद होते हैं जिनमें कुछ तो वफारा-संज्ञा पुं० [सं० वाप्प, हिं० वाफ, भाप + पारा (प्रत्य॰)] १. छोटी छोटी कटीली बेलें हैं और चाकी. बड़े बड़े वृक्ष । कुछ प्रोपषिमिश्रित जल को प्रौटाकर उसकी माप से शरीर के जातियों के ववूल तो बागों मादि में शोभा के लिये लगाए किसी रोगी अंग को सेंकने का काम । उ०-प्राय सकारे जाते हैं। पर अधिकांश से इमारत और खेती. कामों के हिय सकुचि, पाय पधारे ऐन । तिय नागरि तिय नैन तकि. लिये बहुत अच्छी लकड़ी निकलती है। इसकी लकड़ी बहुत लगी बफारे दैन ।- स० सप्तक, पृ० २४७ । मजबूत और भारी होती है. और यदि कुछ दिनों तक किसी ! ! 1